झुंझुनूं-सूरजगढ़ : सूरजगढ़ लीबिया में साढ़े चार माह आतंकियों की गिरफ्त में रहकर लौटे कुलोठ खुर्द पंचायत के रूपपुरा निवासी इंजीनियर कर्मपाल ने कहा कि उस इलाके में दुबारा कभी जाने की सोचूंगा भी नहीं। घटना के बारे में बताते हुए कहा कि हमने तो घर आने की आस छोड़ दी थी लेकिन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा हस्तक्षेप करने की जानकारी मिली तो लगा कि अब घर लौट सकेंगे। गांव लौटे इंजीनियर कर्मपाल से भास्कर ने जानी उनकी आपबीती।
मैं अपने आठ अन्य साथियों के साथ 10 जनवरी को माल्टा यूरोप से जहाज में कार्गों लोडिंग कर ट्यूनीशिया होते हुए इजिप्ट के लिए रवाना हुआ था। ट्यूनीशिया पार कर लीबिया जल क्षेत्र में घुसने के बाद 18 जनवरी की रात ढाई बजे मैं रूम में लेटा था कि अचानक फायरिंग की आवाज आने लगी। खिड़की खोलकर देखा तो बोट में सवार हथियारबंद लोग जहाज पर फायरिंग कर रहे थे। मैं बाहर निकला तो दो हथियारबंद आतंकी जहाज पर चढ़े हुए दिखे। उन्होंने मुझे व साथियों को बंधक बना लिया। हमारे मोबाइल, लैपटॉप, पर्स आदि छीन लिए।
गन पॉइंट पर लेकर जहाज को अलमाया बंदरगाह पर ले गए। वहां ले जाकर हम सभी 9 साथियों को एक कमरे में बंद कर दिया। बाहर दो गनमैन खड़े कर दिए। 20 दिन हमें उसी कमरे में रखा। जहाज के ऑनर से फिरोती की बात करते तब बाहर लाते। उन्होंने जहाज मालिक से बात करने के लिए मुझे एक मोबाइल फोन दिया। उसी से मैंने वीडियो बनाकर अपने भाई धर्मेंद्र के पास भेजकर अपहृत होने की जानकारी दी। तब उपराष्ट्रपति तक बात पहुंची। उनके प्रयासों से ट्यूनिशिया में भारत के राजदूत ने दो बार फूड पैकेट भिजवाए। भारत सरकार का दबाव बढ़ने पर 31 मई को हमें रिहा कर दिया।