झुंझुनूं : जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने डिमांड राशि जमा करवाने के बाद भी कोर्ट द्वारा स्टे प्राप्त करने का झूठा हवाला देकर घरेलू कनेक्शन नहीं देने के मामले में एवीवीएनएल के बिसाऊ कार्यालय के सहायक अभियंता पर परिवादी को 25 हजार रूपए मानसिक और शारीरिक संताप पेटे एवं परिवाद व्यय के तौर पर 7 हजार 5 सौ रूपए देने के आदेश दिए हैं। आयोग अध्यक्ष मनोज मील और सदस्या नीतू सैनी ने यह आदेश जारी किया है। गौरतलब है कि बिसाऊ के कुलहरियों की ढाणी निवासी लालचंद जाट, हाल निवासी- उदासर फांटा, बीकानेर ने आयोग में परिवाद दर्ज करवाया था कि परिवादी ने 22 अक्टूबर को घरेलू विद्युत कनेक्शन के लिए आवेदन किया था, जिसके पेटे 5 जनवरी 2023 को परिवादी ने डिमांड की राशि जमा करवा दी थी, इसके बाद बार-बार चक्कर लगाने एवं प्रार्थना पत्र देने पर 29 मार्च को एवीवीएनएल सहायक अभियंता ने परिवादी की भूमि पर कनेक्शन के संबंध में सिविल न्यायाधीश एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा स्टे प्राप्त होने का हवाला दिया। जबकि हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं था। 18 अप्रैल को परिवादी द्वारा एवीवीएनएल को अधिवक्ता के जरिए नोटिस भेजा गया, जिसका एईएन ने कोई जवाब नहीं दिया। इसके बाद परिवादी द्वारा उपभोक्ता आयोग के समक्ष वाद दायर किया गया, जहां सहायक अभियंता के अधिवक्ता ने परिवादी को दी गई सूचना में कोर्ट स्टे का हवाला देने को लिपिकीय भूल से लिखा हुआ बताया, हकीकत में किसी तरह का स्टे नहीं होना माना और भाईयों के आपसी विवाद के चलते कनेक्शन नहीं देने के प्रार्थना पत्र परिवादी के भाई द्वारा पेश किया जाना बताया।
आयोग ने इस प्रकरण में सहायक अभियंता द्वारा विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 43 के तहत इसे अनुचित व्यापार प्रथा, पदीय शक्तियों का दुरूपयोग बताते हुए सेवादोष माना। जिस पर परिवादी को आगामी 72 घंटों में घरेलू कनेक्शन जारी करने एवं परिवादी को मानसिक व शारीरिक संताप पेटे 25 हजार रूपए एवं परिवाद व्यय के पेटे 7 हजार 5 सौ रूपए देने के आदेश दिए हैं। आयोग ने अपने आदेश में लिखा है कि सहायक अभियंता द्वारा परिवादी को राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं व विद्युत जैसी आवश्यक सेवाओं से वंचित रखने का कुप्रयास किया गया है। आयोग ने विद्युत विभाग के अधिकारी द्वारा विद्युत अधिनियम 2003 की पालना नहीं कर कनेक्शन नहीं देने को गंभीर लापरवाही माना है।
न्यायालय के सम्मान को क्षति पहुंचाने वाला अक्षम्य कृत्यः आयोग
एईएन ने परिवादी को लिखित रूप में सूचित किया था कि घरेलू कनेक्शन के संबंध में सिविल न्यायाधीश एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट झुंझुनूं द्वारा घरेलू विद्युत कनेक्शन में जमीन से सम्बन्धित स्थगन आदेश एईएएन को लिखित रूप में प्राप्त हुआ है। जबकि सिविल न्यायाधीश एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसे कोई स्थगन आदेश जारी नहीं किए गए थे। आयोग ने माना है कि कोई स्थगन आदेश जारी नहीं होने के उपरान्त भी न्यायालय सिविल न्यायाधीश एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट झुंझुनूं द्वारा जारी स्थगन (स्टे) अप्रार्थी के कार्यालय में प्राप्त होने का अंकन करना न्यायालय के नाम का दुरूपयोग एवं न्यायालय के सम्मान को क्षति पहुंचाने वाला विधि के अन्तर्गत अक्षम्य कृत्य है।