गुजरात-हीराबा : ‘मां, ये सिर्फ एक शब्द नहीं है। जीवन की ये वो भावना होती जिसमें स्नेह, धैर्य, विश्वास, कितना कुछ समाया होता है। दुनिया का कोई भी कोना हो, कोई भी देश हो, हर संतान के मन में सबसे अनमोल स्नेह मां के लिए होता है। मां, सिर्फ हमारा शरीर ही नहीं गढ़ती बल्कि हमारा मन, हमारा व्यक्तित्व, हमारा आत्मविश्वास भी गढ़ती है। और अपनी संतान के लिए ऐसा करते हुए वो खुद को खपा देती है, खुद को भुला देती है।’
ये लाइनें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मां के 100वें जन्मदिन पर लिखीं थीं। प्रधानमंत्री ने एक लेख के लिए मां से जुड़ी कई रोचक बातों को साझा की थीं। इसी साल 18 जून को पीएम मोदी की मां हीराबा ने अपना 100वां जन्मदिन मनाया था। आज उनका निधन हो गया। आज हम पीएम मोदी की यादों के पिटारे से दस किस्से आपके साथ शेयर करेंगे…
1. जब मां का वीडियो देख चहक उठे थे पीएम मोदी
हीराबा के 100वें जन्मदिन से ठीक पहले पीएम मोदी को उनके भतीजे ने एक वीडियो भेजा था। इसमें पीएम मोदी की मां हीराबा गांधीनगर स्थित घर पर भजन कीर्तन कर रहीं थीं। पीएम मोदी ने अपने लेख में लिखा, ‘पिछले ही हफ्ते मेरे भतीजे ने गांधीनगर से मां के कुछ वीडियो भेजे हैं। घर पर सोसायटी के कुछ नौजवान लड़के आए हैं, पिताजी की तस्वीर कुर्सी पर रखी है, भजन कीर्तन चल रहा है और मां मगन होकर भजन गा रही हैं, मंजीरा बजा रही हैं। मां आज भी वैसी ही हैं। शरीर की ऊर्जा भले कम हो गई है लेकिन मन की ऊर्जा यथावत है।’
2. कम संसाधनों में भी खुश रहती थीं, मचान पर बैठकर खाना बनाती थीं
पीएम मोदी का बचपन भी तंगहाली में बीता। वडनगर के जिस घर में वह अपने परिवार के साथ रहते थे, वो बहुत ही छोटा था। उस घर में कोई खिड़की नहीं थी, कोई बाथरूम नहीं था, कोई शौचालय नहीं था। कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो एक-डेढ़ कमरे का ढांचा ही घर था। उसी में पीएम मोदी की मां-पिताजी, सारे भाई-बहन रहा करते थे। पीएम मोदी ने इससे जुड़ा एक किस्सा बताया है। उन्होंने लिखा, ‘उस छोटे से घर में मां को खाना बनाने में कुछ सहूलियत रहे इसलिए पिताजी ने घर में बांस की फट्टी और लकड़ी के पटरों की मदद से एक मचान जैसी बनवा दी थी। वही मचान हमारे घर की रसोई थी। मां उसी पर चढ़कर खाना बनाया करती थीं और हम लोग उसी पर बैठकर खाना खाया करते थे।’
3. सुबह चार बजे उठकर भजन गाती थीं हीराबा, सारे काम खुद करती थीं
पीएम मोदी अपनी यादों को साझा करते हुए बताते हैं कि मां हमेशा सुबह चार बजे उठ जाती थीं। वह लिखते हैं, ‘मां समय की उतनी ही पाबंद थीं। उन्हें भी सुबह 4 बजे उठने की आदत थी। सुबह-सुबह ही वो बहुत सारे काम निपटा लिया करती थीं। गेहूं पीसना हो, बाजरा पीसना हो, चावल या दाल बीनना हो, सारे काम वो खुद करती थीं। काम करते हुए मां अपने कुछ पसंदीदा भजन या प्रभातियां गुनगुनाती रहती थीं। मां कभी अपेक्षा नहीं करती थीं कि हम भाई-बहन अपनी पढ़ाई छोड़कर उनकी मदद करें। वो कभी मदद के लिए, उनका हाथ बंटाने के लिए नहीं कहती थीं। मां को लगातार काम करते देखकर हम भाई-बहनों को खुद ही लगता था कि काम में उनका हाथ बंटाएं।’
4. घर चलाने के लिए दूसरों के घर बर्तन मांजा करती थीं, चरखा भी चलाया
पीएम मोदी के अनुसार, ‘घर चलाने के लिए उनकी मां दूसरों के घर बर्तन भी मांजा करती थीं। इससे दो चार पैसे ज्यादा मिल जाते थे। इसके अलावा समय निकालकर वह चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे। कपास के छिलके से रूई निकालने का काम, रुई से धागे बनाने का काम, ये सब कुछ मां खुद ही करती थीं। उन्हें डर रहता था कि कपास के छिलकों के कांटें हमें चुभ ना जाएं।’
