‘लापता’ हो गए हिंदू धर्म छोड़ने वाले 245 दलित:एक को छोड़ बाकी घरों में भगवानों की फोटो; गांववालों ने बताई असली कहानी

23 अक्टूबर 2022, दीपावली से ठीक एक दिन पहले खबर आई कि राजस्थान के बारां जिले में 250 दलितों ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया है।

दावा किया गया कि दबंगों ने दलित परिवार से मारपीट की। सामूहिक मंदिर में पाठ पूजा करने से रोका गया। पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज हुआ, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। जिला प्रशासन से लेकर राष्ट्रपति तक न्याय की गुहार पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई।

इन सब बातों से आहत होकर एक साथ 250 लोगों ने हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों और तस्वीरों को गांव से गुजरने वाली बैथली नदी के बहाव में विसर्जित कर दिया। इस घटना का एक वीडियो भी सामने आया। जिसके बाद हिन्दू धर्म छोड़ने की खबरों से देशभर में हंगामा मच गया।

कलेक्टर-एसपी के अलावा न्यायिक अधिकारी भी मौके पर पहुंचे। प्रशासनिक स्तर पर हुई जांच में सामने आया कि 250 दलितों के धर्म बदलने की बात झूठ और अफवाह है। आरती को लेकर मारपीट का दावा भी गलत है।

इस घटना को लेकर कई तरह की अफवाहें और दावे सोशल मीडिया पर भी तैरते रहे। राजस्थान जैसे प्रदेश में ऐसी घटना का सच क्या है? यह जानने के लिए भास्कर टीम बारां जिले के छबड़ा क्षेत्र के गांव भूलोन पहुंची। हिन्दू धर्म छोड़ने वाले दलित परिवारों के घर पहुंची तो घटनाक्रम से जुड़े सच के दो पहलू सामने आए…..

पहला : जो पीड़ित दलित परिवार ने हमें बताया।

दूसरा : वो जो गांव के सवर्णों और बाकी लोगों ने बताया।

जयपुर से करीब 400 किलोमीटर दूर एमपी बॉर्डर पर गुना-कोटा हाइवे पर घाटी में बसा छोटे से गांव भूलोन की आबादी 500 लोगों की है। इस गांव में करीब 60 के आस-पास घर और 350 वोटर्स हैं। गांव के एंट्रेस पर ही हम एक सब्जी और किराने की छोटी सी दुकान पर रुके। वहां मौजूद लोगों से पूछा कि जिन दलितों परिवारों ने हिंदू धर्म छोड़ बौद्ध धर्म अपना लिया वो गांव में कहां मिलेंगे? हमें उस पीड़ित परिवार के घर का पता बताइए।

दुकान में बैठे दंपती में से पति बोला- आप कौन है और कहां से आए हैं? परिचय देने पर वो दबी आवाज में बोला- मैं ही पीड़ित हूं। मेरा नाम राजेंद्र वर्मा (ऐरवाल) है। हमने ही हिंदू भगवान छोड़े हैं। जब उन्हें पूजने का अधिकार ही नहीं तो बदल लिया अपना धर्म।

राजेंद्र ने इधर-उधर देखा और बोला, गांव में सब लोग अब डरते हैं। कोई हमारे पक्ष में गवाही देने को ही तैयार नहीं है। नवरात्र उत्सव में मैंने भी चंदा दिया था। आरती कर ली तो गांव के ही लालचंद लोधा और सरपंच प्रतिनिधि राहुल शर्मा ने 5 अक्टूबर को रात के 9 बजे दुकान जाते समय रास्ता रोककर मेरे साथ मारपीट की।

बीच बचाव में आए छोटे भाई रामहेत को भी जमकर पीटा। पुलिस में रिपोर्ट भी दी, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। आखिरकार परेशान होकर अपने नाते-रिश्तेदारों के साथ मिलकर हिंदू धर्म को छोड़ बौद्ध धर्म अपना लिया।

भूलोन में एंट्री करते ही हाईवे पर राजेन्द्र की ढाबेनुमा दुकान है।
भूलोन में एंट्री करते ही हाईवे पर राजेन्द्र की ढाबेनुमा दुकान है।

