झुंझुनूं-खेतड़ी(खेतड़ीनगर) : सरकारी उपेक्षा से बर्बादी के कगार पर खड़ा खेतड़ी कॉपर कॉम्प्लेक्स:सरकार सुध ले तो तांबे में आत्मनिर्भर बने हमारा देशक्या था

झुंझुनूं-खेतड़ी(खेतड़ीनगर) : झुंझुनूं जिले के खेतड़ी कस्बे में ताम्बे का अकूत भंडार है। लेकिन विडम्बना यह है कि कभी तांबे के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने वाली खदाने व संयंत्र सरकार और अफसरों की खोटी नीयत के भेंट चढ़ गए। पुरानी मशीनों से ठेके पर कार्य करवाया जा रहा है। स्थिति यह हो गई कि खेतड़ी कॉम्प्लेक्स पहले जहां दस हजार से ज्यादा नियमित कर्मचारी काम करते थे, वहां अब लगभग पांच सौ कर्मचारी नियमित बचे हैं। जहां 6 हजार टन तांबे का प्रतिदिन उत्पादन हो रहा था, वहां अब मात्र 3 हजार टन तांबा निकाला जा रहा है। पांच में से तीन प्लांट बंद हो गए। तांबे के लिए बिछाई गई रेल पटरियां गायब हो गईं। रोप-वे पर लटकती ट्रॉलियां तांबे के पत्थरों का इंतजार कर रही है।
खेतड़ी कॉपर कॉम्प्लेक्स में बंद पड़ा एक प्लांट।

इसलिए हुई स्थापना

खेतड़ी कॉपर की शुरुआत 9 नवंबर 1967 में भारत व चीन के साथ युद्ध में गोला बारूद के लिए तांबा की जरूरत पड़ने पर की गई थीं। हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड ने केसीसी संयंत्र की स्थापना की। उस समय यह एशिया का सबसे बड़ा संयंत्र था। भारत में तांबे की जरूरत को लगभग हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड ही पूरी करता था। इससे पहले तांबा विदेशों से ही आयात होता था।

इन पहाड़ियों पर ताम्बा

खेतड़ी इलाके में बनवास, कोलिहान और चांदमारी की पहाड़ियां हैं। इनमें प्रचुर मात्रा में तांबे का भंडार है। इनकी माइनिंग 380 मीटर तक नीचे जा चुकी है। खदान में भी माल ढोने के लिए मालगाड़ी चलती है। अब लगभग 40 हजार टन तांबा प्रतिदिन हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड उत्पादन करता है। तांबा होने की वजह से यहां पहाडिय़ा भी पीले रंग की ही नजर आती है।

कभी रोप-वे पर चलती थीं ट्रॉलियां

बनवास, कोलिहान व चांदमारी में तांबा निकालने के लिए खदानें हैं। कोलिहान खदान से ही ट्रॉलियों में केसीसी के प्लांट में तांबे के पत्थर आते थे। यहीं पर तांबे की गलाई होकर तांबे का उत्पादन होता था। लेकिन अब सिर्फ कंस्ट्रक्टर प्लांट ही चालू हालत में है। जहां पर तांबे के पत्थरों की पिसाई करके दूसरे प्लांटों में भेज दिया जाता है। बाकी तीन प्लांट दूसरी जगह चले गए। इससे ट्रॉलियां भी बंद हो गई।

पांच में से सिर्फ दो ही प्लांट चालू

केसीसी में पहले रिफाइनरी, स्मेल्टर्स, एसिड के दो प्लांट, एक फर्टिलाइजर प्लांट थे। खाद बनाने का संयंत्र भी लगाया गया था जो बंद हो गया। कॉम्प्लेक्स में अब माइनिंग व कंस्ट्रक्टर प्लांट को छोडक़र बाकी के प्लांट अन्य जगहों पर स्थानांतरित कर दिए।

कुम्भाराम नहर योजना बन सकती संजीवनी

हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड में अधिकांश प्लांट बंद होने का मुख्य कारण पानी की कमी है। अब खेतड़ी उपखण्ड़ में आ रही कुम्भाराम नहर योजना के अन्तर्गत आने वाला पानी केसीसी के लिए संजीवनी का काम कर सकता है। पहले यहां खदान से निकाल कर संधारित कर ताम्बे की सिल्लियां तैयार कर दूसरी जगह भेजी जाती थी। बाद में पानी की कमी के कारण केवल ताम्बे की मिट्टी भेजे जाने लगी। इसे दुसरी जगह पर फिल्टर कर सिल्लियां तैयार की जा रही है।

