हरियाणा : कानूनी प्रक्रिया का पालन किये बिना नहीं चल सकता है बुलडोजर

हरियाणा : बीते 31 जुलाई को हरियाणा के नूंह में सांप्रदयिक हिंसा हुई। कानून-व्यवस्था के नजरिए से देखे तो यह पुलिस और प्रशासन की बड़ी चूक का नतीजा थी कि वह इसे रोक नही पाया। हिंसा के बाद भड़के जनआक्रोश को शांत करने के लिए प्रशासन और सरकार ने बुलडोजर एक्शन का सहारा लिया। करीब चार दिनों तक नूंह में में बुलडोजर चलते रहें जब तक की पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से इन्हें रोकने का आदेश नहीं आ गया।

 

प्रशासन और सरकार पर आरोप लगा कि हिंसा के बाद बिना वैध कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए हुए अवैध और अतिक्रमण करार देकर हिंसा के कथित आरोपियो की सैकड़ों मकान, दुकान आदि पर बुलडोजर चला दिए गए। इस बुल्डोजर एक्शन को प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर चलाया। इसके कारण काफी संख्या में वे निर्दोष आम लोग भी प्रभावित हुए जिनका हिंसा से कोई लेना-देना नहीं था।

वहीं जिनकी दुकानों और इमारतों का विध्वंस किया गया उनका कहना था कि प्रशासन ने उन्हें कोई नोटिस भी नहीं दिया था। समाचार चैनल आजतक की सोमवार सुबह की एक रिपोर्ट के मुताबिक नूंह में 37 जगहों पर 57.5 एकड़ जमीन से अवैध निर्माण हटाए गए हैं। इसमें 162 स्थाई और 591 अस्थाई  निर्माण गिराए जा चुके हैं।

अब सवाल उठता है कि क्या प्रशासन या सरकार द्वारा इस तरह से बुलडोजर एक्शन लेना सही है। क्या यह कानून के शासन का गला घोंटना नहीं है। कानून के जानकार इस बुलडोजर एक्शन पर सवाल उठाते हैं। उनका कहना है कि बिना किसी विध्वंस आदेश और नोटिस के, कानून और व्यवस्था की समस्या का इस्तेमाल कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किए बिना इमारतों को गिराने के लिए किया जा रहा है। 

उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ था बुलडोजर एक्शन 

उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ बुलडोजर एक्शन आज मध्यप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, असम आदि राज्यों में प्रयोग में लाया जा चुका है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपराधियों के घरों और अन्य इमारतों पर बुलडोजर चलाने से इसकी शुरुआत की थी। इस कार्रवाई को उनके समर्थकों ने खूब सराहा और इसे सही निर्णय माना। वहीं उनके विरोधियों का कहना है कि इस बुलडोजर एक्शन से मुसलमानों में भय पैदा कर दिया गया है।
उत्तर प्रदेश में बुलडोजर की लोकप्रियता बढ़ी और इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक तबके की ओर से तारीफें की जाने लगी। इसका देखा देखी भाजपा शासित अन्य राज्य सरकारों ने भी बुलडोजर एक्शन लेना शुरु कर दिया। इससे आम जनता को तुरंत अपराधियों पर एक्शन होता दिखने लगा। सरकारों ने इसके लिए नगरपालिका या नगर निगमों से जुड़े कानूनों का सहारा लिया। जिसके तहत अवैध निर्माण या अतिक्रमण कर किए गए निर्माणों को गिराया जाने लगा। बुलडोजर एक्शन के लिए आवश्यक है कि किसी अपराध के आरोपी का घर, दुकान, मकान आदि इमारत कानूनों का उल्लंघन कर बनाई गई हो।
इस तरह के एक्शन से भले ही कुछ बड़े बाहुबलियों या बड़े अपराधियों पर  किए गए हो लेकिन ज्यादातर यह गरीब तबके पर ही हुए हैं। इस तरह की कार्रवाई का विरोध करने वालों का आरोप है कि बड़ी संख्या में समाज के कमजोर तबके और अल्पसंख्यकों के इसके जरिए निशाना बनाया जाता है। इसके कारण उनके बीच भय का माहौल बढ़ा है। कानून के जानकार कहते हैं कि किसी तरह का अपराध होने के बाद बने जन दबाव के कारण इस तरह की कार्रवाई को आनन-फानन में करने से इस बात की आशंका बनी रहती है कि निर्दोष लोग इसके शिकार हो सकते हैं। साथ ही किसी तरह की तोड़फोड़ करने के लिए आवश्यक कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं हो पाने की भी संभावना रहती है। बिना कानूनी प्रक्रिया को पूरा किये किसी तरह का तोड़फोड़ नहीं किया जा सकता है।

हाईकोर्ट ने पूछा कि क्या एक खास समुदाय निशाने पर है?