हमने सवाल किया कि कुल कितने लोगों ने धर्म बदला है ? गांव में उनके अलावा और किस दलित परिवार ने धर्म बदला है? इस पर राजेंद्र ने लाचारी दिखाते हुए कहा उस दिन नदी किनारे पर 250 लोग थे। सभी ने बौद्ध धर्म अपनाने की शपथ ली थी, लेकिन गांव भूलोन से उनके अलावा किसी भी परिवार ने धर्म नहीं बदला है। धर्म बदलने वाले सभी उनके आस-पास गांव के नाते रिश्तेदार थे।

हमने धर्म बदलने वालों के नाम मांगे तो बात टाल दी। थोड़ी ही देर में राजेन्द्र के पिता घनश्याम वर्मा भी वहां आ गए। उन्होंने कहा कि आप हमारे घर चलिए, वहां आपको पूरी बात बताता हूं। यहां गांव में सभी लोग सरपंच से डरते और दबते हैं। कोई उसके खिलाफ नहीं बोलेगा।

राजेन्द्र के घर पहुंचने के लिए हम पैदल-पैदल गांव की उस दलित बस्ती में पहुंचे, जहां से ये पूरा विवाद शुरू हुआ था। बस्ती में कुछ दलित परिवारों के घरों के बाहर गोवर्धन पूजा की गई थी। घर के बाहर बैठी एक लड़की से हमने पूछा कि क्या उनके परिवार में से किसी ने हिंदू धर्म नहीं छोड़ा? तो उनका जवाब था- हम क्यों छोड़ेंगे धर्म, ये तो लोग अपने मन से बातें बना रहे हैं? तीन दिन पहले ही परिवार ने मिलकर गोवर्धन पूजा की है। लड़की ने हमें अपने घर में रखी भगवान की तस्वीरें दिखाईं।

पीड़ित राजेंद्र वर्मा के पड़ोसी छोटूलाल के घर में भी दीवाली पर हुई पूजा के निशान मिले। छोटूलाल ने हमें बताया कि उस दिन वो भी दलित समाज की रैली में गए थे। भगवान की तस्वीरें भी उनके सामने ही नदी में बहाई गई थी। लेकिन उन्होंने अपना हिंदू धर्म नहीं छोड़ा। घर में आज भी देवी-देवताओं की तस्वीरें मौजूद हैं। रोजाना उनकी पूजा होती है। ये सब राजेंद्र वर्मा और लालचंद लोधा के बीच चल रही व्यक्तिगत लड़ाई के चलते हुआ।

खून से सने कपड़े दिखाए, बोले- अब कोई हमारे साथ नहीं
दो दलित परिवारों से बात करने के बाद हम सीधे राजेंद्र वर्मा के घर पहुंचे। यहां राजेंद्र वर्मा, उनका भाई रामहेत और रामेश्वर के अलावा उनके पिता घनश्याम वर्मा हमारा इंतजार कर रहे थे। घनश्याम वर्मा ने बताया कि मंदिर में आरती करने की बात पर उनके बेटों को बुरी तरह पीटा गया।

लाठी से इतना पीटा कि सिर फट गया। कोई कार्रवाई नहीं हुई और आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं। सरपंच प्रतिनिधि राहुल शर्मा का तो नाम ही एफआईआर में नहीं लिखा गया। अब क्या करते? आखिर में जिस धर्म में मान-सम्मान नहीं, उसे छोड़ दिया।

इतने में ही वहां राजेंद्र वर्मा की पत्नी ललिता खून से सने शर्ट लेकर पहुंची। शर्ट दिखाते हुए घनश्याम ने कहा- अब इसके अलावा कोई गवाही नहीं बची है। गांव में कोई भी उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं दिखा रहा है। रामहेत ने अपने सिर में लगे टांके दिखाए।

सबसे छोटा भाई रामेश्वर बोला- इस घटना के बाद से भूखे मरने की नौबत आ गई है। रोज सुबह मजदूरी के लिए स्टेशन पर जाते हैं लेकिन कोई हमें नहीं ले जाता। शाम को खाली हाथ घर लौटना पड़ता है।

