जयपुर : जयपुर की ‘बुलेट रानी’ विजया शर्मा ने दुनिया की सबसे ऊंची सड़क उमलिंग-ला दर्रा पर अकेले बाइक राइड की है। इस जर्नी में विजया ने पांच हजार किलोमीटर का सफर अकेले ही पूरा किया है। उन्होंने बारिश के बीच पथरीले रास्तों से होते हुए बुलेट-450 के जरिए उमलिंग-ला दर्रा पर तिरंगा लहराया। इस सड़क का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है।
जयपुर की भांकरोटा निवासी विजया शर्मा का कहना है कि बाइक से उमलिंग-ला दर्रा पहुंचने वाली वह राजस्थान की अकेली सोलो बाइक राइडर हैं। उन्हें पहली बाइक उनके ससुर ने दिलाई थी। वह कश्मीर से कन्याकुमारी तक 104 घंटे में बाइक से सफर भी कर चुकी हैं। उन्होंने बताया कि राइडिंग के दौरान वे चांदी के गहने पहनकर निकलती हैं। कहीं फंस जाती हैं या रुपए की जरूरत पड़ती है तो चांदी के गहने दे देती हैं। उन्होंने बताया- इससे वे सुरक्षित महसूस करती हैं।
सबसे पहले जानिए क्या है उमलिंग-ला दर्रा
लद्दाख क्षेत्र के पूर्वी भाग में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के पास लेह से 230 किमी दूर कोयुल लुंगपा और सिंधु नदी के बीच की सीमा पर यह सड़क है। यह दर्रा समुद्र तल से 19 हजार 300 फीट की ऊंचाई पर है। सर्दी के मौसम में यहां का पारा माइनस 40 डिग्री तक लुढ़क जाता है।
विजया ने बताया- रास्ते में मुश्किलें बहुत आईं। मैंने बारिश के टाइम को चुना, ऐसे में समस्याएं तो आनी ही थी। मुझे पहले अमरनाथ यात्रा करनी थी। 9 जुलाई को जयपुर से यात्रा शुरू की। पहले पहलगांव चली गई। पहलगांव से कश्मीर और बालटाल पहुंची। यहां एक रात रुकने के बाद रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद अमरनात्र पैदल गई। वापस बालटाल पहुंचने के बाद अपने अहम पड़ाव उमलिंग-ला दर्रा के लिए निकली।
इस राइड को कवर करना था, यह मेरे सपना था। यह सभी राइडर्स का सपना होता है। क्योंकि यह सबसे ऊंचा पास है। लास्ट ईयर ही खुला था। राजस्थान से पहले दो लड़कियों ने यह कवर किया था। उन्होंने यह ग्रुप में किया था।
मैं सोलो राइडर के रूप में इसे कवर करने वाली राजस्थान की पहली महिला हूं। उमलिंग-ला दर्रा पहुंचने से एक दिन पहले शाम को रवाना हुई थी। इस दौरान रास्ते में बाइक गर्म भी हो गई। बाइक को ठंडा करने के लिए थोड़ा समय लिया। जब अंधेरे में निकली तो रास्ते में आर्मी के जवान मिल गए। उन्होंने मुझे रात को अकेले जाने से मना किया। परमिशन नहीं दी। फिर अपने साथ नीचे ले आए।
बाइक वहीं छोड़ दी। नीचे आकर सुबह बाइक के पास पहुंची। फिर 21 जुलाई को उमलिंग दर्रा की चोटी पर पहुंच पाई। वहां जाकर जो खुशी मिली। वह किसी अवॉर्ड से कम नहीं था। इसके बाद 25 जुलाई को वापस जयपुर पहुंची।
इस सफर के दौरान लैंड स्लाइड से लेकर बारिश, तेज हवा जैसी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मैंने कहीं भी यह नहीं सोचा कि वापस निकल जाऊं। इस मामले में बहुत जिद्दी हूं। अपना सफर पूरा करके ही मानी। पथरीले रोड पर ड्राइव करना आसान नहीं था।
ससुर साहब ने दिलवाई थी पहली बाइक
उन्होंने बताया- मेरे घर में हमेशा बाइक रही है। जॉब के लिए पहली बाइक मेरे ससुर ने दिलवाई थी। इसके बाद मैंने बजाज की दो और बाइक चलाई। इसमें मेरे पति ने सहयोग किया। स्कूल-कॉलेज में जॉब करने जाती थी। वहां बाइक चलाती थी। एक बार जॉब छोड़कर आ गई। मेरे हाथ में 12000 रुपए थे।
