हरियाणा : नूंह में हुई हिंसा के चार दिन बाद मेवात की गंगा जमुनी तहजीब फिर से नजर आने लगी है। इस तहजीब को जिंदा रखने के लिए मुस्लिम समाज के लोग दंगे के दिन से ही मंदिरों के सामने पहरा देकर रक्षक की भूमिका अदा कर रहे हैं। बीते सोमवार को लाठी, डंडों और अन्य हथियारों से लैस होकर आए सैकड़ों दंगाइयों से भादस गुरुकुल और मरोड़ा गोशाला को बचाने का मामला सुर्खियों में है।
मरोड़ा गोशाला के निदेशक वेद प्रकाश परमार्थी ने कहा कि बड़ी संख्या में दंगाइयों की भीड़ गोशाला पर हमला करने आई थी, जिसे गांव के सरपंच मुश्ताक खान व अन्य लोगों ने मरोड़ा के अड्डे से आगे नहीं बढ़ने दिया। मुसलमान भाई हमारे सुख-दुख के साथी हैं।
तोड़फोड़ का था आभास
सरपंच शौकत अली ने बताया कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान हुई हिंसा में हमारे यहां गोशाला व मंदिर को नुकसान पहुंचा था। ऐसे में हमने दंगाइयों को रोकने के लिए तुरंत कार्रवाई की। यदि देर हो जाती तो कोई बड़ी घटना घट सकती थी क्योंकि गुरुकुल में सैकड़ों बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। सरपंच मुश्ताक खान ने बताया कि दंगे के बाद भी शरारती तत्वों ने गोशाला पर हमला करने की साजिश रची थी। उस दिन भी हम दीवार बनकर खड़े रहे और आगे भी खड़े रहेंगे। दंगे करने वालों का कोई धर्म नहीं होता है।
देश के सबसे पिछड़े जिले नूंह के कुछ एक गांवों को छोड़कर सभी गांवों में मंदिर हैं। यहां 80 प्रतिशत मुस्लिम आबादी रहती है। नूंह, फिरोजपुर झिरका, तावडू, पिनगवां, नगीना और पुन्हाना शहर में हिंदू आबादी 25 फीसदी से ज्यादा है। गांवों में मुस्लिम आबादी 85 से 95 प्रतिशत है।