घनश्याम के परिवार से बात करने के बाद हम बस्ती से बाहर की तरफ आए। थोड़ा आगे चलते ही गांव में चाय की थड़ी चलाने वाले सुनील चक्रधारी ने हमें बताया कि कुछ दिनों पहले नवरात्र के मौके पर लालचंद लोधा और राजेन्द्र के बीच लड़ाई हुई थी। दोनों में राजीनामा भी हो गया था।

लेकिन कुछ दिनों बाद पता नहीं क्या हुआ कि राजेन्द्र ने कानूनी कार्रवाई के लिए मामला दर्ज करवा दिया। पुलिस ने कार्रवाई भी की। इसके बाद राजेन्द्र का परिवार गांव में एक रैली में शामिल हुआ। उसमे जो लोग आए उन्हें हम नहीं पहचानते। वो गांव के तो नहीं थे।

अब हम आपको बताते हैं इस घटनाक्रम का दूसरा पहलू….

दलित पक्ष के आरोप जानने के बाद हम सरपंच प्रतिनिधि राहुल शर्मा के घर पहुंचे। राजेन्द्र के मकान से एक गली छोड़कर ही गांव भूलोन के सरपंच का मकान है। राहुल शर्मा ने बताया कि यहां एक ही बस्ती में दलित और सवर्ण मिल कर रहते हैं।

ब्राह्मणों के तो महज 4 घर हैं, यहां 36 कौम रहती है। भेदभाव के बारे में हम सोच ही नहीं सकते। राजेंद्र वर्मा भी ठीक इंसान है पर गलत लोगों के बहकावे में आ गया है। मुझे राजनीतिक द्वेष के चलते इस मामले में घसीटा जा रहा है।

सरपंच प्रतिनिधि ने हमें जो कहानी बताई….

राहुल शर्मा ने बताया कि गांव में हर साल नवरात्रि में कार्यक्रम आयोजित होता था। माता का एक बड़ा पांडाल सजता था, जिसमें भजन-कीर्तन होते थे। आयोजकों में बतौर अध्यक्ष मैं और लालचंद लोधा होते थे। चंदा उगाही की समस्या के चलते पिछले 3 साल से कार्यक्रम आयोजित नहीं हो रहा था।

इस बार भी कोई इच्छा नहीं थी। लेकिन गांव के छोटे बच्चों ने इस बार अपने स्तर पर ये कार्यक्रम करवा दिया। व्यवस्थाएं भी वही संभाल रहे थे।

राहुल शर्मा के मुताबिक बच्चों ने ही तय किया था कि समापन के समय हवन वेदी में बड़ों के बजाय वो ही बैठेंगे। राजेंद्र वर्मा ने इस बार वेदी में बैठने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन बच्चों ने शायद उसे मना कर दिया। उसे गलतफहमी हो गई कि लालचंद लोधा के कहने पर उन्हें वेदी में नहीं बैठने दिया। जबकि हकीकत यह थी कि इस बार कोई भी सीनियर व्यक्ति वेदी में नहीं बैठा था।

5 अक्टूबर की रात लालचंद और राजेन्द्र रास्ते में टकरा गए। यहां राजेंद्र ने उसे वेदी में नहीं बैठाने का उलाहना दे दिया। थोड़ी देर में ही दोनों के बीच हाथापाई होने लगी। बस्ती के कुछ लोगों के साथ मैं भी वहां पहुंचा और दोनों का झगड़ा रुकवाया। मामला शांत कर दोनों को एक-दूसरे के घर भेज दिया।

थोड़ी देर बाद राजेंद्र अपने भाई के साथ लठ लेकर पहुंचा
सभी अपने-अपने घर जा चुके थे। तभी राजेंद्र और उसका भाई रामहेत लठ लेकर लालचंद लोधा के घर पहुंच गए। वहां उन्होंने लाते मार उसका गेट खोल दिया। यहां तीनों के बीच हुई मारपीट के बाद रामहेत के सिर में चोट आ गई। पता चलते ही हम दोबारा वहां पहुंचे और फिर झगड़ा शांत करवाया।

