जानिए गर्मियों में राहत देने वाले रूह अफ़ज़ा के बनने की कहानी…

गर्मियों के मौसम में रूह अफज़ा एक लोकप्रिय ड्रिंक है. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रूह अफज़ा India में जितना पसंद किया जाता है, उतना ही पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी.

जब बात हो शरबत की तो सबसे पहले जो नाम ज़ेहन में आता है वो है रूह अफज़ा का और रमज़ान में रोज़े चल रहे हों इफ्तार में अगर शरबत-ए-आज़म रूह अफज़ा ना हो तो फिर ज़रा सी कमी महसूस तो होती ही है दोस्तों आप सोच रहे होंगे की एक शरबत के लिए इतनी बातें क्यों हो रही हैं तो आपको बता दूं की ये सिर्फ शरबत नही है ये एक संस्कृति से जुडी हुई चीज़ है 100 साल से ज्यादा से लोग इस शरबत का मज़ा ले रहे हैं आज इस आर्टिकल से हम जानेंगे की कौन हैं मालिक रूह अफज़ा के इसकी शुरुवात कब हुई थी और इससे जुडी अन्य बातें आइये शुरू करते हैं

कहानी रूह अफज़ा के बनने की ?

दोस्तों समय था साल 1906 का अभी भारत गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुआ था की दिल्ली में गर्मियों के दिन में अचानक लोग बीमार पड़ने लगे किसी को दस्त, किसी को उल्टियां किसी की बुख़ार ने अपनी चपेट में ले लिया था पूरी दिल्ली में लू और गर्मी से हालत ख़राब हो गई थी

वहीँ दिल्ली के लाल कुआं इलाके में एक दवाखाना हुआ करता था हमदर्द नाम का जहाँ हाकिम हाफिज अब्दुल माजिद यूनानी हर्बल पद्धति से लोगों का इलाज करते थे उनके पास जब गर्मी के सताए लोग ज्यादा संख्या में आने लगे तब उन्होंने एक दवा बनाई और लोगों को पिलानी शुरू की देखते ही देखते इस दवा का जादुई असर नज़र आने लगा सब ठीक होने लगे आज जिसे हम लोग रूफ अफज़ा के नाम से जानते हैं ये वही दवा थी रूह अफजा सिर्फ दवा न होकर लोगों को गर्मी से राहत देने का नायाब नुस्खा बन गया और हमदर्द दवाखाना से बड़ी कंपनी बन गई

साल 1907 में सॉफ्ट ड्रिंक रूह अफजा मार्केट में लांच की. शीशे की बोतल में पैक रूह अफजा का लोगो तब मिर्ज़ा नूर मोहम्मद ने बनाया था इसका नाम 1254 में लखनऊ के पंडित दया शंकर ‘नसीम’ की किताब ‘मसनवी गुलज़ार-ए-नसीम’ से लिया गया था, इस किताब में फ़िरदौस की बेटी थीं, रूह अफ़ज़ा (पात्र)

दवा से शरबत कैसे बन गई रूह अफज़ा ?

गर्मियों में रमज़ान का महिना पड़ा लोग दिन भर रोज़ा रहते प्यास के मारे उनका गला सूख जाता था और बीमारी का ख़तरा अलग से था तो लोग जाते हाकिम अब्दिल माजिद के पास और रूह Rooh Afza ले कर आते इफ्तार में इसको पीते इस तरह ये मुस्लिम समुदाय में ज्यादा मशहूर हो गया और दवा से ये शरबत बन गई आज जैसे इसकी बोतल प्लास्टिक या कांच की मिलती है पहले ऐसा नहीं था इसको लाने के लिए आपको अपने घर से बर्तन लेजाने होते थे हमदर्द दवाखाना तक

एक पुराने अखबार के विज्ञापन में कहा गया था, “जब मोटर-कार का दौर शुरू और घोड़ा-गाड़ी का दौरा ख़त्म हो रहा था, तब भी रूह अफ़ज़ा था।”

