प्रदेश में निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, अप्रैल 2010 से प्रभावशील है। जिसके अन्तर्गत प्रदेश के गैर अनुदान प्राप्त अशासकीय विद्यालयों के प्रारंभिक कक्षाओं में 25 प्रतिशत् आरक्षित सीटों पर कमजोर एवं दुर्बल वर्ग तथा अलाभित समूह के बच्चों को उनकी पहुंच सीमा में प्रवेश दिलाया जाता है। किन्तु यह संज्ञान में आ रहा है कि इन वर्गों के विद्यार्थियों को अधिनियम की मंशा के अनुरूप इस महत्वपूर्ण योजना का पूर्ण लाभ नहीं मिल पा रहा है और वे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में योजना का मैदानी स्तर पर योजना के सफल क्रियान्वयन हेतु समय-समय पर शासन द्वारा विभिन्न आदेश, दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं।
स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव सिद्धार्थ कोमल सिंह परदेशी द्वारा आरटीई अधिनियम के अंतर्गत जिला कलेक्टरों को निर्देश जारी कर पुनः आपका ध्यान आकृष्ट किया जा रहा है- अधिनियम की धारा 12 (1) (ब) में यह स्पष्ट उल्लेख है कि निजी स्कूलों में प्रारंभिक कक्षा में, दुर्बल वर्ग और असुविधाग्रस्त समूह के उस कक्षा के बालकों की कुल संख्या के कम से कम 25 प्रतिशत् की सीमा तक प्रवेश देगा और निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की, उसके पूरा होने तक, व्यवस्था करेगा।
निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, की धारा 36 के तहत प्रदत्त शक्तियों को प्रयोग में लाते हुए राज्य सरकार द्वारा उक्त अधिनियम की धारा 13 की उप-धारा (2), धारा 18 की उप-धारा (5) एवं धारा 19 की उप-धारा (5) के अधीन दण्डनीय अपराधों का अभियोजन संस्थित करने के लिए जिला शिक्षा अधिकारी को अपने-अपने क्षेत्राधिकार की सीमा में ‘सक्षम प्राधिकारी‘ अधिसूचित किया गया है। सक्षम प्राधिकारी की हैसियत से अधिनियम का निचले स्तर पर पालन कराये जाने का सम्पूर्ण दायित्व जिला शिक्षा अधिकारी का है।
इस योजना के सुचारू एवं पारदर्शी संचालन हेतु वर्ष 2018-19 से आर.टी.ई. पोर्टल का निर्माण किया गया है, जिसके माध्यम से ऑनलाईन आवेदन आमंत्रित कर लॉटरी के माध्यम से विद्यार्थियों का चयन करते हुए उनके द्वारा चाहे गये विद्यालयों में प्रवेश कराया जाता है।
सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्रारंभिक कक्षा में प्रवेश हेतु विद्यार्थियों की पहुंच सीमा की परिधि में संचालित शालाओं की मैपिंग की जाती है। अतः सभी विद्यालयों की आर.टी.ई. पोर्टल में मैपिंग हो, यह आवश्यक है। इस हेतु अपने जिले में योजना का व्यापक प्रचार-प्रसार हो, ऐसा प्रयास किया जाये, साथ ही इस बात का विशेष ध्यान रखा जावे कि जिले में संचालित सभी गैर अनुदान प्राप्त अशासकीय विद्यालय आर.टी.ई. पोर्टल में अनिवार्य रूप से पंजीकृत हों जिससे अधिक से अधिक विद्यार्थी योजना अंतर्गत उन विद्यालयों में प्रवेश प्राप्त कर सकें।
प्राथमिक शाला के संदर्भ में बसाहट के एक किलोमीटर के भीतर स्थित विद्यालयों को बसाहट सीमा के निर्धारण में शामिल किया जाता है। बसाहट सीमा के निर्धारण में यह संभव है कि क्षेत्र विशेष में एक किलोमीटर के भीतर एक से अधिक अशासकीय, शासकीय या दोनो तरह के विद्यालय हों। यह भी संभव है कि, अशासकीय विद्यालय के एक किलोमीटर के भीतर भौगोलिक रूप से कोई बसाहट न हो। इस स्थिति में ऐसे अशासकीय विद्यालय के लिये उपयुक्त बसाहट सीमा में क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए संबंधित जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा क्षेत्र का निर्धारण किया जावेगा।
निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, के अंतर्गत विद्यालयों के द्वारा विद्यार्थियों को स्कूल पाठ्यपुस्तकें, गणवेश एवं लेखन सामग्री विद्यार्थियों को निःशुल्क उपलब्ध कराया जाना है। कतिपय विद्यालयों के द्वारा स्कूल पाठ्यपुस्तकें, गणवेश एवं लेखन सामग्री विद्यार्थियों को निःशुल्क उपलब्ध न कराकर नगद राशि प्रदान की जा रही है, जो कि अधिनियम में उल्लेखित प्रावधान का उल्लंघन है, जिसके लिये दोषी पाये जाने पर वे अधिनियम की धारा 18 (3) के तहत दण्ड के भागी होंगे साथ ही माननीय उच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका में पारित निर्णय अनुसार अवमानना के दोषी होंगे।
यद्यपि कक्षा 9वीं से 12वीं तक शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू नहीं होता है किन्तु छत्तीसगढ़ शासन द्वारा शिक्षा के अधिकार अधिनियम अन्तर्गत् प्रवेशित छात्रों का कक्षा 8वीं के पश्चात् पढ़ाई में निरन्तरता बनाये रखने हेतु कक्षा 9वीं से 12वीं तक निःशुल्क शिक्षा प्रदाय करने का निर्णय लिया गया है, जिनके शिक्षण शुल्क की प्रतिपूर्ति राज्य शासन द्वारा वहन किया जाता है। इसके अंतर्गत प्रति छात्र 15 हजार रूपए एवं शिक्षण सामग्री हेतु एक हजार रूपए देय है।
यह संज्ञान में आया है कि अधिनियम अन्तर्गत् प्रवेशित कुछ छात्र पढ़ाई के मध्य में ही विद्यालय का त्याग कर देते हैं परन्तु उन विद्यार्थियों का नाम पोर्टल में प्रदर्शित होता रहता है, ऐसी स्थिति में संबंधित विद्यालय के द्वारा उन विद्यार्थियों को ड्राप आउट मार्क किया जाना अनिवार्य है, परन्तु अधिकांश विद्यालयों के द्वारा आर.टी.ई. पोर्टल में उपरोक्तानुसार कार्यवाही नहीं की जाती है। नोडल प्राचार्य, जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा विद्यालय में वास्तविक रूप से अध्ययन कर रहे विद्यार्थियों का ही देयक पारित किया जा सके, इस हेतु यह आवश्यक है कि प्रतिवर्ष कम से कम दो बार आर.टी.ई. अन्तर्गत् चयनित विद्यार्थियों का भौतिक सत्यापन किया जावे।
योजना का मुख्य उद्देश्य कमजोर एवं दुर्बल वर्ग तथा अलाभित समूह के बच्चों को सामान्य विद्यार्थियों के समान उनके साथ निःशुल्क शिक्षा प्रदान करना है, इस हेतु सतत् निरीक्षण किया जाना आवश्यक है। जिले में असमानता की स्थिति निर्मित होने पर जिला शिक्षा अधिकारी संबंधित विद्यालय के विरूद्ध प्रावधानों में उल्लेखित कार्यवाही करने हेतु अधिसूचित हैं तथा उन्हें समस्त अधिकार प्रदत्त हैं।
आर.टी.ई. के अंतर्गत की जाने वाली कार्यवाहियों के लिये प्रतिवर्ष कैलेण्डर बनाकर राज्य में प्रसारित किया जाता है। इस वर्ष 2024-25 के लिये जारी कैलेण्डर के अनुसार जिले के समस्त गैर अनुदान प्राप्त निजी विद्यालयों के प्रबंधक, प्राचार्यों की एक बैठक 10 दिवस के भीतर बुलाना सुनिश्चित करें जिसमें यह समीक्षा किया जाना अपेक्षित है कि उनके विद्यालय में प्रारंभिक कक्षा में कितने विद्यार्थियों ने आर.टी.ई. के तहत प्रवेश लिया था तथा उनमें से कितने विद्यार्थियों ने उनके विद्यालय में उपलब्ध अंतिम कक्षा (कक्षा 8वीं, 10वीं, 12वीं) तक की पढ़ाई पूर्ण की है और कितने बच्चें बीच में ही पढ़ाई छोड़कर ड्रॉप आउट हो गये है। इस दौरान कृपया यह भी आवश्यक रूप से समीक्षा करें कि कहीं ड्रॉप आउट होने का कारण विद्यालय की महंगी यूनिफॉर्म, पुस्तकें, अन्य शुल्क, असमानता का व्यवहार तो नहीं है।
सचिव स्कूल शिक्षा ने विश्वास व्यक्त किया है कि ड्रॉप आउट बच्चों के व्यक्तिशः कारणों की सूची तैयार करने पर जिले में आर.टी.ई. के सफल क्रियान्वयन हेतु योजना तैयार करने में काफी मदद मिलेगी। उन्होंने यह भी अपेक्षा की है कि इस तरह की त्रैमासिक समीक्षात्मक बैठकों का आयोजन एवं इन विद्यालयों के सघन निरीक्षण का तंत्र विकसित कर इस योजना के सफल संचालन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देंगे।