Chandrayaan 3 : क्या है ‘बाहुबली’ रॉकेट, जिससे भेजा गया चंद्रयान-3; जानें सभी चंद्र मिशनों के बारे में

Chandrayaan 3 : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान-3 शुक्रवार को सफल लॉन्चिंग की गई। इसे इसरो के ‘बाहुबली रॉकेट’ लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (एलवीएम-3) से प्रक्षेपित किया गया। चंद्रयान-3 मिशन का उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग का है। भारत का यह तीसरा चंद्र मिशन है, जबकि चंद्र सतह पर सुरक्षित लैंडिंग का दूसरा प्रयास है। इससे पहले केवल तीन ही देश अमेरिका, रूस और चीन चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करा सके हैं।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान-3 शुक्रवार को सफल लॉन्चिंग की गई। इसे इसरो के ‘बाहुबली रॉकेट’ लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (एलवीएम-3) से प्रक्षेपित किया गया। चंद्रयान-3 मिशन का उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग का है। भारत का यह तीसरा चंद्र मिशन है, जबकि चंद्र सतह पर सुरक्षित लैंडिंग का दूसरा प्रयास है। इससे पहले केवल तीन ही देश अमेरिका, रूस और चीन चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करा सके हैं।

भारत का यह मिशन चंद्रयान-2 की क्रैश लैंडिंग के चार साल बाद भेजा जा रहा है। चंद्रयान-3 मिशन सफल होता है, तो अंतरिक्ष के क्षेत्र में ये भारत की एक और बड़ी कामयाबी होगी। इस बीच जानना जरूरी है कि चंद्रयान-3 मिशन क्या है? इसको चांद तक पहुंचाने वाला रॉकेट एलवीएम क्या है? चंद्रयान-3 को LVM3 के साथ क्यों जोड़ा गया है? अब तक कितनी तरह के चंद्र मिशन भेजे जा चुके हैं?

चंद्रयान 3 – फोटो
चंद्रयान-3 है क्या? 
चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। इसमें एक प्रणोदन मॉड्यूल, एक लैंडर और एक रोवर होगा। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया है।

इस दिन कर सकता है लैंडिंग
चंद्रयान ने 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा केंद्र से उड़ान भरी। अगर सब कुछ योजना के अनुसार हुआ तो 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा पर उतरेगा। मिशन चंद्रमा के उस हिस्से तक लॉन्च होगा, जिसे डार्क साइड ऑफ मून कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह हिस्सा पृथ्वी के सामने नहीं आता।

चंद्रयान 3 और एलवीएम 3
चंद्रयान 3 और एलवीएम 3 – फोटो
इसको चांद तक पहुंचाने वाला रॉकेट एलवीएम क्या है?
भारत के उन्नत ‘बाहुबली’ रॉकेट एलवीएम-3 से चंद्रयान-3 मिशन को लॉन्च किया गया। बीते बुधवार को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में चंद्रयान-3 युक्त एनकैप्सुलेटेड असेंबली को एलवीएम3 के साथ जोड़ा गया था।

130 हाथियों का वजन और ऊंचाई कुतुब मीनार की आधी
चंद्रयान-3 मिशन में 3921 किलोग्राम वजनी उपग्रह लगभग 400,000 किलोमीटर का सफर तय करेगा। रॉकेट का वजन 642 टन है, जो लगभग 130 एशियाई हाथियों के वजन के बराबर है। इसकी ऊंचाई 43.5 मीटर है, जो कुतुब मीनार (72 मीटर) की आधी से अधिक ऊंचाई है।

Chandrayaan-3
Chandrayaan-3 – फोटो
चंद्रयान-3 को LVM3 के साथ क्यों जोड़ा गया?
रॉकेटों में शक्तिशाली प्रणोदन प्रणालियां होती हैं जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव पर काबू पाकर उपग्रहों जैसी भारी वस्तुओं को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए जरूरी भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करती हैं। LVM3 भारत का सबसे भारी रॉकेट है। प्रक्षेपण यान आठ टन तक पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षाओं (LEO) तक ले जा सकता है, जो पृथ्वी की सतह से लगभग 200 किमी दूर है। हालांकि, जब भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षाओं (GTO) की बात आती है, तो यह केवल लगभग चार टन भार ले जा सकता है। भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा पृथ्वी से काफी आगे लगभग 35,000 किमी तक स्थित है।

LVM3 ने 2014 में अंतरिक्ष में अपनी पहली यात्रा की और 2019 में चंद्रयान -2 भी ले गया। इस साल मार्च में यह LEO में लगभग 6,000 किलोग्राम वजन वाले 36 वनवेब उपग्रहों को ले गया, जो कई उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाने की अपनी क्षमताओं को दर्शाता है। यह दूसरी बार था, जब LVM3 ने व्यावसायिक लॉन्च किया। पहली बार अक्तूबर 2022 में इसने वनवेब इंडिया-1 मिशन को लांच किया था।