1907 में एक यूनानी चिकित्सक, हकीम अब्दुल मजीद ने रूह अफ़ज़ा का आविष्कार किया था। पुरानी दिल्ली की गलियों में, हमदर्द (जिसका अर्थ है ‘करीबी साथी’ या ‘दर्द में साथ देने वाला’) नाम की एक छोटी सी दुकान में दवा के रूप में बनाया गया रूह अफ़ज़ा, आगे जाकर घर-घर में पसंद किया जाने वाला मशहूर नाम बन गया।

लाल रंग के इस सिरके-नुमा शरबत को, एक गिलास ठंडे दूध या सादे पानी में मिलाकर पीने से, शहर की चिलचिलाती गर्मी में तो क्या, रेगिस्तान की भीषण गर्मी में भी, ठंडक भरी ताज़गी आ जाती है।

रूह अफ़ज़ा को पहले शराब की बोतल में पैक किया जाता था। कलाकार मिर्जा नूर अहमद ने बोतल का लेबल डिज़ाइन किया था। इस लेबल के डिज़ाइन को बॉम्बे (मुंबई) के बोल्टन प्रेस में प्रिंट किया गया था। पूरे 40 साल तक सफलता की ऊंचाईयां छूने वाला और अफगानिस्तान तक की सैर करने वाला रूह अफ़ज़ा, आखिर विभाजन की मार से हारने लगा था।

अरुंधति रॉय ने 2017 में अपनी किताब, The Ministry of Utmost Happiness में लिखा था, “भारत और पाकिस्तान की नयी सीमा के बीच, नफरत ने लाखों लोगों की जानें ले ली। पड़ोसियों ने एक-दूसरे को ऐसे भुला दिया, जैसे वे एक-दूसरे को कभी जानते ही न थे, कभी एक-दूसरे की शादियों में शामिल नहीं हुए थे या कभी एक-दूसरे के गाने नहीं गाए थे। शहर की दीवारें टूट गयीं। पुराने परिवार (मुसलमान) भाग गये। नये (हिन्दू) लोग आ गये और शहर की दीवारों के चारों ओर बस गये। इससे रूह अफ़ज़ा को एक बड़ा झटका तो लगा, लेकिन जल्द ही वह संभल भी गया। पाकिस्तान में इसकी एक नयी शाखा खोली गयी। 25 साल बाद, पूर्वी पाकिस्तान के विभाजन के बाद, नये देश, बांग्लादेश में भी इसकी एक और शाखा खोली गयी।”

भारत से पाकिस्तान का सफ़र रूह अफज़ा का ?

कई सालों तक भारत मे लोगों के सर चढ़कर बोलता रहा जादू रूह अफज़ा का मगर साल 1947 में देश का बंटवारा हो गया और हाकिम हाफिज अब्दुल माजिद के एक बेटे हकीम अब्दुल सईद पाकिस्तान चले गए और वहां जा कर उन्होंने रूह अफज़ा बनाना शुरू कर दिया

चूँकि बंटवारे के पहले तो देश एक था तो वहां के लोग भी रूह अफज़ा के स्वाद से वाकिफ थे ही उन्हें अब पाकिस्तान में भी इसका स्वाद मिलने लगा था इस तरह भारत से पाकिस्तान तक रूह अफज़ा का सफ़र तय हुआ

फिर साल 1971 में पाकिस्तान के दो हिस्से हो गए एक पाकिस्तान और दूसरा बांग्लादेश तब हकीम अब्दुल सईद ने अपना कारोबार समेटने की बजाए वहां काम करने वाले लोगों को ही रूह अफज़ा सौंप दिया अब भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी रूह अफज़ा का निर्माण होता है

हमदर्द के और क्या क्या प्रोडक्ट हैं ?

1948 से हमदर्द कंपनी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में रूह अफजा का उत्पादन कर रही हैं. रूह अफजा के अलावा कंपनी के जाने-माने उत्पादों में साफी, बादाम शिरीन और पचनौल जैसे उत्पाद शामिल हैं

भारत में कहाँ कहाँ बनती है रूह अफज़ा ?

शुरुआती दौर में प्रोडक्शन सीमित मात्रा में होता था. फिर कंपनी ने 1940 में पुरानी दिल्ली में, 1971 में गाजियाबाद और 2014 में गुरूग्राम के मानेसर में प्लांट लगाया. अकेले इसी प्लांट से रोजाना हजार बोतल रूह अफजा का उत्पादन होता है

क्या है विवाद रूह अफज़ा को लेकर ?

