कोटा : कोटा में कोचिंग छात्रों के सुसाइड रोकने के लिए अब हर हॉस्टल-पीजी को एंटी हैंगिंग डिवाइस लगाने होंगे। आदेश नहीं मानने वाले हॉस्टल को सीज किया जाएगा। यह डिवाइस पंखों में लगती है और किसी एक बच्चे की भी जान बचती है तो यह बड़ी बात होगी। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इस डिवाइस को लगाने के बाद सुसाइड रुकेंगे? कोटा में 3800 से ज्यादा हॉस्टल और 40 हजार से ज्यादा पीजी हैं, वहां मॉनिटरिंग कैसे होगी?
बढ़ते सुसाइड मामलों के बाद कोटा में कोचिंग छात्रों का दबाव कम करने के लिए 9 बिंदुओं की एक गाइडलाइन जारी की गई थी, उस पर कितना काम अब तक हो पाया है? इस स्पेशल स्टोरी में हम जानेंगे कि इस ज्वलंत मुद्दे पर जारी हुई गाइडलाइन की जमीनी हकीकत क्या है…
एंटी हैंगिंग डिवाइस है क्या?
यह डिवाइस सामान्य सीलिंग फैन में ही इंस्टॉल की जाती है। बाजार में दो तरह की डिवाइस आती है। एक हैंगिंग रॉड में ही लगी होती है, जिससे अगर कोई फंदा लगाने का प्रयास करेगा तो उसके वजन से अलार्म बज जाता है। इससे हॉस्टल संचालक को सुसाइड अटेम्प्ट की जानकारी मिल जाती है।
दूसरा स्प्रिंग रॉड के साथ सीलिंग फैन। इसमें पंखे की हैंगिंग रॉड में स्प्रिंग लगी होती है, जो क्लैंप के जरिए छत में लगे हुक में फिट हो जाती है। इसमें हैंगिंग रॉड और पंखे के बीच एक जॉइंट होता है। आसान शब्दों में रॉड के अंदर से स्प्रिंग निकलती है जो कि हुक और ब्लेड से कनेक्ट रहती है। पंखे का पूरा लोड स्प्रिंग और प्लास्टिक क्लैंप पर रहता है।
कैसे काम करती है यह डिवाइस
पंखे की लोड क्षमता 40 किलो तक होती है। इस पर 40 किलो से ज्यादा भार आने पर स्प्रिंग फैल जाती है और पंखा नीचे आ जाता है। मान लीजिए कि कोई 40 किलो से ज्यादा वजन वाला व्यक्ति पंखे पर लटकता है तो पूरा लोड स्प्रिंग और क्लैंप पर आ जाता है। जैसे ही कोई 40 किलो से ज्यादा वजन की चीज लटकती है, जॉइंट टूट जाता है और स्प्रिंग फैलकर नीचे आ जाती है। इससे सुसाइड की कोशिश करने वाले व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं होता और उसे बचाया जा सकता है।
जिन पंखों में अलार्म सिस्टम लगा होता है, उनमें अलार्म बज जाता है। हालांकि इस डिवाइस के साथ पंखा लगाने पर तकनीकी इश्यू यह भी आ सकता है कि कभी-कभी यह जॉइंट लूज होने के बाद अपने आप ही नीचे आ जाता है। एक बार क्लैंप टूटने के बाद डिवाइस फिर लगानी पड़ती है।
इस डिवाइस का कैसे आया विचार
हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल ने बताया कि उन्होंने ही साल 2015 में इस डिवाइस का प्रेजेंटेशन प्रशासन के सामने दिया था। तब इसे सभी हॉस्टलों में लगाने के लिए कलेक्टर ने आदेश जारी किए थे। उस साल भी लगातार हो रहे सुसाइड को देखते हुए प्रशासन की तरफ से भी काफी प्रयास किए गए थे। इसी बीच सिक्योरिटी डिवाइस बनाने वाली बेंगलुरु की एक कंपनी के प्रतिनिधियों ने उन्हें इस डिवाइस के बारे में जानकारी दी।
बताया कि यह कई आईआईटी के हॉस्टल में भी लगाई हुई है। उसका डेमो दिया गया तो प्रशासन ने सभी जगह लगाने के निर्देश दिए। नवीन मित्तल ने बताया कि हमारी यही कोशिश थी कि कैसे भी कोटा में सुसाइड के केस रुकें। हमने सबसे पहले यह डिवाइस इंस्टॉल करवाया। इसके बाद धीरे-धीरे दूसरे हॉस्टलों में इंस्टॉल होने लगा।
3800 हॉस्टल रजिस्टर्ड, ज्यादातर में इंस्टॉल है डिवाइस
कोटा में रजिस्टर्ड 3800 हॉस्टल हैं। अलग-अलग इलाकों के हिसाब से हॉस्टल की अपनी एसोसिएशन बनी हुई हैं। नवीन मित्तल के अनुसार शहर के 90 प्रतिशत हॉस्टलों में यह डिवाइस पंखों के साथ अटैच है। इसकी जानकारी किसी को नहीं दी जाती। कुछ हॉस्टल में हो सकता है कि यह नहीं लगवाया हो।
यही बात मीटिंग में हमने उठाई थी। कलेक्टर ने आदेश जारी किए हैं। सबसे बड़ा सवाल है कि हॉस्टलों की निगरानी तो कर ली जाएगी, वहां ये डिवाइस लगवा भी दिए जाएंगे, लेकिन पीजी की निगरानी कैसे होगी?
