कुम्भलगढ़ : क्या 75 साल के बुजुर्ग आधे घंटे तक डांस कर सकते हैं ? क्या उन्हें तैयार होने में 1 घंटे का समय लग सकता है ? और, क्या इतनी उम्र के बुजुर्ग 10 किलो गहने पहन ताल से ताल मिला सकते हैं। ये सवाल पढ़ कर एक बार ऐसा लगेगा कि इतनी उम्र में ये सब कुछ असंभव है?
लेकिन, राजस्थान के छोटे बाड़मेर के जसोल गांव में रहने वाले मूलाराम गहलोत के लिए यह सब कुछ उतना ही आसान है, जितना किसी युवा के लिए। दरअसल, मूलाराम गहलोत और उनकी टीम लाल आंगी गैर (राजस्थान का पारंपरिक डांस) में एक्सपर्ट है।
इस बार उनकी टीम दिसंबर में होने वाले जी 20 देशों के शेरपा सम्मेलन में अपनी परफॉर्मेंस भी देंगे। इसकी तैयारी उन्होंने पहले ही शुरू कर दी है और इसलिए वे इन दिनों कुंभलगढ़ में चलने वाले फेस्टिवल में आए हुए हैं।
फेस्टिवल के दौरान मूलाराम गहलोत से बात की तो उन्होंने इस गैर नृत्य से जुड़े कई रोचक फैक्ट बताए। मूलाराम बताते हैं- यह डांस इतना आसान भी नहीं है, क्योंकि इसे करने के लिए इन कलाकारों को भारी भरकम ड्रेस पहननी पड़ती है।
वे खुद जब टीम के साथ मैदान में उतरते हैं तो 10 किलो के गहने पहनते हैं। इनकी खासियत ये हैं कि ये गहने 150 साल पुराने हैं। इसके अलावा टीम के साथी जो ड्रेस पहनते हैं वे तीन गुना ज्यादा वजनी होती है।
1 घंटे का समय लगता है तैयार होने में
मूलाराम और उनकी टीम कई देशों में अपनी प्रस्तुति दे चुकी हैं, लेकिन जब से इनका सलेक्शन शेरपा सम्मेलन के लिए हुआ है तब से ये लगातार तैयारी में जुटे हैं। मूलाराम बताते हैं कि हमारे देश और खास तौर पर उदयपुर में इतना बड़ा आयोजन पहली बार हो रहा है, इसलिए वे नहीं चाहते कि कहीं भी थोड़ी सी चूक हो। इसलिए दिन में कई कई घंटों तक प्रैक्टिस करते हैं।
उन्होंने बताया कि गैर डांस से पहले खुद को तैयार करने में करीब 1 घंटे का समय लग जाता है, जिन्हें दूसरे दो साथी मिलकर तैयार करते हैं। एक ड्रेस 400 मीटर कपड़े से तैयार होती है। ग्रुप का लीडर गहने पहनता है। इनका वजन दस किलो तक होता है और बाकी कलाकार जो ड्रेस पहनते हैं, उनका वजन 30 किलो तक। इसके बाद वे इतने भारी-भरकम ड्रेस और गहनों के साथ नॉन स्टॉप आधे घंटे या इससे ज्यादा समय तक ढोली-थाली की थाप पर डांस परफॉर्म करते हैं।
620 साल पुराना नृत्य, अनोखी ड्रेस और एंटीक गहने
मूलाराम ने बताया कि यह गैर नृत्य करीब 620 साल पुराना है। अपनी पारंपरिक वेषभूषा के कारण यह नृत्य अनोखा बन जाता है। इसमें चटख लाल और सफेद रंग की पगड़ी होती है और लाल रंग का लंबा घेरदार कुर्ता। कलाकार जो ड्रेस पहनते हैं, उसमें करीब 30 किलो वजन होता है। इसके अलावा दस किलो के करीब आर्टिफिशियल गहने होते हैं। इनमें कुछ चांदी के बने होते हैं। इनमें मुख्य तौर पर गले की माला, कानों के गहनें और घुंघरू होते हैं।
युद्ध में जीत की खुशी पर होता था नृत्य