5. छत से टपकते पानी को बर्तन में जुटाती
प्रधानमंत्री अपने एक लेख में लिखते हैं, ‘मुझे याद है, वडनगर वाले मिट्टी के घर में बारिश के मौसम से कितनी दिक्कतें होती थीं। लेकिन मां की कोशिश रहती थी कि परेशानी कम से कम हो। इसलिए जून के महीने में, कड़ी धूप में मां घर की छत की खपरैल को ठीक करने के लिए ऊपर चढ़ जाया करती थीं। वो अपनी तरफ से तो कोशिश करती ही थीं लेकिन हमारा घर इतना पुराना हो गया था कि उसकी छत, तेज बारिश सह नहीं पाती थी। बारिश में हमारे घर में कभी पानी यहां से टकपता था, कभी वहां से। पूरे घर में पानी ना भर जाए, घर की दीवारों को नुकसान ना पहुंचे, इसलिए मां जमीन पर बर्तन रख दिया करती थीं। छत से टपकता हुआ पानी उसमें इकट्ठा होता रहता था। उन पलों में भी मैंने मां को कभी परेशान नहीं देखा, खुद को कोसते नहीं देखा। आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि बाद में उसी पानी को मां घर के काम के लिए अगले 2-3 दिन तक इस्तेमाल करती थीं। जल संरक्षण का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है।’
6. घर सजाने का शौक था, सुंदर चित्र बनाया करती थीं
प्रधानमंत्री बताते हैं, ‘मां को घर सजाने का, घर को सुंदर बनाने का भी बहुत शौक था। घर सुंदर दिखे, साफ दिखे, इसके लिए वो दिन भर लगी रहती थीं। वो घर के भीतर की जमीन को गोबर से लीपती थीं। आप लोगों को पता होगा कि जब उपले या गोबर के कंडे में आग लगाओ तो कई बार शुरू में बहुत धुआं होता है। मां तो बिना खिड़की वाले उस घर में उपले पर ही खाना बनाती थीं। धुआं निकल नहीं पाता था इसलिए घर के भीतर की दीवारें बहुत जल्दी काली हो जाया करती थीं। हर कुछ हफ्तों में मां उन दीवारों की भी पुताई कर दिया करती थीं। इससे घर में एक नयापन सा आ जाता था। मां मिट्टी की बहुत सुंदर कटोरियां बनाकर भी उन्हें सजाया करती थीं। पुरानी चीजों को रीसायकिल करने की हम भारतीयों में जो आदत है, मां उसकी भी चैंपियन रही हैं। उनका एक और बड़ा ही निराला और अनोखा तरीका मुझे याद है। वो अक्सर पुराने कागजों को भिगोकर, उसके साथ इमली के बीज पीसकर एक पेस्ट जैसा बना लेती थीं, बिल्कुल गोंद की तरह। फिर इस पेस्ट की मदद से वो दीवारों पर शीशे के टुकड़े चिपकाकर बहुत सुंदर चित्र बनाया करती थीं। बाजार से कुछ-कुछ सामान लाकर वो घर के दरवाजे को भी सजाया करती थीं।’वह आगे लिखते हैं, ‘मां इस बात को लेकर हमेशा बहुत नियम से चलती थीं कि बिस्तर बिल्कुल साफ-सुथरा हो, बहुत अच्छे से बिछा हुआ हो। धूल का एक भी कण उन्हें चादर पर बर्दाश्त नहीं था। थोड़ी सी सलवट देखते ही वो पूरी चादर फिर से झाड़कर करीने से बिछाती थीं। हम लोग भी मां की इस आदत का बहुत ध्यान रखते थे। आज इतने वर्षों बाद भी मां जिस घर में रहती हैं, वहां इस बात पर बहुत जोर देती हैं कि उनका बिस्तर जरा भी सिकुड़ा हुआ ना हो। हर काम में पर्फेक्शन का उनका भाव इस उम्र में भी वैसा का वैसा ही है। और गांधीनगर में अब तो भैया का परिवार है, मेरे भतीजों का परिवार है, वो कोशिश करती हैं कि आज भी अपना सारा काम खुद ही करें।’
7. अपने हाथ से मिठाई खिलाती थीं, साड़ी में रुमाल और छोटा तौलिया रखती थीं
पीएम मोदी ने मां से जुड़े इस किस्से को भी शेयर किया। वह लिखते हैं, ‘दिल्ली से मैं जब भी गांधीनगर जाता हूं, उनसे मिलने पहुंचता हूं, तो मुझे अपने हाथ से मिठाई जरूर खिलाती हैं। और जैसे एक मां, किसी छोटे बच्चे को कुछ खिलाकर उसका मुंह पोंछती है, वैसे ही मेरी मां आज भी मुझे कुछ खिलाने के बाद किसी रुमाल से मेरा मुंह जरूर पोंछती हैं। वो अपनी साड़ी में हमेशा एक रुमाल या छोटा तौलिया खोंसकर रखती हैं।’
