झुंझुनूं-सूरजगढ़ : स्वतंत्रता सेनानी कस्तूरबा गाँधी और समाज सुधारक ज्योतिबा फुले की जयंती मनाई

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : नीलेश मुदगल

झुंझुनूं-सूरजगढ़ : राष्ट्रीय साहित्यिक, सांस्कृतिक व सामाजिक संस्थान आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वाधान में देश की आजादी के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी कस्तूरबा गाँधी और 19वीं सदी के समाज सुधारक, विचारक, दार्शनिक, लेखक व समाज प्रबोधक महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती सूरजगढ़ और पूना में मनाई। स्वतंत्रता सेनानी कस्तूरबा गाँधी और समाज सुधारक ज्योतिबा फुले की प्रतिमा पर पुष्पमाला चढ़ाकर दीप प्रज्वलित कर उनके जीवन संघर्ष को याद किया। आदर्श समाज समिति इंडिया कला एवं संस्कृति विभाग की अध्यक्ष वैशाली गायकवाड़ के नेतृत्व में संस्थान के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने महात्मा फूले वाड़ा यानी पूना में महात्मा ज्योतिबा फुले के घर पर जाकर उनकी प्रतिमा पर पुष्पमाला चढ़ाकर महान समाज सुधारक को नमन किय। कला एवं संस्कृति विभाग की अध्यक्ष वैशाली गायकवाड़ ने कहा- आज 11 अप्रैल को जिन दो महान आत्माओं की जयंती है, उनका संबंध पूना से रहा है। ज्योतिबा फुले का जन्म पूना में हुआ था। उनका कर्म क्षेत्र भी पूना महाराष्ट्र रहा है। पूना में ही उनकी मृत्यु हुई थी। कस्तूरबा गांधी स्वाधीनता आंदोलन की अग्रणी नायिका थी और उनका कार्यक्षेत्र अविभाजित भारत यानी कि पूरा हिंदुस्तान रहा है। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्हें आगाखान महल पूना में कैद किया गया था, जहां पर जेल में रहते हुए 1944 में उन्होंने शहीद की मौत पाई और देश की आजादी के लिए बलिदान दिया।

आगा खान पैलेस में आज भी कस्तूरबा गांधी की समाधि मौजूद है। समाज सुधारक ज्योतिबा फुले के बारे में सुजाता गायकवाड़ व पुणे जिलाध्यक्ष जयश्री गुरव ने बताया कि उनका मूल उद्देश्य स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करना, बाल विवाह का विरोध, विधवा विवाह का समर्थन करना रहा है। फुले समाज की कुप्रथा, अंधश्रद्धा की जाल से समाज को मुक्त करना चाहते थे। अपना सम्पूर्ण जीवन उन्होंने स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने में, स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में व्यतीत किया। 19 वीं सदी में स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी। फुले महिलाओं को स्त्री-पुरुष भेदभाव से बचाना चाहते थे। उन्होंने कन्याओं के लिए भारत देश की पहली पाठशाला पूना में बनाई थीं। स्त्रियों की तत्कालीन दयनीय स्थिति से फुले बहुत व्याकुल और दुखी होते थे इसीलिए उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि वे समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाकर ही रहेंगे। उन्होंने अपनी धर्मपत्नी सावित्रीबाई फुले को स्वयं शिक्षा प्रदान कर महिलाओं को शिक्षित करने के लिए अध्यापिका बनाया। कस्तूरबा गांधी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए धर्मपाल गांधी ने बताया कि कस्तूरबा गांधी के जन्मदिवस 11 अप्रैल को ‘राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस’ के रूप में घोषित किया गया है। आधिकारिक तौर पर इस प्रकार के दिवस की घोषणा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है।

इस दिन देशभर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है ताकि गर्भवती महिलाओं के पोषण पर सही ध्यान दिया जा सके। कस्तूरबा गाँधी, महात्मा गाँधी के ‘स्वतंत्रता कुमुक’ की पहली महिला प्रतिभागी थीं। कस्तूरबा गाँधी का अपना एक दृष्टिकोण था, उन्हें आज़ादी की कीमत और महिलाओं में शिक्षा की महत्ता का पूरा भान था। स्वतंत्र भारत के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना उन्होंने भी की थी। उन्होंने हर क़दम पर अपने पति मोहनदास करमचंद गाँधी का साथ निभाया था। ‘बा’ जैसा आत्मबलिदान का प्रतीक व्यक्तित्व उनके साथ नहीं होता तो गाँधी जी के सारे अहिंसक प्रयास इतने कारगर नहीं होते। कस्तूरबा गाँधी ने अपने नेतृत्व के गुणों का परिचय भी दिया था। जब-जब गाँधी जी जेल गए थे, वो स्वाधीनता संग्राम के सभी अहिंसक प्रयासों में अग्रणी बनी रहीं। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश की आजादी और सामाजिक उत्थान में समर्पित कर दिया। 1922 में जब बापू गिरफ्तार किये गये और उन्हें छह साल की सजा हुई उस समय उन्होंने जो वक्तव्य दिया वह उन्हें वीरांगना के रूप में प्रतिष्ठित करता है।

उन्होंने गांधी जी की गिरफ्तारी के विरोध में विदेशी कपड़ों के त्याग के लिए लोगों का आह्वान किया। बापू का संदेश सुनाने नौजवानों की तरह देश के गाँवों में घूमती रहीं। 1930 में दांडी कूच और धरासणा के धावे के दिनों में बापू के जेल जाने पर बा एक प्रकार से बापू के अभाव की पूर्ति करती रहीं। वे पुलिस के अत्याचारों से पीड़ित जनता की सहायता करती, धैर्य बँधाती फिरीं। 1932 और 1933 का अधिकांश समय उनका जेल में ही बीता। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तार होने के बाद कस्तूरबा गांधी जेल में शहीद की मौत मरी और देश की आजादी के लिए बलिदान दिया। आदर्श समाज समिति इंडिया परिवार महान आत्मा को बार-बार नमन करता है।

महान आत्माओं की जयंती कार्यक्रम में आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गाँधी, कला एवं संस्कृति विभाग की अध्यक्ष वैशाली गायकवाड़, पूना जिलाध्यक्ष जयश्री गुरव, मार्गदर्शक मनीषा वंकाडे, सुजाता गायकवाड़, सुनील गाँधी, बृजेश, सरिता, पिंकी, दिनेश, रवि कुमार, अंजू गांधी, भावना इंगवले, उज्वला गिड्डे, परवीन जमादार, रागिनी ननवरे, उषा पाटील, संगीता बोरकर, तारा साहू, संगीता दयाळ, निता साखरे, संगीता अवधूत, साधना कदम, साक्षी धुमाळ, त्रिशाला वर्मा, पूनम टिळेकर, सोनल मिसळे, सुनिता कंठाळे आदि अन्य गणमान्य लोगों ने भाग लिया। संस्थान के अध्यक्ष धर्मपाल गाँधी और वैशाली गायकवाड़ ने सभी का आभार व्यक्त किया।

Web sitesi için Hava Tahmini widget