सात अगस्त को हरियाणा और पंजाब हाईकोर्ट ने नूंह में चलाए जा रहे बुलडोजर पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने रोक लगाते हुए कहा कि संविधान नागरिकों की विध्वंसों से रक्षा करता है। कानून में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किये बिना ऐसा नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने कहा कि तमाम मुद्दों में से एक यह भी है कि क्या नूंह में राज्य “जातीय सफाया” कर रहा है। हाईकोर्ट ने पूछा कि क्या एक खास समुदाय निशाने पर है? क्या कानून की समस्या की आड़ में किसी विशेष समुदाय की इमारतों को गिराया जा रहा है?

समय – समय पर हाईकोर्ट ने लगाई है इस पर रोक

इससे पहले देश के कई हाईकोर्ट ने बुलडोजर से लोगों के घरों और इमारतों को तोड़े जाने पर रोक लगाई हैं। साथ ही राज्य सरकारों और संबंधित जिला प्रशासन को जमकर फटकार लगाई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कई मौकों पर बुलडोजर से तोड़ फोड़ पर रोक लगाई है। पिछले साल दिल्ली के जहांगीरपुरी में भी कोर्ट के आदेश के बाद ही बुलडोजर को रोका जा सका था। यहां हनुमान जयंती समारोह के दौरान हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ आरोपी व्यक्तियों के घरों को दिल्ली नगर निगम अधिकारियों द्वारा बुलडोजर लगाकर ध्वस्त किया जा रहा था। 

पटना हाईकोर्ट भी पटना शहर में बनी एक बस्ती पर चलाए जा रहे बुलडोजर को रोक चुका है।  न्यायपालिका को उचित प्रक्रिया की पवित्रता को फिर से स्थापित करने के लिए कदम उठाना पड़ा है। गुवहाटी हाईकोर्ट ने नागांव में आगजनी के एक मामले में एक आरोपी के घर को तोड़ने से संबंधित एक मामले में चेतावनी दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि पुलिस “जांच की आड़ में” किसी के घर पर बुलडोजर नहीं चला सकती है। बिना अनुमति के, और अगर ऐसी प्रथाएं जारी रहीं तो “इस देश में कोई भी सुरक्षित नहीं है।

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछे सवाल 

उत्तर प्रदेश में बुलडोजर के बढ़ते उपयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। बीते जुलाई में जमीयत उलेमा ए हिंद और वृंदा करात की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि क्या प्रशासन यह स्वीकार करने को तैयार है कि घरों पर बुलडोजर चलाना एक गलत कार्य है और ऐसी कार्रवाई करना बंद कर देगा। वहीं 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट कहा था कि वह आपराधिक मामलों में आरोपी व्यक्तियों के घरों को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर का उपयोग करने की वैधता पर कानून बनाने के लिए सितंबर में एक याचिका की जांच करेंगे। सुप्रीम कोर्ट में  जमीयत-उलामी-ए-हिंद ने आरोप लगाया था कि मुसलमानों को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है।

आवास जीवन के अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है

सुप्रीम कोर्ट अपने पूर्व के कई निर्णयों में कह चुका है कि बिना कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा किए हुए किसी के घर या अन्य इमारतों को तोड़ना गलत है। इंडियन एक्सप्रेस की पांच दिसंबर 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (1985) मामले में, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की बेंच ने फैसला सुनाया था कि आवास जीवन के अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है।

इसने रेखांकित किया कि प्रतिकूल रूप से प्रभावित लोगों की निष्पक्ष सुनवाई के बाद ही विध्वंस अंतिम उपाय होना चाहिए। तब से अदालतों ने नोटिस, सुनवाई और पुनर्वास के अधिकारों को मजबूत किया है। चमेली सिंह बनाम यूपी राज्य (1995) में, सुप्रीम कोर्ट ने “आश्रय के अधिकार” को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ई) के तहत आंदोलन की स्वतंत्रता के एक घटक के रूप में मान्यता दी थी।
सुदामा बनाम दिल्ली सरकार (2010) में  सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसकी पुष्टि की गई। दिल्ली उच्च न्यायालय फैसला सुना चुका है कि लोगों को बेदखल करने से पहले, राज्य को लोगों के पुनर्वास के तरीके खोजने होंगे।

नगरपालिका कानूनों को हथियार बनाती है सरकार 

विभिन्न राज्य सरकारें अतिक्रमण के आरोपी लोगों को निशाना बनाने के लिए नगरपालिका कानूनों को हथियार बनाती हैं। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि पहले जो शहरी आवास की समस्या थी, वह सांप्रदायिक राजनीति के साथ जुड़ गई है। देश के कई हिस्सों में अवैध अतिक्रमण अब जिला प्रशासन के लिए प्रदर्शनकारियों या दंगाई होने के आरोपियों को दंडित करने का एक बहाना बन गया है। जो अधिकतर एक ही समुदाय से संबंध रखते हैं। इससे समाज के एक तबके में भय और अविश्वास का माहौल बन रहा है। बुलडोजर एक्शन में अक्सर ही निर्दोषों के प्रभावित होने की आशंका रहती है। कई लोग आरोप लगाते हैं कि इस तरह के एक्शन से अपराध के आरोपियों के निर्दोष परिवार जनों को भी परेशानी और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।

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