सीकर-श्रीमाधोपुर(अजीतगढ़) : सीकर के ऐसे किसान, जिनकी उम्र है 75 साल। खेती का तरीका है गांधीवादी। इतना ही नहीं IIT जैसे संस्थान और एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटीज उनसे लेक्चर कराने के लिए अपॉइंटमेंट लेती हैं। उन्होंने जैविक खेती के क्षेत्र में नवाचार कर भारी-भरकम सब्जियां उगाईं और बड़ी हस्तियों को गिफ्ट की। लोग उन्हें गोभी मैन कहने लगे। लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में उनका नाम दर्ज है।
म्हारे देस की खेती में इस बार बात करेंगे पद्मश्री से सम्मानित किसान जगदीश प्रसाद पारीक की।
सीकर जिला मुख्यालय से करीब 105 किलोमीटर दूर श्रीमाधोपुर की ग्राम पंचायत अजीतगढ़ के निवासी हैं जगदीश प्रसाद पारीक। अजीतगढ़ में इस वक्त उनके 20 बीघा के फार्म हाउस में एक बीघा में चुकंदर की फसल हो रही है। वह 54 साल से खेती कर रहे हैं और जैविक खाद का ही इस्तेमाल करते हैं। खेती में नवाचार को देखते हुए 2018 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजा।
चुकंदर से 3 महीने में कमाई 1 लाख
जगदीश प्रसाद ने बताया कि चुकंदर से 3 महीने में 1 लाख की कमाई होती है। चुकंदर का भाव 40 रुपए प्रति किलो मिल रहा है। खेत से ही व्यापारी चुकंदर का सौदा कर ले जाते हैं। राजस्थान के शहरों के अलावा, यूपी व दिल्ली तक चुकंदर जा रहा है।
सीजन में 80 से 90 क्विंटल तक चुकंदर पैदा हो रहा है। चुकंदर की खेती सालभर की जा सकती है। इसकी बुवाई के लिए ठंडा मौसम अनुकूल रहता है। दोमट व बलुई मिट्टी सबसे बेहतर होती है। मिट्टी का पीएच मान 6-7 के बीच होना जरूरी है।
ऐसे करें खेत की तैयारी
उन्होंने बताया कि सबसे पहले खेत की गहराई से जुताई करें। खरपतवार हटाकर गोबर की खाद से खेत तैयार करें। क्यारी बनाकर मेड़ पर चुकंदर की बुवाई करें। चुकंदर के बीजों को 2 सेंटीमीटर की गहराई तक बोएं। दूसरा बीज 10 सेंटीमीटर की दूरी पर।
उन्होंने कहा कि मार्केट में चुकंदर की मांग रहती ही है। इससे खून की कमी, एनीमिया, कैंसर, हृदय रोग, पित्ताशय विकारों, बवासीर, गुर्दे के विकारों जैसी समस्याएं दूर करने में मदद मिलती है।
20 बीघा में खेती कर सालाना कमा रहे 15 लाख
जगदीश प्रसाद अपने फार्म हाउस में सब्जियां, दलहनी फसलें, तिलहन और फ्रूट्स उगाते हैं। खेती को लेकर हर दिन नए-नए शोध करते हैं। इसके साथ ही सब्जियों, फसलों के बीज भी तैयार करते हैं। फल, सब्जी, बीज आदि से उनकी सालाना कमाई 15 लाख रुपए है। उन्हें मार्केट भी नहीं जाना पड़ता, व्यापारी खुद उनके फार्म हाउस आते हैं। वजह है बेहतरीन क्वालिटी।
इसके अलावा दुधारू पशुओं से 60 लीटर तक दूध हो जाता है। दूध से रोजाना 2 हजार रुपए की इनकम होती है। इस तरह सालाना सिर्फ दूध से इनकम 7 लाख अलग से है। उन्होंने कहा कि ऑर्गेनिक खाद इस्तेमाल करने के कारण पशुओं को भी बिना दवा के चारा मिलता है, इससे दूध की क्वालिटी अच्छी रहती है।
मेरी खेती गांधीवादी, किसानी में अहिंसा
जगदीश का कहना है, ‘मैं खेती में जहरीली दवाएं इस्तेमाल नहीं करता। मैं गांधीवादी हूं। अहिंसा में यकीन करता हूं। दवा के छिड़काव से सूक्ष्म जीव मर जाते हैं। हर जीव कुदरत के लिए जरूरी है। इसलिए ऑर्गेनिक तरीके से ही खेती करता हूं। जो जीवों को बचाकर की जाए, मैं मानता हूं वही जैविक खेती है। मैंने कभी फसल खराबे का मुआवजा नहीं मांगा। न कोई आंदोलन किया। मैं न तो कोई सरकारी पेंशन लेता हूं और न सरकारी मदद चाहता हूं। किसान को अगर ओला, बारिश, पाला से नुकसान हुआ है तो प्रलोभन, सब्सिडी, मुआवजा की मांग करने के बजाय अगली फसल पर ध्यान देना चाहिए।’