40 हजार से ज्यादा पीजी, कौन करेगा निगरानी?
नवीन मित्तल के अनुसार कोटा में चालीस हजार से ज्यादा पीजी चल रहे हैं। जिनमें एक कमरे से लेकर कई कमरों के पीजी शामिल हैं। यह रजिस्टर्ड भी नहीं हैं। इसके अलावा कई कॉलोनियों में बच्चे किराए के मकानों में रह रहे हैं। शहर इतना बड़ा है। प्रशासन ने आदेश जारी कर दिए कि हॉस्टलों और पीजी में एंटी हैंगिग डिवाइस जरूरी है। हॉस्टलों पर तो प्रशासन निगरानी रख लेगा।
क्योंकि ये रजिस्टर्ड हैं, लेकिन पीजी में कैसे इसे लागू करवा पाएंगे? कलेक्टर के आदेश के अनुसार गाइडलाइन की पालना के लिए बनाई गई टीम निगरानी करेगी। इस पर भी सवाल है कि पूरे शहर में निगरानी कैसे होगी। एक एक घर टीम चेक करेगी नहीं, क्योंकि उसमें कई महीने का समय लग जाएगा। हाल में हुए सुसाइड में ज्यादा केस पीजी रूम में रहने वाले बच्चों के ही सामने आए हैं।
क्या एंटी हैंगिंग डिवाइस से रुक जाएंगे सुसाइड, यह भी बड़ा सवाल
बीते दिनों आए सुसाइड के दो मामलों से समझते हैं…
केस- 1 महावीर नगर में रहने वाले स्टूडेंट वाल्मीकि ने कमरे के रोशनदान से फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। उसके कमरे में पंखा भी था, हालांकि उसमें सिक्योरिटी डिवाइस नहीं लगा था। छात्र ने पंखे से फंदा नहीं लगाया।
केस- 2 मनजोत का केस सबसे हैरान करने वाला है। उसने अपने मुंह पर थैली बांधी और हाथ बांध लिए। परिजन इसे मर्डर बता रहे है, लेकिन पुलिस सुसाइड ही मान रही है। उसके कमरे में पंखे में एंटी हैंगिंग डिवाइस लगा था।
प्रशासन ने जो 9 पॉइंट की गाइडलाइन जारी की थी, एंटी हैंगिंग उसी का एक हिस्सा है, लेकिन बाकी पॉइंट पर अभी फोकस नहीं किया गया है। एंटी हैंगिंग डिवाइस से सुसाइड के केस कितने कम होंगे यह संशय वाली बात है। साल 2015 में जब यह डिवाइस लगाना शुरू किया गया था, उस वर्ष सुसाइड के केस 23 हुए थे, इसके बाद इस डिवाइस को लगाना शुरू किया गया। इसके अगले साल 2017 में सुसाइड के केस 17 थे। पिछले साल से कम जरूर थे, लेकिन यह आंकड़ा भी छोटा नहीं है।
गाइडलाइन पर नहीं हुई सख्ती, नहीं हो सकी लागू
कोटा में साल 2022 में जब लगातार मौतें हुईं तो उसके बाद कोटा प्रशासन ने संशोधित गाइडलाइन जारी की। 15 दिसंबर को यह गाइडलाइन जारी की गई थी। जिसमें मोटे तौर पर 9 बिंदु थे और उनमें कई विषयों को समाहित किया गया था। लेकिन न गाइडलाइन की पालना ही सख्ती से हुए और न ही कार्रवाई की गई।
गाइडलाइन जारी होने के बाद कुछ दिन तक तो इसका असर दिखता है, लेकिन बाद में इनकी प्रॉपर मॉनिटरिंग नहीं होती। हर बार मीटिंग में यही बात उठती रही कि गाइडलाइन की पालना नहीं हो रही, लेकिन न तो प्रशासन लागू करवा पाया और जिम्मेदारों ने पालना की। हर बिंदु से जानेंगे कि किन गाइडलाइन पर क्या हुआ….