अगले 60 से 70 साल तक भी है पहाड़ियों में तांबा

केसीसी के तांबा संयंत्र के लिए पहाड़ियों में तांबा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। केटीएसएस महासचिव बिङदू राम सैनी ने बताया बनवास से लेकर रघुनाथगढ़ तक की पहाड़ियों में प्रचुर मात्रा में तांबे के भंडार मिले हैं। इनमें अगले 60 से 70 साल तक तांबा प्रचुर मात्रा में मिल सकता है।

क्या था 

  • 1967 में हुई स्थापना
  • 6 हजार टन तांबा उत्पादन प्रतिदिन
  • 5 प्लांट करते थे काम
  • 10000 कर्मचारी थे कार्यरत
  • 6000 क्वार्टर बने हैं कर्मचारियों के लिए
  • 1973 में रोप-वे का निर्माण
  • 1973-74 रेल पटरियां बिछाई गईं
  • 1975 में तांबे का उत्पादन शुरू हुआ

यूं शुरू हुई बर्बादी

  • 1996 में बंद हुई कर्मचारियों की भर्ती।
  • 2008 में प्लांट बंद करने का सिलसिला शुरू हुआ।

अब यह हो सकता है

  • कर्मचारियों की भर्ती फिर शुरू की जाए
  • कुंभाराम लिफ्ट परियोजना से मिले पूरा पानी
  • नई मशीनों की खरीद की जाए
  • फिर से शुरू हो रोप वे
  • क्वार्टरों की मरम्मत करवाई जाए

यहां की पहाड़ियां भी चमकती हैं तांबे की तरह

खेतडीनगर तांबे के भण्डार के कारण चमकती खेतडी की पहाडियां।

खेतड़ी व आस-पास के क्षेत्र की पहाडिय़ों में प्रचुर मात्रा में तांबे के भंडार हैं। यहां की पहाडिय़ां दूर से ही तांबे की तरह चमकती हुई दिखाई देती हैं। केसीसी प्लांट तो सिर्फ 3 से 4 किलोमीटर इलाके में ही खनन कर रहा है, तांबे के भंडार हरियाणा सीमा से सटे पचेरी से लेकर सीकर के रघुनाथगढ़ तक हैं। यहां इतना ताम्बा है कि अगले 60 से 100 साल तक भी खनन किया जाए तो भी तांबे का भंडार खत्म नहीं हो सकता। वर्तमान में बनवास, बागेश्वर व माकड़ो की तरफ 3 से 4 किलोमीटर भूमिगत तांबे का खनन किया जा रहा है। जीरो लेवल आखिरी खनन पॉइंट है जो 370 मीटर नीचे है। फिलहाल अंतिम 3 लेवल पर ही खनन कार्य किया जा रहा है। यहां की खदानों से निकलने वाला तांबा देश में सबसे अच्छी क्वालिटी का माना जाता है। इसका उपयोग अंतरिक्ष, सुरक्षा उपकरण, रेलवे, हवाई जहाज, बिजली उपकरण व वाहनों में किया जाता है।

सुनारी सभ्यता में भी मिले अवशेष

सुनारी व गणेश्वर की सभ्यता में भी तांबे व लोहे के अवशेष खुदाई में मिले हैं। सुनारी सभ्यता में तांबे की कढ़ाई भी मिली है जिसमें तांबे की गलाई होती थी इसलिए तांबे के भंडार पहले भी थे। जिनका खनन करके बर्तन भी बनाए जाते हैं। सिंघाना में लोहे की ढलाई का कारखाना होने की सबूत भी मिले हैं जहां पर एक पहाड़ नुमा लोहे गलाने के पत्थरों का बना हुआ है केसीसी की माइनिंग के पास पुराने खुदाई के कुएं भी मौजूद है।

 इनका कहना है

केसीसी कंपनी में हजारों कर्मचारी कार्यरत थे लेकिन सरकार ने बेचने का बहाना करते हुए कर्मचारियों को भी वीआरएस देकर घर भेज दिया। धीरे-धीरे प्लांट भी बंद हो गए। सरकार की इच्छा शक्ति हो तो नई टेक्नोलॉजी की मशीनें लगाकर दोबारा प्लांट शुरू किए जा सकते हैं। क्योंकि केसीसी कंपनी के 300 किलोमीटर इलाके में देश का 48% तांबा मौजूद है। अगर प्लांट शुरू होंगे तो कर्मचारियों की भी भर्ती होगी।

बिडदूराम सैनी, महासचिव खेतड़ी तांबा श्रमिक संघ

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