यह नृत्य युद्ध में राजा की जीत की खुशी के मौकों पर होता था। इसीलिए यह शौर्य और विजय का प्रतीक होता था। कलाकार जो ड्रेस पहनते हैं, वो राजसी वैभव वाली होती है। सैंकड़ों सालों से यही वेशभूषा चली आ रही है। राजा जब युद्ध भूमि से जीतकर लौटते थे तब महल में कलाकार इस डांस के जरिए उनकी अगवानी करते थे और जीत का बखान करते थे। आज कलाकार हाथों में लकड़ियां लेकर यह नृत्य करते हैं, लेकिन तब उनके हाथों में तलवारें होती थी।
एक टीम में दस मेंबर
इस टीम में दस मेंबर हैं। ये सभी ढोल और थाली आदि से धुनों पर एक खास गीत गाते हुए डांस करते हैं। इनके बीच एक लीडर होता है। अभी 75 साल के मूलाराम इसके लीडर हैं, जो सबसे अधिक उम्रदराज हैं। मूलाराम बताते हैं कि उनके पास जो गहने हैं, वे पड़दादा के समय के ही हैं यानी करीब 150 साल पुराने। उनके अलावा टीम में पारसमल, भगवान राम, अमराराम, प्रकाश सुथार, श्रवण सांखला, भावेश गहलोत और देवीलाल शामिल हैं। इनमें से कुछ वाद्य यंत्र बजाते हैं तो कुछ नृत्य करते हैं।
विदेशों तक बनाई पहचान
मूलाराम के जेहन में इस नृत्य से जुड़ी कई यादें हैं। वे बताते हैं कि पहले यह डांस केवल राज परिवारों तक सीमित था। तब राजा से ही इतना इनाम मिलता था कि कलाकारों का गुजारा हो जाता था। आजादी के बाद एक समय ऐसा भी आया जब इस डांस को लोग भूलने लगे और यह साल में होली और सावन महीने में ही होने लगा। फिर धीरे धीरे कुछ विशेष मौकों पर इसका आयोजन होने लगा, लेकिन फिर सरकारी स्तरों पर होने वाले फेस्टिवल में इन कलाकारों ने पहचान बनाई।
इसमें कई विदेशी पर्यटकों ने इसे देखा तो यह कला आगे बढ़ी। इसके बाद विदेशों से भी इसकी डिमांड आने लगी। मूलाराम और उनकी टीम ना केवल भारत के कई राज्यों में बल्कि लेबनान, कजाकिस्तान, इटली और फ्रांस के अलावा कई देशों में अपनी परफॉर्मेंस दे चुकी है। अब विदेशों में इनकी एडवांस बुकिंग रहती है। इस टीम को कई अवॉर्ड भी मिल चुके हैं। पिछले दिनों ही इन्हें राजस्थान कला केंद्र द्वारा विशेष अवॉर्ड भी दिया गया था।
10 किलो के घुंघरू, पांच किलो की ढाल
इन कलाकारों के दोनों पैरों में पांच-पांच किलो के तो घुंघरू होते हैं। इसके अलावा कमर के पीछे ढाल बांधी जाती है, जिसका वजन 5 किलो होता है। ढाल का उपयोग राजा महाराजा के वक्त में कवच के रूप में होता था। मुख्य आंगी के नीचे एक गेर होता है, इसका वजन 10 किलो होता है। इसके साथ पगड़ी और जूते में 5 किलो वजन रहता है। जबकि 75 साल के मूलाराम पांच किलो के घुंघरू, चार किलो की माला, गले का हार और कानों के गारुक पहनते हैं। इसके अलावा एक किलो की उनकी धोती होती है।
गीत में राजस्थान का बखान
नृत्य करते हुए ये कलाकार जो गीत गाते हैं। उसमें राजस्थान का बखान किया जाता है। टीम के पारसमल ने बताया कि ढोल और थाली की थाप पर हम लोग यह गीत गाते हैं…ऊंची धोती और अंगरकी और कसीदा वाली पगर की चैखो लागे मारो एड़ो देश राजस्थान जिसका मतलब है कि ऊंची धोती और कमीज और कसीदे वाली जूती पहन कर अच्छा लगाता है हमारा देश राजस्थान।