वह जैविक मेडिकेटेड तरीके से बीज तैयार करते हैं, जिसे भारत सरकार ने मान्यता दी है और सीड को आईसीआर ने मंजूरी दी है। परंपरागत जैविक खेती पर 6 महीने पहले उन्होंने बुक पब्लिश कराई है। उनके आर्टिकल मैग्जीन में प्रकाशित होते हैं। देशभर से किसान उनसे संपर्क करते हैं या मिलने अजीतगढ़ तक पहुंचते हैं। वे फल, बीज वे फसल के रोगों के लिए किसानों को देसी उपाय बताते हैं।
6 राष्ट्रपति से मिल चुके, किसान वैज्ञानिक का सम्मान
जगदीश अब तक 6 राष्ट्रपति से मिल चुके हैं। राष्ट्रपति से उन्हें किसान वैज्ञानिक तक का सम्मान मिला है। उन्होंने बताया कि 2001 में जैविक तरीके से 11 किलो की गोभी उगाई। तब लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में उनका नाम दर्ज हुआ।
1990 से वह देश के तमाम शीर्ष आईआईटी इंस्टीट्यूट व कृषि इंस्टीट्यूट में जाकर जैविक कृषि की विधि बताते हैं। बड़े इंस्टीट्यूट उनके लेक्चर के लिए अपॉइंटमेंट लेते हैं। उन्होंने कहा कि अब मैं अमेरिका की 27 किलो गोभी का रिकॉर्ड तोड़ना चाहता हूं।
जगदीश प्रसाद अपने खेत की गोभी कई हस्तियों को भेंट कर चुके हैं। इसलिए उन्हें गोभीमैन के नाम से भी जाना जाता है। 2 हैक्टेयर में नींबू, बेल, गोभी, अनार, जोधपुरी बेर, देसी फल-सब्जियों की पैदावार करने वाले जगदीश प्रसाद इस उम्र में भी मेहनत कर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज करवाना चाहते हैं। वह सिर्फ़ दो किलो वज़न से पीछे हैं। अभी गोभी के वजन का रिकॉर्ड 27.5 किलो का है, और वे 25.5 किलो तक की गोभी उगाने में कामयाब हो गए हैं।
जगदीश प्रसाद ने बताया कि वर्ष 2000 से पहले आसपास बीज भी उपलब्ध नहीं था। इसलिए मैं जयपुर (चार दरवाजा) क्षेत्र में मालियों के कुएं पर गया व फूल गोभी की पौध को देखा। उसके बोने के तौर तरीकों की जानकारी ली एवं दो बीघा जमीन के लिए फूल गोभी की पौध लेकर आया।
क्यारियां बनाईं व उनमें एक और डेढ़ फुट के अंतराल पर गोभी लगवा दी। तीन-चार दिन बाद दूसरा पानी दिया। नए पत्ते निकलने के बाद निराई-गुड़ाई की तथा खड्डे में गोबर-मींगणी-आक- नीम-झोझरू आदि का सड़ाया हुआ खाद तैयार था, उसको पानी के साथ क्यारियों में बहाया। इस तरह एक महीने के अन्दर सभी तरह की सब्जियों की खरपतवार निकाल कर गुड़ाई की व पानी डाला उससे पौधे स्वस्थ हो गए।
फिर जगदीश इतने पारंगत हो गए कि गोभी का स्पेशल सीड तैयार कर लिया। उसे अजीतगढ़ सलेक्शन नाम दिया है। कीट प्रतिरोधक क्षमता रखने वाले इस बीज की खास बात यह है कि ग्रीष्म ऋतु (मुख्य माह जून से अक्टूबर तक) में भी किसान बो सकते हैं।
गोभी की इस किस्म के लिए 2001 में ग्रास रूट्स इनोवेशन अवॉर्ड से सम्मानित होने के बाद इनके बीज को आईपीआर (इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स) का भी धारक बना दिया गया है। जगदीश अब अपने बीज को पेटेंट करवाना चाहते हैं। इस बीज की जयपुर कृषि अनुसंधान केंद्र ने जांचकर इसे अन्य किस्मों से आठ गुना से ताकतवर बताया। पिछले साल देश के कई राज्यों ने उनसे तकरीबन एक क्विंटल बीज खरीदे।
54 साल से कर रहे ऑर्गेनिक खेती
बता दें कि 75 साल के जगदीश प्रसाद 1970 से ही ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। पिता के निधन के बाद पढ़ाई बीच में ही छोड़कर उन्होंने खेती करना शुरू कर दिया था। उन्होंने गोभी से खेती की शुरुआत की और इसकी किस्मों को लेकर कई नए प्रयोग किए। उन्होंने गोभी का आधा व पौने एक किलो का फूल उगा कर सबको चौंका दिया था।