जयपुर : 19 नए जिले बनने से आपका क्या फायदा?:कांग्रेस को सियासी माइलेज मिलेगा या नहीं; क्या हो जाएगा क्राइम कंट्रोल, 50 जिलों का गणित

जयपुर : राजस्थान अब सबसे ज्यादा जिलों वाला देश का तीसरा राज्य बन गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस बार जब बजट के जवाब में 19 जिलों की घोषणा की थी, तब सवाल उठे थे कि ये केवल घोषणा बनकर ही रह जाएंंगे। जिलों का गठन धरातल पर नहीं आ पाएगा, लेकिन अब इन जिलों के अस्तित्व का नोटिफिकेशन जारी हो गया है।

इसे गहलोत की कांग्रेस सरकार रिपीट करवाने की सबसे आक्रामक नीति के तौर पर देखा जा रहा है। जिसका पॉलिटिकल माइलेज कांग्रेस सरकार को चुनावों में मिलना माना जा रहा है। इस घोषणा के साथ ही गहलोत ने विपक्ष को करारा जवाब भी दिया है।

इन जिलों के बनाने के पीछे क्या सियासी मायने हैं? राजस्थान की जनता को क्या फायदा होगा? क्या क्राइम कंट्रोल होगा या जनता के काम चुटकियों में होने लगेंगे? जिलों के गठन के बाद भी सरकार के सामने क्या चुनौतियां रहेंगी?

पढ़िए इस खबर में एक्सपर्ट का एनालिसिस…

क्या नए जिले कांग्रेस सरकार की ‘रिपीट योजना’ का मास्टर स्ट्रोक?
राजस्थान में जिलों की डिमांड पूरी होने को कांग्रेस सरकार के रिपीट करवाने की योजना का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। घोषणा के बाद से विपक्ष कह रहा था कि ये जिले धरातल पर कभी नहीं आएंगे। बतौर मुख्यमंत्री गहलोत अपने पिछले दो कार्यकाल में कभी इतने आक्रामक दिखाई नहीं दिए। लेकिन इस बार प्रदेश और देश में छाए बर्खास्त मंत्री राजेंद्र गुढ़ा के लाल डायरी के मुद्दे के बीच उन्होंने 7 अगस्त को जिलों के उद्घाटन की घोषणा कर दी है।

राजस्थान में 19 नए जिले बनाने के बाद अब कुल 50 जिले हो गए।
राजस्थान में 19 नए जिले बनाने के बाद अब कुल 50 जिले हो गए।

हालांकि गहलोत सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) लागू करने की पहल, चिरंजीवी बीमा योजना, फ्री बिजली, महिलाओं को फ्री स्मार्टफोन, राशन किट ने आमजन में पैठ बनाई है।

लेकिन गहलाेत ने नए जिलों की घोषणा का वादा पूरा कर राजनीतिक समर्थकों के साथ विरोधियों को भी साधा है। कांग्रेस पार्टी जहां कमजोर है, वहां भी जिलों की घोषणा की गई है। ताकि कांग्रेस को चुनावी लीड मिल सके। ब्यावर में लंबे समय से कांग्रेस नहीं जीत रही थी। भाजपा विधायक शंकर सिंह रावत पैदल यात्रा निकाल चुके थे। भाजपा राज में भले ही यहां जिला नहीं बना हो, लेकिन गहलोत सरकार में जिला बनाने को कांग्रेस भुनाएगी।

वहीं पाली, जालोर और सिरोही में भी पार्टी बेहद कमजोर है। पाली को संभाग मुख्यालय बनाना और सांचौर को जिला बनाना भी इसकी ही कोशिश है। फलोदी, बालोतरा को भी जिला बनाकर गहलोत ने जननायक की अपनी छवि को मजबूत करने की कोशिश है। बजट पास होने वाले दिन जिलों की घोषणा से विपक्ष को निरुत्तर कर दिया है। भाजपा के पास फिलहाल इसकी काट दिखाई नहीं दे रही है।

अब जान लेते हैं 19 जिलों और 3 संभाग बनाने से फायदा क्या होगा?

1. गुड गवर्नेंस और फास्ट सर्विस डिलीवरी
आर्थिक एवं प्रशासनिक मामलों के एक्सपर्ट प्रो.एसएस सोमरा के मुताबिक राज्य सरकार को जनता की उम्मीद के अनुसार गुड गवर्नेंस और फास्ट सर्विस डिलीवरी देनी होती है। बड़े जिलों (क्षेत्रीय दायरे) में यह संभव नहीं हो पाता। सरकार ने राजस्थान में कई स्कीम लॉन्च की है, लेकिन बड़े जिलों में कौने-कौने तक इन्हें पहुंचाना संभव नहीं है। जैसलमेर, बाड़मेर, नागौर जेसे जिलों का ही उदाहरण लीजिए- यहां किसी दूर गांव के व्यक्ति को काम पड़े तो एक कौने से 250-250 किलोमीटर तक आना-जाना पड़ता है। छोटे जिले होंगे तो समय बचेगा और जनता का पैसा भी।