इसके बाद राजेंद्र ने बापचा पुलिस स्टेशन में लालचंद के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट और मारपीट की धाराओं में मामला दर्ज करवा दिया। लालचंद को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया। कुछ दिन बाद उसे कोर्ट से जमानत मिल गई।

हमें पता चला कि गांव का पूर्व सरपंच दलित है। इस मामले में उनसे बातचीत के लिए हम उनके घर पहुंचे। पूर्व सरपंच मुकेश मेहरा ने हमें बताया कि गांव में भेदभाव जैसी कोई समस्या नहीं है। जो भी घटनाक्रम हुआ, उसकी जड़ आपसी लड़ाई है।

भास्कर टीम ने लालचंद लोधा से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन वे गांव में मौजूद नहीं थे। ऐसे में इस पूरे मामले को लेकर हमने बैरवा युवा महासभा के छबड़ा अध्यक्ष बालमुकुंद बैरवा से मिलने का प्रयास किया पर उनसे मुलाकात नहीं हो पाई। बालमुकुंद बैरवा ने ही गांव में रैली का आयोजन किया था।

फोन पर हुई बातचीत में बैरवा ने बताया कि उस दिन करीब 250 से 300 दलितों ने हिन्दू धर्म छोड़ बौद्ध धर्म अपनाया था, लेकिन भूलोन गांव से खाली राजेंद्र का ही परिवार था। बाकी सभी लोग आस-पास के गांवों के थे। हमने उन्हें ऐसे लोगों के नाम, उनके गांव सहित पूरी लिस्ट देने को कहा तो बोले – 15 दिन रुक जाइए हम पूरी लिस्ट देंगे। अभी और दलित हिन्दू धर्म छोड़ने वाले हैं।

गांव में दोनों पक्षों से बातचीत के बाद हम पहुंचे उन अफसरों के पास जिन्होंने इस घटना की पड़ताल की…सबसे पहले भास्कर टीम बापचा थाने के एसएचओ सुरेंद्र कुंतल के पास पहुंची।

SHO ने कैमरे पर बोलने से किया मना, कहा- उच्चाधिकारी बोलेंगे

SHO बापचा सुरेन्द्र कुंतल ने भूलोन गांव के मामले में किसी भी तरह की ऑन कैमरा बातचीत से मना कर दिया। उन्होंने बताया कि बड़े अधिकारी जांच कर रहे हैं, इसलिए वही आपको जानकारी देंगे। हालांकि उन्होंने ऑफ कैमरा बताया कि राजेंद्र वर्मा ने लालचंद लोधा के खिलाफ FIR दी थी।

जिस पर कार्रवाई करते हुए 17 अक्टूबर को लालचंद को गिरफ्तार कर लिया गया था। अगले दिन उसे कोर्ट में पेश किया गया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। एक दिन की न्यायिक हिरासत के बाद लालचंद को जमानत मिल गई थी। पहले दिन से ही मामले की जांच छाबड़ा सीओ पूजा नागर कर रही हैं।

250 लोगों का दावा गलत- जिला पुलिस अधीक्षक
इस पूरे मामले को लेकर दैनिक भास्कर टीम ने बारां एसपी कल्याणमल मीणा से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्हें भी 23 अक्टूबर को हुए घटनाक्रम के बारे में मीडिया से पता चला था। खबर देखने के बाद वे जिला कलेक्टर के साथ मौके पर भूलोन गांव गए थे।

पड़ताल में सामने आया था कि भूलोन में अनुसूचित जाति के महज 15-16 घर ही है। वहीं, परिवादी राजेन्द्र वर्मा को छोड़कर बाकी सभी ने हिंदू धर्म छोड़ने से इनकार किया। वे सभी अपनी धार्मिक प्रैक्टिस कर रहे थे। वहां देवी-देवताओं की तस्वीरें भी उनके घरों में थी। ऐसे में ये 250 लोगों द्वारा धर्म बदलने का आंकड़ा सही नहीं दिखा।

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