वह गदर का दौर था। बात 3 सितंबर, 1857 की है। चांदनी चौक के थानेदार नाजिर अली ने चिट्ठी लिखकर कोतवाल से पूछा था कि इलाके में एक सैनिक की लाश पड़ी हुई है, साथ में उसकी तलवार है। क्या मैं उसकी तलवार बेचकर जो पैसे आएंगे उनसे सैनिक का अंतिम संस्कार कर दूं? सैनिक 1857 के विद्रोह में भाग लेने दिल्ली आया था। उसके परिजनों का पता नहीं लगा है।
सकारात्मक जवाब मिलने पर तलवार बेचकर 2.10 रुपये 10 पैसे जुटाए गए और उन पैसों से सैनिक का अंतिम संस्कार किया गया। यह प्रसंग राष्ट्रीय अभिलेखागार में रखी एक चिट्ठी में दर्ज है। उस दौर की करीब 20 हजार चिट्ठियां यहां रखी हैं। इनमें से कुछ का अनुवाद करके दिल्ली पुलिस की ओर से कराया गया है। इन चिट्ठियों को विद्रोह पत्र (म्युटिनी पेपर्स) नाम दिया गया है। अमर उजाला इन चिट्ठियों तक पहुंचा तो उस दौर की पुलिस की कार्य प्रणाली और इतिहास के पन्नों मे दर्ज कई रोचक किस्से सालों का धूल झाड़ कर जीवंत हो उठे।
130 दिन में हत्या व डकैती की एक भी वारदात नहीं हुई
फिरंगियों के चंगुल से 130 दिन आजाद रही दिल्ली की उस समय 1.5 लाख जनसंख्या थी। उस समय करीब 40 हजार विद्रोही दिल्ली में आ गए थे। इस कारण यहां पर चोरी व दुर्घटनाओं जैसी वारदात सामने आईं। उस समय पुलिस के पास काफी शिकायतें आईं, लेकिन हत्या व डकैती जैसी एक भी गंभीर वारदात सामने नहीं आई।
अनैतिक कार्य में लगी महिला के घर की तलाशी के लिए पूछा आजाद दिल्ली में संवेदनशीलता व महिला की गरिमा का पूरा ध्यान रखा जाता था। चांदनी चौक के थानेदार का संदेह था कि चांदनी इलाके में अनैतिक कार्य करने वाली महिला के घर में चोरी का सामान है। थानेदार ने महिला के घर में तलाशी लेने के लिए कोतवाल को पत्र लिखकर इजाजत मांगी ताकि घर का गेट खोला जा सके।
22 मई- कोतवाल ने पत्र लिखकर सेना प्रमुख जनरल बख्त खान को सूचित किया कि उसने हिंदू व मुस्लिम के बीच संभावित दंगों को रोकने के लिए कदम उठाए हैं। इसके लिए पर्याप्त इंतजाम कर दिए गए हैं। अंग्रेज दंगा करवा सकते हैं। इसी दिन राजा ने थानेदार को पत्र लिखा कि कोतवाली इलाके में लावारिस मिले बच्चे के माता-पिता को ढूंढ़ा जाए।
4 जून- नायब कोतवाल भान सिंह ने राजा को चिट्ठी लिखकर बताया कि कैदियों ने भत्ते के तौर पर मिलने वाले आधा आना पैसे को लेने से मना कर दिया है। कैदियों का कहना है कि एलाउंस कम है। इस पर राजा ने एलाउंस बढ़ाने से इन्कार कर दिया।
विद्रोही नर्तकी को साथ लेकर आए थे
30 जुलाई को नीमच की फोर्स जब अंग्रेजों से लड़ने दिल्ली आई तो वह नर्तकी को भी साथ लेकर आए। फैज बक्श ने कोतवाल को पत्र लिखकर इन महिलाओं को बड़े घर की मांग की थी। कोतवाल ने महिलाओं को घर देने से मना कर दिया था।
दिल्ली पुलिस में इन दिनों चल रहा डायरी सिस्टम मुगल काल से ही जारी है। 25 जुलाई, 1857 को कोतवाल सैयद मुबारक शाह ने सभी थानेदार को पत्र लिखकर कहा कि वह सुबह 8 बजे तक डायरी कोतवाल के घर भिजवाए। तभी से ये सिस्टम जारी है। आज भी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के घर सुबह आठ बजे डेली डायरी पहुंचाई जाती है। इस डायरी में पूरे दिन का घटनाओं व एफआईआर की जानकारी दी जाती है।
पिट की बताया थानों में होता था पशुखाना
जिस तरह आज के समय में पुलिस थानों में वाहनों को रखने के लिए पिट बनाई जाती है। उसी तरह मुगल व अंग्रेजों के समय में थाने में पशुओं को रखने के लिए पशुखाना होता था। पशुखाना हर थाने में होता था। उस समय पशु सबसे ज्यादा चोरी होते थे।