जब दायरा छोटा होगा तो प्रशासनिक अधिकारियों और लोगों के बीच संवाद बढ़ेगा। लोग कलेक्टर-एसपी से मिल सकेंगे। जिले के अधिकारी भी जनता के बताए कामों का फॉलोअप जल्दी से ले सकेंगे। सभी लोगों की मुख्यालयों तक पहुंच होगी। सड़क, पानी, बिजली, सफाई जैसी मूलभूत सुविधाओं में सुधार होगा। दूर-दराज गांवों तक के लोगों को जिला मुख्यालय पर बैठे अफसरों तक पहुंचने में आसानी रहेगी।

2. जनता के काम आसान और सरकार के लिए रेवेन्यू मॉडल बनेंगे नए जिले
जब क्षेत्र छोटा होगा, तो प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर निगरानी बनी रहती है। कलेक्टर, एसडीओ सहित सरकारी मशीनरी की रफ्तार भी तेज होगी। जिलों का आकार जितना छोटा होगा, प्लानिंग उतनी ही सक्सेस होगी। ब्लॉक, गांव, पंचायत, ढाणी और जिला मुख्यालय के बीच सीधा संवाद और भी आसान होगा।

कानून और व्यवस्था बेहतर होगी। कनेक्टिविटी बढ़ेगी, सर्विस डिलीवरी फास्ट, सरकारी योजनाओं को आम लोगों तक ज्यादा आसानी से पहुंचाया जा सकेगा। इसका दूसरा पहलू ये भी है कि सरकार के लिए नए जिले राजस्व का मॉडल बनेंगे। नए जिले के हिसाब से वहां रीको जैसे औद्योगिक क्षेत्र बनेंगे। असल में जिला राज्य की एक यूनिट की तरह होता है, उसके लिए नया बजट आएगा। जिससे जिला स्तर के सभी सरकारी दफ्तर खुलेंगे तो वहां काम करने वाले अफसरों, कर्मचारियों की मैन पावर बढ़ेगी।

3. क्राइम कंट्रोल : 19 जगहों पर IPS बैठेंगे, संभाग से होगी क्लोज मॉनिटरिंग
खासतौर से महिला अपराधों को लेकर राजस्थान बार-बार सुर्खियों में रहता है। नए जिलों के गठन से उन जगहों पर IPS अधिकारियों की तैनाती से क्राइम कंट्रोल करने में मदद मिलेगी। अब प्रदेश में 10 संभाग होंगे। नए तीन संभाग में आईजी रैंक के अधिकारी बैठेंगे, तो पुलिसिंग पर क्लोज मॉनिटरिंग होगी। पुलिस फोर्स भी बढ़ेगी, जिससे अपराधियों में डर बैठेगा। जिले में आने वाली जेलों का सुपरविजन बढ़ेगा। ट्रैफिक पुलिस के आने से उन क्षेत्रों का ट्रैफिक कंट्रोल होगा। IPS के साथ-साथ RPS जैसे राजस्थान सेवा के अफसर जिम्मा संभालेंगे तो कई तरह के सुधार होंगे।

आसान नहीं राह, सरकार को लड़ना होगा इन 2 मोर्चों पर

1. आर्थिक चुनौती : इन्फ्रास्ट्रक्चर पर एक बार होगा मोटा खर्चा
राज्य सरकार को नया जिला बनाने के लिए आर्थिक खर्च एक बार मोटा करना होगा। गहलोत ने बजट में इसके लिए 2000 करोड़ का प्रावधान किया है। एक्सपर्ट के अनुसार एक बार खर्चा होगा, लेकिन सरकार और जनता को बड़ा फायदा होगा। अफसरों की सैलरी, ऑफिस एस्टेबलिशमेंट, गाड़ियां आदि खर्चा आदि को मोटे रूप से देखें तो 50 लाख रुपए प्रति जिला वन टाइम खर्च आ सकता है। इसके बाद ये कॉस्ट रनिंग में आ जाती है। लेकिन सरकार के लिए जो रेवेन्यू मॉडल बनेगा, उसके हिसाब से ये खर्चा कुछ भी नहीं है। फिर भी कलेक्ट्रेट भवन, पुलिस लाइन, कोषालय आदि के लिए जमीन अलॉटमेंट और बिल्डिंग निर्माण में अच्छा खासा फंड लगेगा। इसीलिए दो हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।

2. अफसरों की कम संख्या : राजस्थान को चाहिए और 109 IAS
ये सबसे बड़ा मुद्दा है। क्षेत्रफल के हिसाब से देखा जाए तो जहां अन्य राज्यों में एक आईएएस को लगभग 200 से 215 वर्ग किलोमीटर का इलाका संभालना होता है, वहीं राजस्थान में एक IAS अफसर के जिम्मे करीब 5 गुना ज्यादा 1090 वर्ग किलोमीटर इलाका संभालना पड़ता है। ऐसे में प्रशासनिक मशीनरी कितनी भी योग्य हो, वो काम प्रभावित करती है।

