सरदारशहर : राजस्थान की सरदारशहर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनावों के नतीजों में भाजपा को निराशा हाथ लगी। 2018 के बाद राज्य में हुए आठ उपचुनावों में पार्टी को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली है। बाकी सभी सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा है। सरदारशहर की सीट भी अब इसी लिस्ट में शामिल हो गई है।
सरदारशहर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के अनिल शर्मा 26852 वोट से जीत गए हैं। उन्हें 91357 वोट मिले जबकि भाजपा के अशोक पींचा को 64,505 वोट मिले। सरदारशहर के चुनावी इतिहास में यह कांग्रेस की दूसरी सबसे बड़ी जीत है। इससे पूर्व अनिल शर्मा के पिता स्व. भंवरलाल शर्मा 1998 में 37550 वोट से जीते थे। इधर, रालोपा प्रत्याशी लालचंद मूंड को 46753 वोट मिले। उन्होंने 46 हजार से अधिक वोट हासिल कर सत्ता-विरोधी वोटों को काटा और भाजपा के लिए राह मुश्किल कर दी।
कांग्रेस की जीत के बाद समर्थकों ने विजयी जुलूस निकाला और मिठाई खिलाकर एक दूसरे का मुंह मीठा करवाया। इससे पूर्व सवेरे से ही मतगणना स्थल के बाहर लोगों की भीड़ जुटी रही। जैसे जैसे मतगणना के चरण पूरे होते गए और कांग्रेस प्रत्याशी को बढ़त मिलती गई समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ती गई। गौरतलब है कि यहां से विधायक कांग्रेस के भंवरलाल शर्मा के निधन के कारण यह सीट रिक्त हो गई थी। जिस पर यहां पांच दिसंबर को उपचुनाव हुए। जिसकी आज मतगणना की गई।
पिता का रिकॉर्ड तो नहीं तोड़ सके, लेकिन दूसरी सबसे बड़ी जीत
कांग्रेस प्रत्याशी अपने पिता स्व. भंवरलाल शर्मा की जीत के अंतर का रिकॉर्ड तो नहीं तोड़ सके, लेकिन वे अब तक के चुनावों में दूसरी बड़े अंतर से जीते हैं। भंवरलाल शर्मा 1998 में 37550 वोटों से जीते थे, यह अब तक चुनावों में सबसे बड़ी जीत है। अब अनिल शर्मा 26852 वोट से जीते हैं। यह अब तक के चुनावों में दूसरी सबसे बड़ी जीत है।
कांग्रेस को दूसरी बार मिले सबसे अधिक वोट
कांग्रेस को इन चुनावों में दूसरी बार सबसे अधिक वोट मिले हैं। इससे पहले 2018 में कांग्रेस के भंवरलाल शर्मा को 95282 वोट मिले थे। अब उनके बेटे अनिल शर्मा को 91357 वोट मिले हैं। वहीं भाजपा को पिछले चार चुनाव में सबसे कम वोट मिले हैं। भाजपा को 2008 में 73902 वोट मिले थे, 2013 में 79675 वोट और 2018 में 78466 वोट मिले थे। इस बार भाजपा को 64505 वोट मिले हैं।
उपचुनाव में कांग्रेस हावी : अब तक 8 में से 6 सीटें जीती
प्रदेश में दिसंबर 2018 में 15 वीं विधानसभा का गठन हुआ। इसके बाद से अब तक यह आठवीं सीट है। जिस पर उपचुनाव हुआ है। इन आठ सीटों में से 6 पर कांग्रेस ने ही जीत दर्ज की जबकि एक पर भाजपा और एक पर रालोपा की जीत हुई। यह प्रदेश में चौथा उपचुनाव था।
पहला उपचुनाव : मई 2019
2018 में हुए विधानसभा मुख्य चुनाव में जीते मंडावा से भाजपा के विधायक नरेंद्र कुमार और खींवसर से आरएलपी विधायक हनुमान बेनीवाल ने मई 2019 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और सांसद बन गए। इन दोनों सीट पर अक्टूबर 2019 में उपचुनाव हुए। इनमें मंडावा से कांग्रेस की रीटा चौधरी और खींवसर से आरएलपी के नारायण बेनीवाल जीते।