8. सफाई वाले को चाय पीलाती थीं, पक्षियों के लिए मिट्टी के बर्तन में पानी रखती थीं
पीएम मोदी की मां हीराबा हमेशा आम लोगों का सम्मान करती थीं। उनके घर के बाहर जो साफ-सफाई करने के लिए आता था, उसे भी वह बहुत मान सम्मान देती थीं। पीएम मोदी ने इसका एक किस्सा शेयर किया है। उन्होंने लिखा, ‘वडनगर में हमारे घर के पास जो नाली थी, जब उसकी सफाई के लिए कोई आता था, तो मां बिना चाय पिलाए, उसे जाने नहीं देती थीं। बाद में सफाई वाले भी समझ गए थे कि काम के बाद अगर चाय पीनी है, तो वो हमारे घर में ही मिल सकती है। मेरी मां की एक और अच्छी आदत रही है जो मुझे हमेशा याद रही। जीव पर दया करना उनके संस्कारों में झलकता रहा है। गर्मी के दिनों में पक्षियों के लिए वो मिट्टी के बर्तनों में दाना और पानी जरूर रखा करती थीं। जो हमारे घर के आसपास स्ट्रीट डॉग्स रहते थे, वो भूखे ना रहें, मां इसका भी खयाल रखती थीं।’
9. जब केदारनाथ में लोगों ने मेरा नाम लेकर मां की देखभाल की
पीएम मोदी ने मां के केदारनाथ और बद्रीनाथ यात्रा से जुड़ी एक कहानी शेयर की। उन्होंने लिखा, ‘मेरी मां का मुझ पर बहुत अटूट विश्वास रहा है। उन्हें अपने दिए संस्कारों पर पूरा भरोसा रहा है। मुझे दशकों पुरानी एक घटना याद आ रही है। तब तक मैं संगठन में रहते हुए जनसेवा के काम में जुट चुका था। घरवालों से संपर्क ना के बराबर ही रह गया था। उसी दौर में एक बार मेरे बड़े भाई, मां को बद्रीनाथ जी, केदारनाथ जी के दर्शन कराने के लिए ले गए थे। बद्रीनाथ में जब मां ने दर्शन किए तो केदारनाथ में भी लोगों को खबर लग गई कि मेरी मां आ रही हैं। उसी समय अचानक मौसम भी बहुत खराब हो गया था। ये देखकर कुछ लोग केदारघाटी से नीचे की तरफ चल पड़े। वो अपने साथ में कंबल भी ले गए। वो रास्ते में बुजुर्ग महिलाओं से पूछते जा रहे थे कि क्या आप नरेंद्र मोदी की मां हैं? ऐसे ही पूछते हुए वो लोग मां तक पहुंचे। उन्होंने मां को कंबल दिया, चाय पिलाई। फिर तो वो लोग पूरी यात्रा भर मां के साथ ही रहे। केदारनाथ पहुंचने पर उन लोगों ने मां के रहने के लिए अच्छा इंतजाम किया। इस घटना का मां के मन में बड़ा प्रभाव पड़ा। तीर्थ यात्रा से लौटकर जब मां मुझसे मिलीं तो कहा कि “कुछ तो अच्छा काम कर रहे हो तुम, लोग तुम्हें पहचानते हैं”।
10. देशी उपचार के लिए मां के पास लगती थी भीड़
पीएम बताते हैं कि उनकी मां हीराबा देशी उपचार करती थीं। उन्हें घरेलु विधाओं के बारे में खूब मालूम था। वह छोटे बच्चों के देशी उपचार करती थीं। इसके लिए वडनगर स्थित उनके घर के बाहर सुबह से ही लोगों की भीड़ जुट जाती थी। लोग अपने 6-8 महीने के बच्चों को दिखाने के लिए हीराबा के पास लाते थे। पीएम मोदी लिखते हैं, ‘इलाज करने के लिए मां को कई बार बहुत बारीक पावडर की जरूरत होती थी। ये पावडर जुटाने का इंतजाम घर के हम बच्चों का था। मां हमें चूल्हे से निकली राख, एक कटोरी और एक महीन सा कपड़ा दे देती थीं। फिर हम लोग उस कटोरी के मुंह पर वो कपड़ा कस के बांधकर 5-6 चुटकी राख उस पर रख देते थे। फिर धीरे-धीरे हम कपड़े पर रखी उस राख को रगड़ते थे। ऐसा करने पर राख के जो सबसे महीन कण होते थे, वो कटोरी में नीचे जमा होते जाते थे। मां हम लोगों को हमेशा कहती थीं कि “अपना काम अच्छे से करना। राख के मोटे दानों की वजह से बच्चों को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए”।