नई दिल्ली : कांग्रेस समेत 19 विपक्षी पार्टियों ने नई संसद के उद्घाटन समारोह का बायकॉट करने का फैसला लिया है. उनका कहना है कि इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जगह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों से होना चाहिए. नए संसद भवन पर हो रही राजनीति से अलग कुछ ऐसे सवाल भी हैं जिनके जवाब सोशल मीडिया से लेकर गूगल तक पर खोजे जा रहे हैं. नई संसद कैसे दिखाई देगी, आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी, इसे किसने बनाया और अब क्या पुरानी संसद को तोड़ दिया जाएगा?
नई संसद की जरूरत क्यों पड़ी?
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत नए संसद भवन का निर्माण किया गया है. इस पूरे प्रोजेक्ट पर 20 हजार करोड़ रुपये खर्च होने हैं. दरअसल, सेंट्रल विस्टा राजपथ के क़रीब दोनों तरफ़ के इलाक़े को कहते हैं जिसमें राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट के करीब प्रिंसेस पार्क का इलाक़ा भी शामिल है. सेंट्रल विस्टा के तहत राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, उपराष्ट्रपति का घर भी आता है. संसद भवन करीब 100 साल पुराना है. केंद्र सरकार का कहना है कि मौजूदा संसद भवन में सांसदों के बैठने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है.
सीटों की कमी- मौजूदा वक्त में लोकसभा सीटों की संख्या 545 है. 1971 की जनगणना के आधार पर किए गए परिसीमन पर आधारित इन सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
सीटों की संख्या पर यह स्थिरता साल 2026 तक रहेगी, लेकिन उसके बाद सीटों में बढ़ोतरी की संभावना है. ऐसे में जो नए सांसद चुनकर आएंगे उनके लिए पर्याप्त स्थान नहीं होगा.
बुनियादी ढांचा- सरकार का कहना है कि आजादी से पहले जब संसद भवन का निर्माण किया जा रहा था तब सीवर लाइनों, एयर कंडीशनिंग, अग्निशमन, सीसीटीवी, ऑडियो वीडियो सिस्टम जैसी चीजों का खासा ध्यान नहीं रखा गया था.
बदलते समय के साथ संसद भवन में इन्हें जोड़ा तो गया लेकिन उससे भवन में सीलन जैसी दिक्कतें पैदा हुआ हैं और आग लगने का खतरा बढ़ा है.
सुरक्षा- करीब 100 साल पहले जब संसद भवन का निर्माण हुआ था, उस वक्त दिल्ली भूकंपीय क्षेत्र-2 में थी लेकिन अब यह चार में पहुंच गई है.
कर्मचारियों के लिए कम जगह- सांसदों के अलावा सैकड़ों की संख्या में ऐसे कर्मचारी हैं जो संसद में काम करते हैं. लगातार बढ़ते दबाव के चलते संसद भवन में काफी भीड़ हो गई है.
कितनी अलग है नई संसद?
संसद में लोकसभा भवन को राष्ट्रीय पक्षी मयूर और राज्यसभा को राष्ट्रीय फूल कमल की थीम पर डिजाइन किया गया है. पुरानी लोकसभा में अधिकतम 552 व्यक्ति बैठ सकते हैं. नए लोकसभा भवन में 888 सीटों की क्षमता है. पुराने राज्यसभा भवन में 250 सदस्यों के बैठने की जगह है, वहीं नए राज्यसभा हॉल की क्षमता को बढ़ाकर 384 किया गया है. नए संसद भवन की संयुक्त बैठक के दौरान वहाँ 1272 सदस्य बैठ सकेंगे.
इसके अलावा नए संसद भवन में और क्या होगा?
अधिकारियों के अनुसार नए भवन में सभी सांसदों को अलग दफ़्तर दिया जाएगा जिसमें आधुनिक डिजिटल सुविधाएं होंगी ताकि ‘पेपरलेस दफ़्तरों’ के लक्ष्य की ओर बढ़ा जा सके. नई इमारत में एक भव्य कॉन्स्टिट्यूशन हॉल या संविधान हॉल होगा जिसमें भारत की लोकतांत्रिक विरासत को दर्शाया जाएगा. वहाँ भारत के संविधान की मूल प्रति को भी रखा जाएगा.
साथ ही वहाँ सांसदों के बैठने के लिए बड़ा हॉल, एक लाइब्रेरी, समितियों के लिए कई कमरे, भोजन कक्ष और बहुत सारी पार्किंग की जगह होगी. इस पूरे प्रोजेक्ट का निर्माण क्षेत्र 64,500 वर्ग मीटर में फैला हुआ है. मौजूदा संसद भवन से नई संसद का क्षेत्रफल 17,000 वर्ग मीटर अधिक है.
पुरानी संसद का क्या होगा?
पुराने संसद भवन को ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने ‘काउसिंल हाउस’ के रूप में डिजाइन किया था. इसे बनाने में छह साल(1921-1927) लगे थे. उस वक्त इस भवन में ब्रिटिश सरकार की विधान परिषद काम करती थी. तब इसे बनाने पर 83 लाख रुपये खर्च हुए थे, वहीं आज नए भवन को बनाने में करीब 862 करोड़ रुपये खर्च आया है.
- व्यास560 फुट (170.69 मीटर)
- क्षेत्रफलछह एकड़ (24281.16 वर्ग मीटर)
- प्रथम तल पर स्तंभ144
- स्तंभ की ऊंचाई27 फुट (8.23 मीटर)
- भवन के द्वार 12
जब भारत आजाद हुआ तो ‘काउसिंल हाउस’ को संसद भवन के रूप में अपनाया गया. अधिकारियों के अनुसार मौजूदा संसद भवन का इस्तेमाल संसदीय आयोजनों के लिए किया जाएगा.
कौन बना रहा है नया संसद भवन
नई इमारत बनाने का ठेका टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को मिला है. उसने सितंबर 2020 में 861.90 करोड़ रुपये की बोली लगाकर ये ठेका हासिल किया था. नया संसद भवन सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का हिस्सा है. इस प्रोजेक्ट का खाका गुजरात स्थित एक आर्किटेक्चर फ़र्म एचसीपी डिज़ाइन्स ने तैयार किया है.
सेंट्रल पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (सीपीडब्ल्यूडी) ने संसद, कॉमन सेंट्रल सेक्रेटेरिएट और सेंट्रल विस्टा के डेवलपमेंट के लिए कंसल्टेंसी का काम एचसीपी डिजाइन, प्लानिंग एंड मैनेजमेंट को पिछले अक्टूबर, 2019 में सौंपा था. सेंट्रल विस्टा इलाके के मास्टर प्लान के डिवेलपमेंट और नई जरूरतों के हिसाब से बिल्डिंग्स का डिजाइन बनाने के काम में यह कंपनी शामिल रही है.
इसके लिए कंसल्टेंट नियुक्त करने का टेंडर सीपीडब्ल्यूडी ने पिछले साल सितंबर में निकाला था. कंसल्टेंसी के लिए 229.75 करोड़ रुपये का खर्च तय किया गया था. इस बिड में एचसीपी डिजाइन को जीत हासिल हुई. एचसीपी डिजाइन के पास गुजरात के गांधीनगर में सेंट्रल विस्टा और राज्य सचिवालय, अहमदाबाद में साबरमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट, मुंबई पोर्ट कॉम्प्लेक्स, वाराणसी में मंदिर कॉम्प्लेक्स के रीडिवेलपमेंट, आईआईएम अहमदाबाद के नए कैंपस के डिवेलपमेंट जैसे कामों का पहले से अनुभव है.