Nasa artemis 1 moon mission
Nasa artemis 1 moon mission – फोटो
अब तक कितनी तरह से चंद्र मिशन भेजे जा चुके हैं?
फ्लाईबायस: ये वे मिशन हैं जिनमें अंतरिक्ष यान चंद्रमा के पास से गुजरा, लेकिन उसके चारों ओर की कक्षा में नहीं पहुंच पाया। इन्हें या तो दूर से चंद्रमा का अध्ययन करने के लिए बनाया गया था या वे किसी अन्य ग्रह पिंड या अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए थे और आकाशीय पिंड के पास से गुजरे थे। फ्लाईबाय मिशन के उदाहरण अमेरिका के पायनियर 3 और 4 और तत्कालीन रूस के लूना 3 हैं।

ऑर्बिटर: ये अंतरिक्ष यान थे जिन्हें चंद्र कक्षा में जाने और चंद्रमा की सतह और वायुमंडल का लंबे समय तक अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया था। भारत का चंद्रयान-1 एक ऑर्बिटर था, साथ ही विभिन्न देशों के 46 अन्य चंद्रमा मिशन भी थे। ऑर्बिटर मिशन किसी ग्रह पिंड का अध्ययन करने का सबसे आम तरीका है। अब तक केवल चंद्रमा, मंगल और शुक्र पर ही लैंडिंग संभव हो पाई है। अन्य सभी ग्रह पिंडों का अध्ययन ऑर्बिटर या फ्लाईबाई मिशनों के माध्यम से किया गया है। चंद्रयान-2 मिशन में एक ऑर्बिटर भी शामिल था, जो अभी भी चल रहा है और लगभग 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है।

इम्पैक्ट मिशन: ये ऑर्बिटर मिशन का विस्तार है। जब मुख्य अंतरिक्ष यान चंद्रमा के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है, उस पर लगे एक या अधिक उपकरण चंद्रमा की सतह पर अनियंत्रित लैंडिंग करते हैं। वे प्रभाव के बाद नष्ट हो जाते हैं, लेकिन फिर भी अपने रास्ते पर चंद्रमा के बारे में कुछ उपयोगी जानकारी भेजते हैं। चंद्रयान-1 के एक उपकरण ‘मून इम्पैक्ट प्रोब’ को भी इसी तरह चंद्रमा की सतह पर क्रैश लैंडिंग के लिए बनाया गया था। इसरो की मानें तो इसके द्वारा भेजे गए डेटा ने चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी के अतिरिक्त सबूत दिए थे।

लैंडर: ये मिशन चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान की सॉफ्ट लैंडिंग के लिए होते हैं। ये ऑर्बिटर मिशन से अधिक कठिन हैं। चंद्रमा पर पहली सफल लैंडिंग 1966 में रूस के लूना 9 अंतरिक्ष यान द्वारा की गई थी। इसने चंद्रमा की सतह से पहली तस्वीर भी जारी की। हालांकि, इससे पहले 11 प्रयास किए गए लैंडर मिशन अपने उद्देश्य में विफल रहे।

रोवर्स: ये लैंडर मिशन का विस्तार हैं। भारी होने के चलते लैंडर अंतरिक्ष यान को पैरों पर खड़ा होना पड़ता है। लैंडर पर मौजूद उपकरण नजदीक से अवलोकन कर सकते हैं और डेटा एकत्र कर सकते हैं, लेकिन चंद्रमा की सतह के संपर्क में नहीं आ सकते या इधर-उधर नहीं जा सकते। इस कठिनाई को दूर करने के लिए रोवर्स को डिजाइन किया गया है। रोवर्स लैंडर पर खास पहिएदार पेलोड होते हैं जो खुद को अंतरिक्ष यान से अलग कर सकते हैं। इसके साथ ही रोवर्स चंद्रमा की सतह पर घूम सकते हैं और उपयोगी जानकारी इकट्ठा कर सकते हैं जो लैंडर के भीतर के उपकरण हासिल नहीं कर सकते। इसरो के चंद्रयान-2 मिशन में ‘विक्रम’ लैंडर पर रोवर ‘प्रज्ञान’ मौजूद था।

मानव मिशन: इनमें चंद्रमा की सतह पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतारना शामिल है। अब तक सिर्फ अमेरिका की नासा ही चांद पर इंसान को उतार पाई है। अब तक, 1969 से 1972 के बीच दो-दो अंतरिक्ष यात्रियों की छह टीमें चंद्रमा पर उतरी हैं। अब नासा अपने आर्टेमिस III के साथ एक बार फिर चंद्र सतह पर लोगों को ले जाने के लिए तैयार है।  फिलहाल आर्टेमिस III की लॉन्चिंग 2025 के लिए प्रस्तावित है।

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