जनमानस शेखावाटी संवाददाता : नीलेश मुदगल
उदयपुर/डूंगरपुर : देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रति रविवार को आयोजित होने वाली मन की बात कार्यक्रम संख्या में आज जल का महत्व बताते हुए भारत सरकार द्वारा जल संरक्षण के लिए प्रत्येक जिले में बनाए जा रहे अमृत सरोवर सहित अन्य दूरगामी प्रयासों की बात कही है। जिसके तहत देश में करीब 50 हजार अमृत सरोवरों का निर्माण किया जा चुका है।
नगर परिषद डूंगरपुर के पूर्व सभापति तथा वर्तमान में स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण एनएसएससी के सदस्य केके गुप्ता का मानना है कि जल संरक्षण एवं जल संचय जल की कमी हम देख रहे हैं कई शहरों में तो पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं है धरती में भी पानी खत्म हो चुका है। ऐसी स्थिति में मात्र एक ही रास्ता है कि बरसात के पानी को शहरों में वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से धरती में डालना तथा गांव में वर्षा के पानी को रोककर जंगल-जंगल, कुंड, तालाब व कुआं में पानी ले जाकर धरती को सींचना होगा। छोटे-छोटे तरीकों से पानी को बचाना होगा। तभी हम धरती में घट रहे जलस्तर को बढ़ा पाएंगे तथा आने वाले समय को सुखद बना पाएंगे। जल है तो कल है यह यथार्थ है उपरोक्त तीनों कामों में अगर हमने विजय प्राप्त कर ली तो आने वाला कल सुखद होगा। पृथ्वी पर जल सीमित मात्रा में है। जल को पुनः वैज्ञानिक तरीके से पुनः नहीं बनाया जा सकता है। देश में स्वच्छता, पर्यावरण एवं जल संरक्षण व जल संचय आवश्यक है।
केके गुप्ता बताते हैं कि राजस्थान जैसे मरू प्रदेश में पानी की किल्लत कई दशकों से बनी हुई थी, जिसके समाधान की दिशा में वर्ष 2016 में तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने राजस्थान के इतिहास की सबसे प्रभावी योजना ‘मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान’ चलाई थी। इसके परिणामस्वरूप मात्र दो वर्षों में ही भूजल स्तर 1.3 मीटर बढ़ गया तथा अन्य देशों ने भी राज्य सरकार के इस नवाचार को अपनाया था। इस अभियान के तहत नगर परिषद डूंगरपुर द्वारा भी प्रत्येक घटक पर कार्य करते हुए योजना के उचित क्रियान्वयन पर बल दिया गया। सबसे पहले शहर ही पुरानी बावे एवं कुओं की सफाई करवाकर गहरे कर उनसे शुद्ध जल की नियमित शहरों में सप्लाई की व्यवस्था की। जिससे प्रतिदिन 8 लाख लीटर पानी नियमित मिलने लगा। शहरवासियों की जल की समस्या का काफी हद तक निवारण हुआ। क्षेत्र में शहर की झील, तालाबों को गहरा एवं साफ करवाया जिससे वर्षा का पानी लम्बे समय एवं प्रचूर मात्रा में एकत्रित करने में सहायक सिद्ध हुआ।
शहर के 100 सरकारी बिल्डिंगों व 500 घरों को वाटर हार्वेस्टिंग से जोडने का कार्य तीव्र गति से किया जिसमें छतों का वर्षा का पानी वाटर हार्वेस्टिंग के द्वारा बोरिंग से सीधा धरती में उतारा तथा एक साल में ही धरती के पानी का स्तर 20 फीट बढ़ गया एवं जो पानी का टीडीएस पहले 840 तक था वह घटकर 570 पर आ गया। शहर के नकारा 100 हैण्डपम्पों को वाटर हार्वेस्टिंग से जोडा गया जो आज भरपूर पानी दे रहे है। वाटर हार्वेस्टिंग कार्य हर घर के लिए अनिवार्य एवं पुरानी मकानों में जहां एवरेज वाटर हार्वेस्टिंग में रूपये 16 हजार का प्रतिघर खर्चा आता था नगर परिषद् द्वारा जिसने भी घर पर वाटर हार्वेस्टिंग लगाया उसको 50 प्रतिशत सब्सिडी दी गई अर्थात मात्र 8 हजार रूपयों में ही वाटर हार्वेस्टिंग की सुविधा उपलब्ध करवाई।