नई दिल्ली : देश की न्यायपालिका और कार्यपालिका एक बार फिर नए टकराव की ओर बढ़ रही हैं। यह टकराव चुनाव आयोग चयन समिति से सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के नाम हटाने को लेकर है। केंद्र सरकार एक ऐसा विधेयक लाई है जो सीजेआई को देश के शीर्ष चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति प्रक्रिया से बाहर कर देगा।
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 गुरुवार को राज्यसभा में पेश किया जा रहा है। इसमें प्रस्ताव है कि मतदान अधिकारियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक पैनल की सिफारिश पर की जाएगी। प्रधान मंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय कैबिनेट मंत्री इसके सदस्य होंगे। प्रधानमंत्री पैनल की अध्यक्षता करेंगे। अभी तक इस समिति में चीफ जस्टिस भी हैं। लेकिन जब यह विधेयक कानून बन जाएगा तो चीफ जस्टिस इस समिति का हिस्सा नहीं होंगे।
देखा जाए तो इस विवादास्पद विधेयक का मकसद सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2023 के फैसले को कमजोर करना है जिसमें एक संविधान पीठ ने कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और सीजेआई वाले पैनल की सलाह पर की जाएगी।
मोदी सरकार के इस कदम ने सुप्रीम कोर्ट और केंद्र के बीच नए सिरे से टकराव की स्थिति तैयार कर दी है। राज्यसभा में अभी जो स्थिति है, उसके हिसाब से सरकार यह विधेयक भी पास करा लेगी। लेकिन यह अलोकतांत्रिक होगा, क्योंकि आखिर सीजेआई को इस पैनल से हटाने पर सरकार क्या कुछ हासिल कर लेगी। सरकार अब जो नया पैनल बनाने का इरादा रखती है, उसके जरिए उसे अपने मन माफिक मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव अधिकारियों की नियुक्तियों का अधिकार मिल जाएगा। उस पर टोकाटाकी करने वाले सीजेआई नहीं होंगे।
यह बिल ऐसे समय लाया जा रहा है जब पूरे विपक्ष का ध्यान अविश्वास प्रस्ताव की बहस पर है। जाहिर सी बात है कि राज्यसभा में हर समय सदन स्थगित किए जाने या सदन बहिष्कार की स्थिति बनी रहती है। सरकार इन हालात का फायदा उठाकर इस बिल को पास कराना चाहती है।
टीएमसी का आरोपः तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद साकेत गोखले ने कहा है कि बीजेपी खुलेआम 2024 के चुनाव में धांधली कर रही है। मोदी सरकार ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बेशर्मी से कुचल दिया है और चुनाव आयोग को अपना चमचा बना रही है। उन्होंने कहा कि गुरुवार को राज्यसभा में पेश किए जा रहे एक विधेयक में, मुख्य चुनाव आयुक्त और 2 ईसी की नियुक्ति के लिए चयन समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश के स्थान पर एक केंद्रीय मंत्री को शामिल किया गया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा था कि समिति में (ए) भारत के मुख्य न्यायाधीश, (बी) पीएम (सी) विपक्ष के नेता शामिल हों। विधेयक में, मोदी सरकार ने CJI की जगह “एक केंद्रीय मंत्री” को शामिल कर दिया है। इस तरह अब, मोदी और 1 मंत्री पूरे चुनाव आयोग की नियुक्ति करेंगे। इंडिया गठबंधन द्वारा भाजपा के दिल में डर पैदा करने के बाद यह 2024 के चुनावों में धांधली की दिशा में एक स्पष्ट कदम है।
कॉलिजियम के जरिए जजों की नियुक्तियों से लेकर दिल्ली सेवा अधिनियम जैसे विवादास्पद कानूनों तक, कई मुद्दों पर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट के बीच खींचतान चल रही है। कॉलिजियम सिस्टम को लेकर सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच लंबा विवाद चला। तत्कालीन कानून मंत्री किरण रिजिजू का मंत्रालय इस चक्कर में छीन लिया गया।
मोदी सरकार कॉलिजियम सिस्टम की यह कहकर आलोचना करती रही है कि सिर्फ भारत ही ऐसा देश है, जहां जजों की नियुक्ति जज करते हैं। जबकि कॉलिजियम सिस्टम को लेकर सुप्रीम कोर्ट साफ तौर पर कह चुका है कि न्यायिक व्यवस्था को चलाने के लिए यही सबसे बेहतर सिस्टम है। इसमें सरकार का दखल नहीं होना चाहिए।