Nuh violence : हरियाणा के मेवात में हुई हिंसा के बाद प्रदेश के ‘राजनीतिक’ और ‘सामाजिक’ समीकरणों में बदलाव की आहट सुनाई पड़ रही है। किसान और पहलवान आंदोलन में कई तरह के आरोप झेल चुके जाट समुदाय ने अब मेवात की हिंसा से खुद को पूरी तरह अलग रखने का फैसला किया है। जाट समुदाय के इस कदम को खाप पंचायतों का भी समर्थन मिल रहा है। सोशल मीडिया पर जाटों को उकसाने के लिए कई तरह के संदेश लिखे गए, मगर इस समुदाय ने मेवात से पूरी तरह दूरी बनाकर रखी। जाट महासभा के सचिव युद्धवीर सिंह ने साफतौर पर कह दिया कि जाट समाज ‘सेक्युलर’ है। हम किसी की गलत बात को स्पोर्ट नहीं करेंगे। मेवात में अगर सरकार ने वक्त रहते कदम उठाया होता, तो हिंसा टाली जा सकती थी। मोनू मानेसर के खिलाफ सरकार ने एक्शन क्यों नहीं लिया। राजनीतिक जानकारों का कहना है, जाट समुदाय के इस कदम से भाजपा और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सोशल इंजीनियरिंग गड़बड़ा सकती है।
किसान आंदोलन के दौरान जाट समुदाय को कई तरह के आरोपों की बौछार झेलनी पड़ी थी। यहां तक कि इस समुदाय के लिए ‘खालिस्तान समर्थक’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद जंतर-मंतर पर जब पहलवानों का आंदोलन शुरू हुआ, तो उस दौरान भी इस समुदाय को अलग-थलग करने का प्रयास किया गया। ये अलग बात है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जाटों ने भाजपा को समर्थन देकर प्रदेश की सभी दस सीटें पीएम मोदी की झोली में डाल दी थीं। हालांकि विधानसभा में भाजपा को उतना समर्थन नहीं मिल सका। प्रदेश में 2016 के दौरान हुए आरक्षण आंदोलन में जाट समुदाय को अलग-थलग कर प्रदेश की पॉलिटिक्स में नई ‘सोशल इंजीनियरिंग’ का गणित तैयार करने की कोशिश हुई। हरियाणा की सत्ता में आने से पहले भाजपा को गैर जाटों की पार्टी या शहरी लोगों की पार्टी बताया जाता था। मेवात हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह के संदेश देखने को मिले हैं। इनमें अप्रत्यक्ष तौर पर जाट समुदाय से अपील की गई कि वे मेवात में हिंदुओं का साथ दें। बजरंग दल के द्वारा, जाट समाज से मदद का आह्वान किया गया था, लेकिन जाट लीडरशीप ने उनका साथ देने से मना कर दिया।
जाटों के साथ राजपूत समुदाय को लेकर क्या कहा
जाट महासभा के सचिव युद्धवीर सिंह ने कहा, जाट समाज धर्म निरपेक्ष है। मेवात हिंसा में हरियाणा सरकार की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। हिंसा, किसी बात का हल नहीं है। धनखड़ खाप के प्रधान और सर्व खाप पंचायत के कोऑर्डिनेटर डॉ. ओम प्रकाश धनखड़ ने भी दो टूक बात कह दी। वे बोले, मेवाती हमारे भाई हैं। हमारे लोगों को उनके खिलाफ किसी भी हिंसा में शामिल नहीं होना है। यह हिंसा प्रायोजित है। इससे पहले डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने भी कहा था कि नूंह में यात्रा आयोजकों ने जिला प्रशासन को पूरी जानकारी नहीं दी। प्रशासन को यह मालूम ही नहीं था कि यात्रा में कितनी भीड़ जुटेगी। केंद्रीय मंत्री और गुरुग्राम के लोकसभा सांसद राव इंद्रजीत सिंह ने भी हिंदू संगठनों द्वारा निकाली गई ब्रजमंडल यात्रा पर सवाल उठा दिया। उन्होंने कहा, इस तरह की यात्रा में हथियार लेकर कौन जाता है। एक पक्ष की ओर से उकसावे वाली कार्रवाई तो हुई है। इसके बाद सोशल मीडिया में एक बहस छिड़ गई। जाटों के साथ राजपूत समुदाय को लेकर भी कहा जाने लगा कि उन्हें मेवात में हिंदुओं का साथ देना चाहिए। हालांकि दोनों ही समुदायों के लोगों ने अपने-अपने तर्कों के द्वारा, मेवात में कोई हस्तक्षेप करने की बात को नकार दिया।
जाटों को चने के पेड़ पर चढ़ाने की कोशिश
