पुलिस का अत्याचार:सात साल पहले निरस्त कर दी गई धारा में अब तक दर्ज हो रहे मुक़दमे

हिंदुस्तान भावना प्रधान देश है। यहाँ भावनाओं का उफान बड़ी जल्दी आता है। उतनी ही जल्दी भावनाएँ आहत भी होती हैं। यही वजह है कि समाज के ठेकेदार हों या राजनीति के अलम्बरदार, सब के सब भावनाओं की खेती बड़ी सफ़ाई से करते हैं। हम लोग बस, इन राजनेताओें की भावनाओं को समझ नहीं पाते। जिस राजनीति में भाव ही नहीं हों, वहाँ भावना कैसी?

भावनाओं की इस खेती पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई और केंद्र सरकार को फटकारा भी। दरअसल, इससे संबंधित एक क़ानून है। आईटी एक्ट की धारा 66 ए के अनुसार अगर कोई व्यक्ति कंप्यूटर या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से ऐसा संदेश भेजता है, जिससे लोगों को ग़ुस्सा आए, या उनकी भावनाएँ आहत हों या वह सूचना ही झूठी हो और लोग उसके कारण परेशानी में पड़ जाएँ या उसके कारण किसी के साथ धोखा हो जाए, तो ऐसे व्यक्ति को कम से कम तीन साल की सजा हो सकती थी।

आईटी एक्ट की इस धारा को सुप्रीम कोर्ट 2015 में ही निरस्त कर चुका है, क्योंकि यह माना गया कि किसी मैसेज को कोई फ़ॉरवर्ड कर दे, लेकिन उसकी मंशा किसी को दुख पहुँचाने या परेशान करने की न हो तो इसमें उसका कोई दोष नहीं हो सकता। इसलिए वह दोषी भी नहीं माना जा सकता।

हैरत की बात यह है कि सात साल पहले निरस्त की जा चुकी धारा के तहत पुलिस आज भी लोगों पर मुक़दमे ठोक रही है। अब पुलिस का भला कोई क्या कर लेगा! सो चल रही है भावनाओं की खेती! एक संगठन याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुँचा। उसने कोर्ट से अनुरोध किया कि कम से कम पुलिस को यह तो बता दीजिए कि धारा 66 ए को आप निरस्त कर चुके हैं।

कोर्ट तमतमाया। अटॉर्नी जनरल जिसे हम हिंदी में महान्यायवादी कहते हैं, से पूछा कि ये क्या हो रहा है? आख़िर जो धारा वजूद में ही नहीं है, उसके तहत मुक़दमे कैसे दर्ज किए जा सकते हैं? जवाब कुछ नहीं था। सो कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस देकर जवाब माँगा है। दरअसल इस धारा को एक तरह का राजनीतिक हथियार कहा जा सकता है। इसके ख़िलाफ़, जब इस्तेमाल करना चाहो, तब किया जा सकता है।

यही वजह है कि लम्बे समय तक पुलिस की इस बेजा कार्रवाई के खिलाफ किसी सरकार या किसी राजनीतिक दल ने आवाज़ तक नहीं उठाई। 2015 में यह धारा तब रद्द की गई थी, जब महाराष्ट्र में इसका बेजा इस्तेमाल हुआ था। बात तब की है जब शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का निधन हुआ था। उनके निधन के बाद मुंबई में जन जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था।

इसे लेकर फ़ेसबुक पर तरह-तरह की टिप्पणियाँ की गईं थीं। तब महाराष्ट्र पुलिस ने टिप्पणी करने वालों को गिरफ्तार किया और उन पर आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत केस दर्ज कर लिए। तब एक लॉ स्टूडेंट श्रेया सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उसी की याचिका पर कोर्ट ने इस धारा को निरस्त कर दिया था।

Web sitesi için Hava Tahmini widget