बेटी से बोला कि मुझे गोवा जाना है। बेटी ने कहा आपको जाना चाहिए। उस वक्त एक स्टोरी पढ़ी थी, जिसमें सड़क पर एक महिला पंक्चर निकालती थी। उसकी कहानी थी। इस कहानी से मैं इंस्पायर हुई। सोचा की यह महिला सड़क पर अकेले पंक्चर निकालती है। इसमें इतनी हिम्मत है। मैं भी अकेले कुछ भी कर सकती हूं।
चांदी की चीजे पहनकर निकलती हूं
विजया ने बताया- राइड पर लोग सोने-चांदी की चीजे पहनकर कभी नहीं निकलते। मैं राइडिंग के वक्त पैर में पायल सहित अन्य चीजे पहनकर निकलती हूं। मेरा मानना है कि जब कभी मुझे रास्ते में जरूरत हो। पैसे नहीं हो या किसी बड़ी चीज की जरूरत पड़े तो चांदी की ये चीजें उस समस्या से बाहर निकलने में मदद कर सकती है।
एक बार राइड के दौरान गाड़ी का पेट्रोल खत्म हो गया, ट्रांजेक्शन के वक्त इंटरनेट नहीं चल रहा था। कैश भी पूरा खत्म हो गया था। ऐसे में मैंने पेट्रोल पम्प पर चांदी की पायजेब भी ऑफर कर दी थी। उस वक्त एक अन्य राइडर भी वहां था। उसने मुझे वहां मदद की। मैंने फिर बाद में उसे पैसे लौटाए। चांदी में अपनी सेफ्टी के मकसद से पहनती हूं।
जॉब छोड़ने के बाद बड़ी दिक्कत होने लगी
विजया ने बताया कि मैं मीडियम क्लास फैमिली से ताल्लुक रखती हूं। पहले तो मैं जॉब करती थी तो अर्निंग हो जाती थी। जॉब छोड़ने के बाद बड़ी दिक्कत होने लगी। पति से मांगती हूं। उन्हें भी पता है कि यह जिद्दी है। यह राइड करके ही रहेगी। तब वे मदद कर देते हैं। मेरे दोनों बच्चे इंजीनियर हैं। वे भी अब मुझे राइड के लिए मदद करने लगी हैं। कई बार सरकार से भी मदद मांगी, लेकिन कभी सहयोग नहीं मिला। ऐसी दुर्गम यात्राएं की है, जो कोई महिला अकेले नहीं कर पाती। मैं राजस्थान की तस्वीर लेकर निकलती हूं। सरकार चाहे तो मेरे जरिए राजस्थान के आगे बढ़ने की कहानी प्रमोट कर सकती है।
फैमिली का प्रेशर रहता है, लेकिन बहुत जिद्दी हूं
उन्होंने बताया- फैमिली का बहुत प्रेशर रहता है, लेकिन सभी का पता है कि मैं बहुत जिद्दी हूं। अभी एक राइड उमिंग-ला करके आई हूं। इस पर लगभग 60 हजार रुपए खर्च हो गए। यह खर्च पति ने ही उठाया है। पैसे हर चीज में लग जाता है। जब पैसा नहीं होता है तो घर वाले भी रुकने के लिए कह देते है।
मैं चाहूंगी कि सहयोग मिलता रहना चाहिए। लोग मुझे कई रैलियों में इवेंट्स में बुलाते हैं, लेकिन कभी कुछ नहीं मिलता। अपने खर्चे पर पहुंचते हैं। पेट्रोल भी लगता है। लोगों को उन सभी की मदद करनी चाहिए, जो अच्छा कर रहे हो। लड़कियों और महिलाओं के लिए जो प्रेरणा हो। उनको सहयोग हर किसी को सहयोग करना चाहिए
इंडिया के चार कॉर्नर करना सबसे बड़ा सपना
मेरा सपना बहुत बड़ा है, इसमें बहुत सारा पैसा लगने वाला है। इसलिए रुकी हुई हूं। मुझे इंडिया के चार कॉर्नर करने है। वैसे मैं पूरा इंडिया कवर कर चुकी, दो इंटरनेशनल राइड भी कर चुकी हूं। चार कॉर्नर जो है। खरडूंगला से कन्याकुमारी, तेजू से कोटेश्वर है। यह प्लस के साइन की तरह है। जो लगभग 15 हजार किलोमीटर की राइड है। मैं इसे 15 दिन में कवर करना चाहती हूं, यह बहुत मुश्किल है। यह सिर्फ पैसे के चलते रुका हुआ है, अभी पैसा हो तो अक्टूबर में ही निकल जाऊं।