हाकिम हाफिज अब्दुल माजिद जिन्होंने रूह अफज़ा का इजाद (अविष्कार) किया उनके दो बेटे थे अब्दुल हामिद और मुहोम्मद सईद साल 1920 में हमदर्द दवाख़ाना कंपनी का गठन हुआ इस दौरान हाकिम हाफ़िज़ अब्दुल माजिद का निधन हो गया था फिर एक हादसा ये हुआ की भारत के विभाजन हुआ साल 1947 में और इस तरह हमदर्द का भी दो हिस्सों में बटवारा हो गया क्योंकि मुहोम्मद सईद पाकिस्तान चले गए बड़े बेटे अब्दुल हामिद भारत में ही रह गए अपनी माँ के साथ और वहां उन्होंने रूह अफज़ा का उत्पादन शुरू कर दिया

अब्दुल हामिद के दो बेटे हुए अब्दुल मोईद और हम्माद अहमद साल 1948 में हमदर्द कंपनी को चैरिटेबल बना दिया गया और इसके प्रबंधन का काम अब्दुल मोईद के ज़िम्मे आया और हम्माद अहमद इसकी मार्केटिंग का काम सँभालने लगे 1948 की वक्फ डीड थी, लेकिन 1973 में एक संशोधन कर दिया और बड़े बेटे अब्दुल मोईद को चीफ मुतवल्ली बना दिया, जो वक्फ का फाइनेंस, अकाउंट, प्रोडक्शन सब कुछ देखने लगे. उन्होंने अपने बेटे अब्दुल माजिद को मुतवल्ली बना दिया. इस तरह बोर्ड में अब्दुल मोईद की एंट्री हो गई. हम्माद ने भी अपने बेटे हमीद अहमद को बोर्ड में शामिल करा दिया. 2015 में अब्दुल मोईद के निधन के बाद बोर्ड की बागडोर अब्दुल माजिद ने सभाल ली. जिस पर हम्माद अहमद का विवाद शुरू हो गया. 2017 में हम्माद अहमद ने इसको लेकर हाईकोर्ट में केस कर दिया. जिस पर कोर्ट ने हम्माद के पक्ष में फैसला सुनाया

रमज़ान और रूह अफ़ज़ा

दोस्तों एक बात यहाँ साफ कर देनी बहुत ज़रूरी है की रूह अफज़ा का रमज़ान में ज्यादा इस्तेमाल होने का कोई धार्मिक कारण नहीं है जब जब रमज़ान का महिना गर्मियों में पड़ता है तब तब रूह अफज़ा की मांग बढ़ जाती है हर मुस्लिम घर में रूह अफज़ा का मिलना एक आम बात ही रोज़े के दिनों में

जब से रूह अफ़ज़ा मिलना शुरु हुआ है तब से आज तक उसके स्वाद में कोई भी फर्क नहीं आया है पीढ़ियों से लोग इस शरबत के राजा का स्वाद ले रहे हैं अपनी क्वालिटी में कोई समझौता नहीं किया हमदर्द ने इस लिए ये लोगों की ज़बान पर आज तक बना हुआ है

कई चीज़ों में मिलाया जाता है रूह अफ़ज़ा

रूह अफ़ज़ा को सिर्फ़ पानी में घोलकर ही नहीं पिया जाता. इसे आइसक्रीम में मिलाया जाता है. कुल्फ़ी-फ़ौलूदा का भी स्वाद बढ़ाता है रूह अफ़ज़ा. कुछ लोग तो दूध में भी रूह अफ़ज़ा मिलाकर पीते हैं. इन सब के अलावा फ़्रूट सैलड, शेक, लस्सी में भी रूह अफ़ज़ा ने अपनी जगह बना ली है. दोस्तों शायद आप भी ये सोचते होंगे की आखिर ऐसी क्या चीज़ मिली जाती है रूह अफज़ा में की इस का स्वाद आज तक नहीं बदला और इसकी दीवानगी अभी भी सालों बाद भी कायम है

रूह अफज़ा पीने के 7 फायदे, कैसे बनायें

गर्मियों के मौसम में रूह अफज़ा पीना ताजगी भरी तरावट देने के साथ ही कई सेहतमंद फायदे भी देता है। रूह अफज़ा का उपयोग शर्बत, लस्सी, फ़ालूदा, मिल्कशेक, कुल्फी आदि बनाने में किया जाता है.