राजस्थान में क्षेत्रफल और आबादी के हिसाब से लगभग 365 आईएएस अफसरों का काडर निर्धारित होना चाहिए। अभी राजस्थान काडर में आईएएस के 313 पद स्वीकृत हैं। इनके एवज में अभी करीब 248 अफसर ही काम कर रहे हैं। ऐसे में अभी करीब 100 और आईएएस की जरूरत है।

यदि अन्य राज्यों से तुलना करें, तो देश के जिन तीन राज्यों में तय काडर से 100 पदों से ज्यादा की कमी है, उनमें राजस्थान तीसरे स्थान पर है। हरियाणा में महज एक करोड़ लोगों पर 77 आईएएस के पद आवंटित है। पंजाब में भी 77 पद आवंटित है। मध्यप्रदेश में 52 और तमिलनाडु में 49, छत्तीसगढ़ में 60, जबकि राजस्थान में 1 करोड़ जनता पर केवल 39 पद आवंटित हैं। राजस्थान में फिलहाल 109 अफसरों की कमी मानी जाती है। ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में अफसरों की कमी पूरी करना बड़ी चुनौती होगी।

आक्रामक रणनीति से काम कर रहे गहलोत
इस बार सीएम गहलोत सरकारी योजनाओं को धरातल पर लाने में आक्रामक तरीके से काम कर रहे हैं। इसी योजना के तहत 1.30 करोड़ से अधिक परिवारों के लिए 10 अगस्त को इंदिरा गांधी फ्री स्मार्ट फोन योजना और 1.6 करोड़ परिवारों के लिए इसके बाद 15 अगस्त को अन्नपूर्णा फ्री फूड पैकेट योजना ला रहे हैं।

गहलोत 8 रुपए में लंच और डिनर के लिए इंदिरा रसोई योजना को गांव-गांव तक ले जाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। आचार संहिता से पहले वे इसे ग्रामीणों तक पहुंचाने में जुटे हुए हैं। कुल मिलाकर जैसे ही कोई मुद्दा विपक्ष के हाथ लगता है, वैसे ही गहलोत अपनी योजनाओं से लगातार जवाब दे रहे हैं। सियासी एक्सपर्ट का मानना है कि विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस का माहौल बनाए रखने में गहलोत कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रहे।

अब राजस्थान देश का तीसरा सबसे ज्यादा जिलों वाला राज्य
देश में कुल 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में देखा जाए, तो गहलोत सरकार के नोटिफिकेशन से पहले राजस्थान जिलों के मामले में पहले गुजरात और तेलंगाना के साथ 7वें नंबर पर था। अब राजस्थान में जिलों की संख्या 50 हो गई है, जिससे प्रदेश ने सीधे तीसरे नंबर पर छलांग लगा दी है। उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के बाद अब जिलों की संख्या में राजस्थान तीसरा बड़ा राज्य है। उत्तर प्रदेश में 75 जिले हैं, तो मध्य प्रदेश अब राजस्थान से मात्र 2 जिले आगे हैं। मध्य प्रदेश में जिलों की संख्या 52 है।

क्या और बनेंगे नए जिले? : अब तक राजस्थान में होने चाहिए थे 52 जिले
एक अनुमान के मुताबिक राजस्थान की आबादी 8 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। पिछले साढ़े चार दशक में आबादी तो दोगुनी हो गई, लेकिन जिले केवल 7 ही बढ़े थे। साल 1981 तक राजस्थान में 26 जिले थे, तब राजस्थान की जनसंख्या करीब 3.6 करोड़ थी। आबादी की बढ़ोतरी को देखते हुए अब तक 26 और जिलों का गठन हो जाना चाहिए था। जिलों की संख्या दोगुनी होनी चाहिए थी। लेकिन अब तक 33 जिले ही बन पाए।

साल 2008 में प्रतापगढ़ के बाद से राज्य में कोई नया जिला नहीं बन पाया था। अब इस सरकार के नोटिफिकेशन के बाद 19 जिले जब सही तौर पर काम करने लगेंगे, तो राजस्थान में प्रशासनिक दृष्टि से बहुत कुछ बैलेंस हो सकेगा। हालांकि मुख्यमंत्री ने ये भी कहा है कि जनता की डिमांड के अनुसार कुछ और नए जिले भी बनाए जा सकते हैं।

राजस्व मंत्री रामलाल जाट ने कहा- सीएम ने इतिहास बनाया है। मेरी मांग है कि आगे और भी जिले बनाए जाएं। सरकार राज्य में कुछ छोटे जिले भी बनाए। जनता और बीजेपी की ओर से प्रदेश में और जिले बनाने की मांग की जा रही है।

ग्राफिक्स में जानें- कौनसे जिले में कौनसी तहसील

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