दूसरा उपचुनाव : अप्रेल 2021
इसके बाद सहाड़ा से कांग्रेस विधायक कैलाशचंद्र त्रिवेदी, सुजानगढ़ से कांग्रेस विधायक भंवरलाल मेघवाल और राजसमंद से भाजपा की किरण माहेश्वरी के निधन से यह तीन सीटें खाली हो गई। इन पर अप्रैल 2021 में उपचुनाव हुए। इनमें सहाड़ा और सुजानगढ़ से कांग्रेस ने ही जीत दर्ज की जबकि राजसमंद से भाजपा की जीत हुई।
तीसरा उपचुनाव : अक्टूबर 2021
उदयपुर के वल्लभनगर से कांग्रेस के गजेंद्र सिंह शक्तावत और धरियावद से भाजपा विधायक गौतमलाल निनामा का निधन हो गया। जिस पर अक्टूबर 2021 में उपचुनाव हुए। वल्लभनगर में कांग्रेस की जीत हुई जबकि धरिवावद सीट कांग्रेस ने भाजपा से छीन ली।
चौथा उपचुनाव : दिसंबर 2022
सरदारशहर से कांग्रेस विधायक पंडित भंवरलाल शर्मा का अक्टूबर 2022 में निधन हो जाने से इस सीट पर अब उपचुनाव हुआ है। यह 15 वीं विधानसभा में चौथा उपचुनाव है। इसमें कांग्रेस ने पंडित भंवरलाल शर्मा के बेटे अनिल शर्मा को टिकट दिया। जिन्होंने जीत दर्ज की।
आठ में से सिर्फ एक पर जीती भाजपा
भाजपा की हार ने विधानसभा चुनावों के एक साल पहले ही पार्टी की चुनौतियों को भी सामने ला दिया है। 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद से आठ सीटों पर उपचुनाव हुए हैं। राजसमंद को छोड़ दें तो सभी सातों सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। राजसमंद में विधायक किरण माहेश्वरी के निधन के बाद उनकी बेटी दीप्ति ने चुनाव लड़ा और सीट पर भाजपा का कब्जा कायम रखा था। दूसरी ओर मढ़वा और दरियाबाद सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया। सहाड़ा (भीलवाड़ा), बल्लभगढ़ (उदयपुर), सूजानगढ़, खीमसर और अब सरदारशहर में भी पार्टी की हार का सिलसिला जारी है।
भाजपा में नेतृत्व को लेकर घमासान
भाजपा की प्रदेश इकाई में जिस तरह का घमासान मचा है, उसे देखकर कोई भी नहीं कहेगा कि पार्टी 2023 की विधानसभा चुनावों में गुटबाजी का शिकार कांग्रेस को परास्त कर सकेगी। जनता और कार्यकर्ताओं का समर्थन वरिष्ठ नेताओं को नहीं मिल रहा है। रीट जैसे मुद्दे पर भी भाजपा राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर सकी है। जनआक्रोश यात्रा भी फ्लॉप ही रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की रैली में खाली कुर्सियां भी भाजपा की पेशानी पर चिंता की लकीरें खींचकर गई थी।
कौन करेगा चुनावों में पार्टी का नेतृत्व?
अब तक राजस्थान में यह तस्वीर साफ नहीं है कि 2023 के विधानसभा चुनावों में पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा? पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से पार्टी के कई वरिष्ठ नेता खुश नहीं हैं। इस वजह से पार्टी का प्रादेशिक सांगठनिक नेतृत्व भी अलग ही राग अलापता दिखता है, जिसे कार्यकर्ताओं का ही साथ नहीं मिल रहा है। इस वजह से राजस्थान में कांग्रेस की गुटबाजी का लाभ उठाने में भी पार्टी नाकाम ही रही है। पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात की जा रही है, लेकिन हालात बहुत अच्छे नहीं हैं।