गाइडलाइन नंबर-1 : कोचिंग कर रहे स्टूडेंट्स को जेईई/नीट के अलावा दूसरे करियर के बारे में जानकारी देने की व्यवस्था कोचिंग में रखी जाएगी, साथ ही प्रिंटेड सामग्री भी दी जाएगी।
एक्शन- ज्यादातर कोचिंग में इस तरह की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है। सुसाइड के बाद जब मामला गर्माता है तो कुछ दिन व्यवस्था कर दी जाती है। प्रशासन की तरफ से कोई कार्यक्रम आयोजित हो तो उसमें यह बात कह दी जाती है।
गाइडलाइन नंबर-2 : रिजल्ट का प्रचार-प्रसार बढ़-चढ़कर नहीं किया जाएगा, कोचिंग संस्थान सफलता दर को स्पष्ट रूप से दर्शाएंगे।
एक्शन- रिजल्ट के बाद श्रेय लेने की होड मच जाती है। दूसरे स्टूडेंट के बीच में रिजल्ट स्कोर करने वाले स्टूडेंट्स को ले जाया जाता है, जश्न मनाया जाता है। रैलियां निकाली जाती हैं।
गाइडलाइन नंबर-3 : कोचिंग संस्थानों के विज्ञापन में यह साफ लिखा होगा कि सलेक्शन की कोई गारंटी नहीं है।
एक्शन- कोई पालना नहीं, इसके उलट कोचिंग संस्थानों के विज्ञापनों में दावा किया जाता है कि उनके पास ही सपने सच करने की गारंटी है।
गाइडलाइन नंबर-4 : स्टूडेंट्स की रुचि और एप्टीट्यूड की जांच के लिए करियर और व्यवसायिक काउंसलर की सेवाएं ली जाएंगी। आकलन करवाकर स्टूडेंट्स को उनके अनुसार विकल्प चुनने का अवसर देना होगा
एक्शन- कहीं भी पालना नहीं होती, बच्चों को कोचिंग क्लासेज से ही टाइम नहीं मिल पाता है।
गाइडलाइन नंबर-5 : कोचिंग स्टूडेंट्स और उनके पेरेंट्स के लिए ओरिएंटेशन प्रोग्राम हो (इसी मुख्य बिंदु में कई विषय शामिल हैं) इजी एग्जिट पॉलिसी, फीस रिफंड, रोज बच्चो को दस मिनट योगा, कोचिंग टेस्ट में रैंक जारी नहीं करना, संडे को अवकाश, तीन महीने में पेरेंट्स टीचर मीटिंग समेत कई बातें लिखी गई हैं।
एक्शन- सभी कोचिंग में इन नियमों का पालन नहीं हो रहा, जहां होता है वहां भी अपनी सफलता की कहानियां बताना, गाना, बजाना चलता है। कुछ कोचिंग में इसकी पालना हो रही है। एग्जिट पॉलिसी लागू है फिर भी फीस रिफंड को लेकर शिकायतें आती हैं। क्लास शुरू होने से पहले योगा तो अपवाद के तौर भी देखने को नहीं मिलता।
कोचिंग टेस्ट में रैंकिंग भी निकाली जा रही है। संडे को छुट्टी रखने के निर्देश पिछले हफ्ते ही शुक्रवार को निकाले थे। इसके बाद जो संडे आया उसी में पालन नहीं हुआ। पेरेंट्स टीचर मीटिंग का दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है।
गाइडलाइन नंबर-6 : बच्चों के मानसिक दबाव को कम करने के लिए मनोचिकित्सीय सेवा उपलब्ध करवाने समेत कई बिंदु हैं।
एक्शन- हर कोचिंग परिसर में पौष्टिक खाने के पॉइंट नहीं हैं। न ही कोई इन हाऊस क्लिनिक है। ज्यादातर जो बिंदु है जिनमें अस्पतालों की जानकारी, डॉक्टरों की जानकारी, प्राथमिक चिकित्सा सुविधा जैसी सुविधाएं की गई है।
गाइडलाइन नंबर-7 : हॉस्टल-पीजी संचालकों के लिए नियम दिए गए है, इसमें 6 बिंदु हैं।
एक्शन- रिफंड को लेकर कोई सख्ती नहीं है। सबसे ज्यादा शिकायतें हॉस्टलों की ही आती हैं। बाकि बच्चों की एंट्री, आने-जाने का रिकॉर्ड, सुरक्षा गार्ड और सीसीटीवी की व्यवस्थाएं लगभग सभी में हैं।
गाइडलाइन नंबर-8 : बच्चों की मानसिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए कार्यशालाएं कराने, मनोवैज्ञानिकों के पैनल बनाने की बात।
एक्शन- हर महीने कार्यशाला नहीं हो रही, सुरक्षा की बात गाइडलाइन में है, इसके लिए स्टूडेंट वेलफेयर सोसायटी हर कोचिंग की बनी हुई है।
गाइडलाइन नंबर-9 : बच्चों की सुरक्षा को लेकर गाइडलाइन, बायोमेट्रिक मशीन से अटेंडेंस के निर्देश।
एक्शन- पुलिस थानों में बच्चों के लिए अलग से कोई हेल्प डेस्क नहीं है। हां शिकायत पर पुलिस एक्शन जरूर ले रही है। अटेंडेंस भी ज्यादातर कोचिंग में कार्ड से हो रही है, कुछ संस्थानों में बायोमेट्रिक है। कार्ड से एंट्री का लूपहोल ये है कि दूसरा बच्चा भी किसी के कार्ड से पंच कर सकता है। ऐसे में व्यवस्था पुख्ता नहीं।