बरसात की उमस भरी गर्मी मे जब 400 रूपये की दर से मजदूर ढूढे नहीं मिल रहे तब ऐसे मे मात्र 237 रूपये के बदले हजारों मजदूरो को काम पर लगाकर उनके बैंक खातों मे मजदूरी का भुगतान करवाना वाकई काबिले तारीफ है और ये तारीफ उस वक्त और सराहनीय हो जाती है जब बिना खेतो मे फावडा चलाये ही मजदूरो के बैंक खाते मे लाखों रूपया का भुगतान मनरेगा योजना के तहत सम्बन्धित ग्रामीण सरकारों के जनप्रतिनिधि व अधिकारी करवाने मे अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देते है। ताजा मामला विकास खण्ड मौदहा अन्तर्गत ग्राम करहिया का है।
ग्राम करहिया निवासी प्रदीप मिश्रा सहित अन्य ग्रामीण ने आलाधिकारियों को बिन काम 11 लाख रूपये से अधिक भुगतान किये जाने जानकारी देते हुये बताया कि गुरदहा रोड से हरिदास के खेत तक बिना चकरोड मे काम कराये मनरेगा से 546000 रूपये का भुगतान किया गया जबकि बब्बू सिंह के खेत से करिया के खेत तक भी चकरोड के नाम पर बिना काम कराये 569940 रूपये का भुगतान किया गया । इसके अतिरिक्त हैण्डपम्प , रिबोर, खेल मैदान बाउण्ड्रीवाल आदि के नाम पर भी लाखों रूपये का बन्दरबांट होने की जानकारी देकर ग्रामीण ने आलाधिकारियों से कार्यवाही की मांग की है। उक्त प्रकरण मे नवागन्तुक श्रम उपायुक्त मनरेगा द्वारा बताया गया कि शिकायत निराधार नहीं है , जांच मे कमियां मिली है। जल्द ही वह अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौप देंगे।
हालाकि मीडिया के एक बडे धडे की निगाह मे उक्त कार्य भ्रष्टाचार न होकर सराहनीय कार्य है और इस सराहनीय कार्य के अन्तर्गत आज भी जनपद मे 11864 मजदूरों की डिमाण्ड प्रदर्शित कर कम से कम 14 दिनों मे 3,93,64,752 करोड रूपये भुगतान की व्यवस्था ग्रामीण सरकारों ने कर दी है। जिसमे समाचार लिखे जाने तक जनपद मे 4709 मजदूरों की मोबाईल मानिटरिंग भी की जा चुकी और मोबाईल मानिटिरिंग का सिलसिला देर शाम तक चलकर मजदूरों की सख्या बढाता रहेगा। जनपद मे भवानी, लरौंद, इटौरा, बिंवार, चिल्ली, चन्दपुरवा जैसी अनगिनत ग्रामीण सरकारे अपने अपने गांव मे लगभग दो सैकडा तक मजदूरों को काम देकर इस उमस भरी गर्मी मे कागजो मे पलायन रोकने का सराहनीय कार्य कर रही है। जिसे एनएमएमएस मस्टरोल मे चेक किया जा सकता है।
सूत्र बताते है कि इस तरह भुगतान के सराहनीय कार्य मे कुल राशि का 20 से 25 प्रतिशत मनरेगा मजदूरों का हिस्सा लगाना पडेगा। जबकि इस कार्य को क्लीन चिट देने के लिये 30 से 40 प्रतिशत तक रोजगार सेवक , तकनीकि सहायक , कार्यक्रम अधिकारी, मनरेगा सेल मे बैठे सम्बन्धित अधिकारियो सहित कुछ जनपदीय जांच अधिकारियों का भी होता है और शेष राशि मे ग्रामीण सरकारों के प्रतिनिधियों को खुद भी बचाने के साथ जेसीबी मशीनो से कुछ हद तक काम भी कराना होता है , कागजो मे पलायन रोकने का ये सिर्फ एक छोटा सा उदाहरण है क्योंकि खेल करोडो का है। खैर उक्त कथन सूत्रों के हैं जो सिर्फ कोरे आरोप भी हो सकते है और जांच का विषय है।