दिल्ली सरकार ने भी हमारे नवाचार को अपनाया तथा पानी की लेवल को बढ़ाने के लिए दिल्ली से एक इंजीनियर टीम को डूंगरपुर भेजा जिसने डूंगरपुर की तर्ज पर दिल्ली में भी पानी को संचय करने का कार्य किया तथा जिसने दिल्ली में डूंगरपुर की तर्ज पर काम किया। उसे 50 हजार रुपए की सब्सिडी तथा 10 प्रतिशत पानी के बिलों में कटौती से बिल लेने की घोषणा की।
केके गुप्ता बताते है कि पानी बनाया नहीं जा सकता ना ही पैदा किया जा सकता है। बचत एवं संचय ही जल संरक्षण हैं। देश को बचाना है तो हमें प्राथमिकता के साथ जल बचाना होगा। विश्व में 20 शहर पानी की कमी से जूझ रहे हैं जिसमें दिल्ली दूसरे नंबर पर है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जल ही जीवन हैं। वर्तमान जल संकट को देखते हुए देश-विदेश में हर मंच पर जल संरक्षण की चर्चा होने लगी है। विभिन्न सरकारों द्वारा इसके लिये योजनाबद्ध ढंग से काम भी किए जा रहे हैं। परंतु यह एक विश्व व्यापी समस्या है, एक सामाजिक संकट है, इसका समाधान शीघ्रातिशीघ्र करने की आवश्यकता है। इस कार्य को एक सामाजिक अभियान बनाने का समय आ चुका है। इसमें जन-जन का सहयोग अपेक्षित है। जल संकट की समस्या के समाधान के लिये जल संरक्षण ही एकमात्र विकल्प रह जाता है जिससे जल की उपलब्धता की निरंतरता को सुनिश्चित किया जा सकता है। डूंगरपुर का जल संरक्षण जल संचय मॉडल देशभर के लिए मिसाल बना हैं। यदि हमारे देश में वर्षाजल के रूप में प्राप्त पानी का पर्याप्त संग्रहण व संरक्षण किया जाए, तो यहाँ जल संकट को समाप्त किया जा सकता है। कोई प्राणी हो जिसे जल की आवश्यकता न हो। जल हमें समुद्र, नदियों, तालाबों, झीलों, वर्षा एवं भूजल के माध्यम से प्राप्त होता है। गर्म हवाओं के चलने से समुद्र, नदियों, झीलों, तालाबों का जल वाष्पित होकर ठंडे स्थानों की ओर चलता है
जहाँ पर न्यून तापमान के कारण संघनित होकर वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरता है। जबकि पहाड़ों पर और भी कम तापमान होने के कारण जल बर्फ के रूप में जम जाता है जो कि गर्मी के दिनों में पिघलकर नदियों में चला जाता है। सरकार द्वारा जल का मीटर लगाकर व घरों में बोरिंग को जल संचय अभियान से जोड़कर इस दिशा में बेहतर कार्य किया जा सकता है। मानव अपने स्वास्थ्य, सुविधा, दिखावा व विलासिता को दिखाने के लिये अमूल्य जल की बर्बादी करने से नहीं चूकता है। पानी का इस्तेमाल करते हुए हम पानी की बचत के बारे में जरा भी नहीं सोचते हैं। परिणामस्वरूप अधिकांश जगहों पर जल संकट की स्थिति पैदा हो चुकी है। यदि हम अपनी आदतों में थोड़ा-सा भी बदलाव कर लें तो पानी की बर्बादी को रोका जा सकता है। बस आवश्यकता है दृढ़ संकल्प करने की तथा उस पर गंभीरता से अमल करने की, क्योंकि जल है तो हमारा भविष्य है। इसलिए यदि हम पानी की बचत करते हैं तो यह भी जल संग्रह का ही एक रूप है। एक अध्ययन से पता चला है कि मानव यदि अपनी आदतों को बदल लें तो 80 प्रतिशत से भी अधिक पानी की बचत हो सकती है। यदि मानव तमाम नहीं कुछ ही आदत बदल लें तो भी 15 प्रतिशत जल की बचत संभव है। बूँद-बूँद की बचत से एक बड़ी बचत हो सकती है।