नई दिल्ली : बुराड़ी सामूहिक आत्महत्या कांड को पूरे पांच साल हो गए। एक जुलाई साल 2018 की सुबह देश ही नहीं, बल्कि विदेशी मीडिया के लिए उत्तरी दिल्ली का बुराड़ी इलाका चर्चाओं का विषय बन गया था। यहां एक साथ घर के 10 लोग फंदे से लटके थे, जबकि घर की सबसे बुजुर्ग महिला का शव एक कमरे से बरामद हुआ था। आसपास के लोगों का कहना है कि आज भी वो घर डर का अहसास कराता है। एक साथ इतने लोगों की सामूहिक आत्महत्या को देखकर जांच दल के भी रोंगटे खड़े हो गए थे। मौके पर हालात देखकर पुलिस ने शुरुआत में इस संबंध में हत्या का मामला दर्ज कर मामले की जांच अपराध शाखा से करवाई गई थी।
मामले की जांच में पता चला कि बुराड़ी के चुंडावत परिवार ने तंत्र-मंत्र के चक्कर में घर के 11 लोगों की जान दांव पर लगा दी, जिसके बाद सभी की मौत हो गई। मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी (पोस्टमार्टम) करवाने के बाद पता चला कि कोई भी आत्महत्या नहीं करना चाहता था। जांच के बाद दिल्ली पुलिस ने मामले में केस की क्लोजर रिपोर्ट लगाकर इसको बंद करवा दिया था। इतने बड़े हादसे को नेटफ्लिक्स ने भी भुनाया। उसने घटना पर एक डॉक्योमेंट्री बना दी, जिसको खूब देखा गया।
बुराड़ी के संत नगर इलाके में चुंडावत परिवार दो मंजिला मकान में रहता था। परिवार में बुजुर्ग नारायणी देवी (77), इनके दो बेटे भावनेश भाटिया (50), ललित भाटिया (45), भावनेश की पत्नी सविता (48), ललित की पत्नी टीना (42), नारायणी देवी की विधवा बेटी प्रतिभा (57) और तीनों भाई-बहनों के बच्चे प्रियंका (33), नीतू (25), मोनू (23), ध्रुव (15) और शिवम (15) थे।
भावनेश उर्फ भुप्पी घर में ही किराने की दुकान चलाता था, जबकि ललित की लकड़ी की दुकान थी। भावनेश की दुकान के लिए तड़के दूध और ब्रेड आया था, लेकिन सात बजे तक जब न तो भावनेश की दुकान खुली और न ही ब्रेड-दूध उठा तो एक बुजुर्ग पड़ोसी घर के ऊपर पहुंचे। ऊपर पहुंचते ही उनके होश उड़ गए। पहली मंजिल पर पहुंचने पर अंदर छत पर लगे लोहे के जाल पर फंदे से पूरा परिवार लटका था। उनके हाथ-पैर बंधे थे। सभी की आंखों पर सफेद रंग की पट्टी भी बंधी हुई थी।
मामले की सूचना पुलिस को दी गई। इसके बाद घटना आग की तरह फैली और हड़कंप मच गया। फिर देशभर के अलावा कई दूसरे देशों की मीडिया वहां पहुंच गई। घर की छत पर परिवार का पालतू कुत्ता बंधा हुआ पाया गया। उसकी भी चंद दिनों बाद मौत हो गई। पुलिस ने मामले की छानबीन शुरू की तो घर के अंदर से 13 रजिस्टर बरामद हुए थे। उनकी जांच करने पर पता चला कि यह कोई सामूहिक हत्या नहीं थी, बल्कि एक अनुष्ठान था। परिवार को लगता था कि ललित और भावनेश के पिता की आत्मा पूजा-पाठ के बाद उनके पास आती है।
पुलिस को रजिस्टरों की जांच से पता चला कि घर में खुशहाली और मोक्ष के लिए पिता की आत्मा के कहने पर ही अनुष्ठान किया गया था। सामूहिक आत्महत्या से एक दिन पूर्व उसकी बकायदा तैयारी की गई थी। फंदे से लटकने के लिए बाजार से स्टूल लाए गए थे। घर में नाबालिग इस अनुष्ठान के लिए तैयार नहीं थे तो उनके साथ डांट-डपटकर जबरदस्ती की गई। इसके भी निशान मिले थे।
तंत्र-मंत्र के दौरान ललित और उसकी पत्नी टीना ने सबको फंदा लगाने के बाद सभी के स्टूल हटा लिए थे। बाद में खुद भी दोनों फंदे से लटक गए थे। छानबीन के बाद यह पता चला कि घर के सभी लोगों को इस बात का पूरा यकीन था कि इस पूरी विधि के बाद कोई भी नहीं मरेगा। लेकिन सभी अंधविश्वास के चक्कर में अपनी जान गंवा बैठे थे।