चंद्रमा पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद लैंडर विक्रम से रोवर प्रज्ञान बाहर निकलकर चांद की सतह पर घूम रहा है। करीब 14 घंटे बाद गुरुवार सुबह इसकी पुष्टि भारतीय अंतरिक्ष संस्थान केंद्र (ISRO) ने की। हालांकि, INSPACE चेयरमैन पवन के गोएनका ने देर रात ही प्रज्ञान रोवर की रैंप से बाहर निकलते हुए तस्वीर शेयर की थीं। बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान-3 के लैंडर ने चांद पर पहला कदम रखा था।
प्रज्ञान रोवर में छह पहिए हैं और वजन 26 किलो है। चांद की सतह पर यह अपने सोलर पैनल खोलकर चल रहा है। इसरो के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह मिट्टी पर भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ और इसरो के लोगो की छाप भी छोड़ेगा। हालांकि इसे लेकर अभी इसरो का कोई बयान नहीं आया है।
चहलकदमी के दौरान रोवर की रफ्तार 1 सेमी/सेकंड है। इस दौरान आस-पास की चीजों को स्कैन करने के लिए नेविगेशन कैमरों का इस्तेमाल करेगा और इसरो की कमांड टीम को जानकारी भेजेगा।
चांद पर लैंडिंग में 41 दिन लगे
चंद्रयान-3 आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से 14 जुलाई को 3 बजकर 35 मिनट पर लॉन्च हुआ था। इसे चांद की सतह पर लैंडिंग करने में 41 दिन का समय लगा। धरती से चांद की कुल दूरी 3 लाख 84 हजार किलोमीटर है।
पहले जानिए रोवर प्रज्ञान के बारे में…यह क्या-क्या करेगा?
प्रज्ञान रोवर पर दो पेलोड लगे हैं। ये पानी और अन्य कीमती धातुओं की खोज में मदद करेंगे। APXS यानी अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर और LIBS यानी लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप। ये दोनों पेलोड चंद्रमा सतह की संरचना की जांच करेंगे। अगले 14 दिनों के दौरान रोवर इस डेटा को एकत्र करेगा और इसे लैंडर पर रिले करेगा। ये डेटा चंद्रयान -2 के ऑर्बिटर को भेजा जाएगा जो इसे पृथ्वी पर पहुंचाएगा।
चंद्रयान-3 के साथ कुल 6 पेलोड भेजे गए हैं
एक पेलोड जिसका नाम शेप है वो चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल पर लगा है। ये चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगाकर धरती से आने वाले रिडेएशन की जांच कर रहा है। वहीं लैंडर पर तीन पेलोड लगे हैं। रंभा, चास्टे और इल्सा। प्रज्ञान पर दो पेलोड है।
बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान-3 के लैंडर ने चांद पर पहला कदम रखा
ISRO की ये तीसरी कोशिश थी। 2008 में चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी खोजा, 2019 में चंद्रयान-2 चांद के करीब पहुंचा, लेकिन लैंड नहीं कर पाया। 2023 में चंद्रयान-3 चांद पर लैंड कर गया। चंद्रयान-3 ने बुधवार शाम 5 बजकर 44 मिनट पर लैंडिंग प्रोसेस शुरू की।
इसके बाद अगले 20 मिनट में चंद्रमा की अंतिम कक्षा से 25 किमी का सफर पूरा कर लिया। शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान-3 के लैंडर ने चांद पर पहला कदम रखा।
चंद्रयान-3 के लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग 4 फेज में हुई
चंद्रयान-3 के लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग चार फेज में हुई। तब लैंडर से चंद्रमा 30 किमी दूर था। पहले हॉरिजॉन्टल और फिर वर्टिकल लैंडिंग प्रोसेस शुरू हुई। 5 बजकर 27 मिनट पर इसका लाइव टेलिकास्ट शुरू हुआ। इसके बाद 5 बजकर 44 मिनट पर इसे एटीट्यूड होल्डिंग फेज में हॉरिजॉन्टल पोजिशन से वर्टिकल पॉजिशन में लाने के लिए हल्का सा मोड़ा गया। इसी समय को ’20 मिनट ऑफ टेरर’ यानी ‘खौफ के 20 मिनट’ कहा गया।
1. रफ ब्रेकिंग फेज: इस फेज के दौरान, चंद्रमा से 30 किमी दूर पर लैंडर की रफ्तार 6 हजार किमी प्रति घंटे से कम की गई। ताकि उसकी सॉफ्ट लैंडिंग कराई जा सके।
2. एटीट्यूड होल्डिंग फेज: लैंडर को हॉरिजॉन्टल पोजिशन में चंद्रमा से 30 किमी दूरी से 7.43 किमी दूरी तक लाया गया। फिर इसे हॉरिजॉन्टल पोजिशन से थोड़ा वर्टिकल मोड़ा गया।
3. फाइन ब्रेकिंग फेज: इस फेज में लैंडर ने करीब 2.9 मिनट में हॉरिजॉन्टल रहकर 28.52 किमी का सफर तय किया, ताकि लैंडिंग वाली जगह के ऊपर आ सके। इस दौरान चंद्रमा से उसकी दूरी को करीब 1 किमी कम किया गया। चंद्रयान-2 ने इसी एटीट्यूड होल्ड और फाइन ब्रेकिंग फेज के बीच अपना कंट्रोल खो दिया था और क्रैश हो गया था।