ट्विटर पर अनुज सहारण ने लिखा, ये जो जाट समाज के ठेकेदार बन के घूम रहे हैं, उनको बताना चाहता हूं कि जाट धर्म की लड़ाई मे हमेशा आगे रहा है। अब भी अपने धर्म के लिए सर कटाने का माद्दा रखता है। मेवात हिंसा में सेक्युलर वही लोग बन रहे हैं, जो मुजफरनगर के दंगों मे जयंत चौधरी के साथ डर के दिल्ली भाग गए थे। हरेंद्र चौधरी ने लिखा, धर्म के कथित रक्षक, जाटों के युवाओं को चने के पेड़ पर चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। यही लोग थे जो महिला पहलवानों के साथ शोषण के आरोपी ब्रजभूषण शरण सिंह के पक्ष में जाट समाज की हमारी महिला पहलवानों के लिए घटिया टिप्पणियां कर रहे थे। अजीत सिंह ने लिखा, मेवात में हुई हिंसा के दौरान जाट समाज ने शांति और समझदारी का रास्ता चुना है। पूरे देश में इसकी चर्चा है। नफरत की राजनीति का यही सबसे सही जवाब है। दंगा भड़काने वालों के बहकावे में मत आओ। न्याय का पक्ष चुनो। अपने मुद्दों पर बढ़ते रहो। जाट एसोसिएशन ने लिखा, जाटों ने आज दिल जीत लिया। हम शिक्षित बनेंगे। ऐसे दंगे कराने वालों के बच्चे विदेश में पढ़ते हैं। ये लोग हमें दंगों में धकेल देते हैं। आरएसएस और बजरंग दल की चाल को अब जाट समाज समझने लगा है।
जाट समाज को समझ आया आरएसएस का फॉर्मूला
जाट समुदाय द्वारा कड़ा स्टैंड लिए जाने के बाद सोशल मीडिया में उन लोगों के नाम के साथ उनके गोत्र और जाति दिखाई जाने लगी, जो मेवात हिंसा में मारे गए थे। इनमें अभिषेक राजपूत, प्रदीप शर्मा और शक्ति सैनी के नाम दिखाए गए। इन समुदायों को उकसाने का प्रयास किया गया। मुजफ्फरनगर दंगे की याद दिलाई गई। जाट समुदाय के युवाओं ने लिखा, आज जो लोग मेवात में हमसे मदद मांग रहे हैं, उन्होंने हमें टुकड़े टुकड़े गैंग, टूलकिट और खालिस्तानी की उपाधि दे दी थी। दिल्ली डीयू एसोसिएशन ने लिखा, एक कहावत है कि ‘अक्ल बादाम खाने से नहीं ठोकर खाने से आती है’।
पिछले दस साल में जाट समाज जितनी ठोकर (धोखा) खा चुका है, वैसी किसी ने नहीं खाई होगी। जाट समाज का युवा आरएसएस का वो फॉर्मूला भी बखूबी समझ चुका है। जब मुस्लिमों के सामने लड़ाई हो तो ‘जाट हिंदू’ बना दिया जाता है और जब अपना हक मांगे या इंसाफ की बात करें, तो तुरंत जाट देशद्रोही, खालिस्तानी या आतंकवादी बना दिए जाते हैं। चुनाव से पहले फिर से मुजफ्फरनगर वाला माहौल बनाने की तैयारी थी। जाट समाज का युवा पहली बातें भूला नहीं है। वह अपना भला बुरा अच्छे तरीके से जानता है। न दूध का धुला हिंदू है न ही मुस्लिम। धर्म को लेकर अति कट्टरता ही इस तरह के फसाद की जड़ होती है।
आमने सामने आए गहलोत और खट्टर
मेवात हिंसा के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत आमने सामने आए गए हैं। मोनू मानेसर को लेकर विपक्षी दलों ने खट्टर सरकार पर निशाना साधा है। मनोहर लाल खट्टर ने कहा, मोनू की गिरफ्तारी के लिए राजस्थान पुलिस का सहयोग करेंगे। इस पर गहलोत ने ट्वीट में लिखा, अब खट्टर कह रहे हैं कि राजस्थान पुलिस की हरसंभव मदद करेंगे। जब हमारी पुलिस नासिर-जुनैद हत्याकांड के आरोपियों को गिरफ्तार करने गई, तो हरियाणा पुलिस ने कोई सहयोग नहीं किया, बल्कि राजस्थान पुलिस पर एफआईआर तक दर्ज कर ली। जो आरोपी फरार हैं उन्हें तलाशने में हरियाणा पुलिस द्वारा, राजस्थान पुलिस का सहयोग नहीं किया जा रहा। खट्टर, हरियाणा में हो रही हिंसा को रोकने में नाकाम रहे हैं और अब सिर्फ लोगों को ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के बयान दे रहे हैं जो उचित नहीं है। मेवात को लेकर जाट समुदाय ने जो रास्ता अपनाया है, उसके राजनीतिक मायने भी हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। कांग्रेस और जजपा जैसी पार्टियां, जाट समुदाय की इस नई पहल को चुनाव में भुना सकती हैं।