क्या क्या चीज़ों से मिलकर बनता है रूह अफज़ा

रूह अफज़ा यूनानी फार्मूला पर आधारित सिरप है जिसकी ठंडी तासीर की वजह से गर्मियों में पीने की सलाह दी जाती है। रूफ अफज़ा में कई प्रकार के फल, सब्जी, फूल, बीज, जड़ी-बूटी के अर्क और मसालों का मिश्रण है। 

  • जड़ी बूटीकुलफ़ा साग (Portulaca Oleracea) या लोहड़ी के बीज, कासनी, काले अंगूर, युरोपियन सफेद लिली, ब्लू स्टार वाटर लिली, बोरेज, कमल, धनिया का सत्व आदि।
  • फलसंतरा, पाइन एप्पल, सेब, नींबू, कई तरह की बेरी जैसे स्ट्रॉबेरी, रैस्पबेरी, लोगनबेरी, ब्लैकबेरी, जामुन, चेरी, तरबूज, अंगूर, ब्लैक करेंट, किशमिश आदि।
  • सब्जियाँपालक, गाजर, पुदीना, तरोई का सत्व आदि।
  • फूलगुलाब, केवड़ा, ऑरेंज और लेमन के फूल।
  • जड़ खस की जड़

रूह अफज़ा के फायदे

1) रूह अफज़ा पीने से लू लगना, बुखार, शरीर की गर्मी, बहुत प्यास लगना, गर्मी से थकान, ज्यादा पसीना आना जैसी दिक्कतों में आराम मिलता है.

2) इसमें शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) से बचाव करने वाले तत्व सोडियम, पोटैशियम, कैल्सियम, सल्फर, फॉस्फोरस आदि है.

3) रूह अफज़ा पीने से शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है, जिससे शरीर में खून की मात्रा व क्वालिटी बढती है. खून बढ़ने से आप ज्यादा सक्रिय, ऊर्जावान महसूस करते हैं.

4) उलटी-चक्कर आना, डायरिया, पाचन समस्या, पेट दर्द में रूह अफज़ा का शरबत पीजिये, राहत मिलेगी.

5) पतले लोगों का वजन बढ़ाने में भी रूह अफज़ा कारगर माना जाता है. Rooh Afza शरीर में नाइट्रोजन की मात्रा संतुलित करके वजन बढ़ाता है।

6) इस ड्रिंक को पीने से आप हल्का और तरोताज़ा अनुभव करते हैं क्योंकि ये आपके तंत्रिका-तन्त्र (Nervous System) पर अच्छा असर डालता है.

7) इसे पीने से रक्त-संचार (Blood Ciculation), हृदय गति (Heart rate) सही से काम करती है.

रूह अफज़ा कैसे बनाये

रूह अफज़ा शरबत बनाने के लिए पानी में रूह अफज़ा सिरप और चीनी मिलाये। 1 ग्लास पानी या दूध के लिए 40 ml रूह अफजा सिरप मिलाएं। पुदीना पत्ती, नीम्बू के रस की कुछ बूंदे मिलाने से इसका स्वाद और बढ़ जाता है।

लस्सी, फ़ालूदा बनाने में रूह अफज़ा सिरप के साथ सब्ज़ा के बीज भी प्रयोग करें। सब्जा के बीज का सेवन गर्मियों में बहुत फायदेमंद होता है, इससे Taste और texture भी बढ़िया हो जाता है।

रूह अफज़ा से सम्बंधित अन्य सवाल

रूह अफज़ा के मालिक का नाम क्या है ?

रूह अफ़ज़ा के मालिक का नाम हाकिम हाफिज अब्दुल माजिद है

रूह अफज़ा की शुरुवात कब हुई थी ?

रूह अफज़ा की शुरुवात साल 1906 में दिल्ली में हुई थी

रूह अफज़ा की कितनी कीमत है ?

सिर्फ 180 रू में आपको 750 ML की बोतल मिल जाएगी

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