4. टर्मिनल डेसेंट: इस फेज में लैंडर चंद्रमा से करीब 800 मीटर दूर था। तब इसे वर्टिकल पोजिशन में चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंड कराया गया।
इस ग्राफिक्स से समझिए, किस रफ्तार से चांद तक पहुंचा लैंडर…
उतरते समय लैंडर ने चांद की तस्वीरें लीं-
ISRO ने कहा- अगले 14 दिन हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण
ISRO के डायरेक्टर एस. सोमनाथ ने कहा- अगले 14 दिन हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। प्रज्ञान रोवर को बाहर आने में एक दिन का भी समय लग सकता है। प्रज्ञान हमें चांद के वातावरण के बारे में जानकारी देगा। हमारे कई मिशन कतार में हैं। जल्द ही सूर्य पर आदित्य एल-1 भेजा जाएगा। गगनयान पर भी काम जारी है।
चांद पर सकुशल पहुंचने का संदेश भी चंद्रयान-3 ने भेज दिया है- ‘ भारत, मैं अपनी मंजिल पर पहुंच गया हूं। और आप भी।’ इस कामयाबी पर साउथ अफ्रीका से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को बधाई देकर कहा- चंदा मामा बहुत दूर के कहा जाता था। अब बच्चे कहेंगे कि चंदा मामा बस एक टूर के।
अब चंद्रयान मिशन से जुड़े 4 जरूरी सवालों के जवाब…
1. इस मिशन से भारत को क्या हासिल होगा?
ISRO के एक्स साइंटिस्ट मनीष पुरोहित कहते हैं कि इस मिशन के जरिए भारत ने दुनिया को बताया कि हमारे पास चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने और रोवर को वहां चलाने की काबिलियत है। इससे दुनिया का भारत पर भरोसा बढ़ेगा, जो कॉमर्शियल बिजनेस बढ़ाने में मदद करेगा। भारत ने अपने हैवी लिफ्ट लॉन्च व्हीकल LVM3-M4 से चंद्रयान को लॉन्च किया है। इस व्हीकल की काबिलियत भारत पहले ही दुनिया को दिखा चुका है।
बीते दिनों अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस की कंपनी ‘ब्लू ओरिजिन’ ने ISRO के LVM3 रॉकेट के इस्तेमाल में अपना इंटरेस्ट दिखाया था। ब्लू ओरिजिन LVM3 का इस्तेमाल कॉमर्शियल और टूरिज्म पर्पज के लिए करना चाहता है। LVM3 के जरिए ब्लू ओरिजिन अपने क्रू कैप्सूल को प्लान्ड लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) स्पेस स्टेशन तक ले जाएगा।
2. साउथ पोल पर ही मिशन क्यों भेजा गया?
चंद्रमा के पोलर रीजन दूसरे रीजन्स से काफी अलग हैं। यहां कई हिस्से ऐसे हैं जहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती और तापमान -200 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक चला जाता है। ऐसे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यहां बर्फ के फॉर्म में अभी भी पानी मौजूद हो सकता है। भारत के 2008 के चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का संकेत दिया था।
इस मिशन की लैंडिंग साइट चंद्रयान-2 जैसी ही है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश पर। लेकिन इस बार एरिया बढ़ाया गया है। चंद्रयान-2 में लैंडिंग साइट 500 मीटर X 500 मीटर थी। अब, लैंडिंग साइट 4 किमी X 2.5 किमी है।
चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट-लैंडिंग कराने वाला दुनिया का पहला स्पेसक्राफ्ट बन गया है। चंद्रमा पर उतरने वाले पिछले सभी स्पेसक्राफ्ट भूमध्यरेखीय क्षेत्र में, चंद्र भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में कुछ डिग्री अक्षांश पर उतरे हैं।
3. इस बार लैंडर में 5 की जगह 4 इंजन क्यों?
इस बार लैंडर में चारों कोनों पर चार इंजन (थ्रस्टर) लगाए गए। पिछली बार चंद्रयान-2 के बीचो-बीच लगा पांचवां इंजन हटा दिया गया। फाइनल लैंडिंग दो इंजन की मदद से ही हुई। दो इंजन इसलिए बंद रखे गए ताकि इमरजेंसी में ये काम कर सकें। चंद्रयान 2 मिशन में आखिरी समय में पांचवां इंजन जोड़ा गया था। इंजन इसलिए हटाया गया, ताकि ज्यादा फ्यूल साथ ले जाया जा सके।
4. 14 दिन का ही मिशन क्यों?
मनीष पुरोहित ने बताया कि चंद्रमा पर 14 दिन तक रात और 14 दिन तक उजाला रहता है। जब यहां रात होती है तो तापमान -100 डिग्री सेल्सियस से भी कम हो जाता है। चंद्रयान के लैंडर और रोवर अपने सोलर पैनल्स से पावर जनरेशन करेंगे। इसलिए वो 14 दिन तो पावर जनरेट कर लेंगे, लेकिन रात होने पर पावर जनरेशन प्रोसेस रुक जाएगी। पावर जनरेशन नहीं होगा तो इलेक्ट्रॉनिक्स भयंकर ठंड को झेल नहीं पाएंगे और खराब हो जाएंगे