मैतेई के साथ रहना मौत जैसा:कुकी लोगों की मणिपुर में अलग राज्य की मांग; क्या है कुकीलैंड की पूरी कहानी

मणिपुर में 4 महीने से जातीय हिंसा जारी है। रिलीफ कैंपों में रह रहे लोग अब अपने घर लौटना चाहते हैं। हालांकि, कुकी लोगों का कहना है कि मैतेई के साथ रहना मौत के समान है। इसीलिए मणिपुर में एक अलग कुकीलैंड राज्य की मांग जोर पकड़ रही है। 29 अगस्त से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में भी ये मुद्दा उठ सकता है।

मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने पिछले हफ्ते केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के दौरान इसका जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि राज्य में अलग प्रशासन की मांग हो रही है, लेकिन हम मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता से समझौता नहीं करेंगे।इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में कुकीलैंड की पूरी कहानी जानेंगे…

मणिपुर बनने के 8 साल बाद ही अलग कुकीलैंड के लिए आंदोलन हुआ

1972 में मणिपुर पूर्ण राज्य बना। इसके लगभग 8 साल बाद यानी 1980 के दशक में अलग कुकीलैंड की मांग शुरू हुई। उस वक्त कुकी-जोमी विद्रोहियों का पहला और सबसे बड़ा संगठन कुकी नेशनल ऑर्गेनाइजेशन यानी KNO अस्तित्व में आया।

इसके बाद से ही समय-समय पर कुकीलैंड की मांग सामने आती रही है। 2012 में जैसे ही यह पता चला कि अलग तेलंगाना राज्य की मांग मान ली जाएगी। कुकी स्टेट डिमांड कमेटी यानी KSDC संगठन ने कुकीलैंड के लिए आंदोलन का ऐलान कर दिया। KSDC पहले भी समय-समय पर हड़ताल और आर्थिक बंद का आह्वान करता रहा है, हाईवे को ब्लॉक करता रहा है और सामान को मणिपुर में आने से रोकता रहा है।

मणिपुर में कुकी जनजातियां मुख्य रूप से पहाड़ियों पर रहती हैं। मणिपुर की कुल आबादी 28.5 लाख है, इनमें 30% कुकी हैं। चुराचांदपुर उनका मुख्य गढ़ है, चंदेल, कांगपोकपी, तेंगनौपाल और सेनापति जिलों में भी उनकी बड़ी आबादी रहती है।

मणिपुर से अलग कुकीलैंड की मांग को लेकर नवंबर 2012 में भी KSDC ने अनिश्चित काल के लिए ब्लॉकेड किया था। इस दौरान जरूरी वस्तुएं लेकर मणिपुर जाने वाले ट्रक कई दिनों तक हाईवे पर खड़े रहे। ये उसी वक्त की तस्वीर है।

कुकीलैंड में मणिपुर का 60% से ज्यादा क्षेत्र शामिल करने की मांग

मणिपुर का मैप देखिए…

मणिपुर 22,327 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। KSDC 60% से ज्यादा यानी 12,958 किमी क्षेत्र को कुकीलैंड बनाने की मांग करता है। कुकीलैंड में सदर पहाड़ियां जो तीन तरफ से इंफाल घाटी को घेरे हुए हैं।

कुकी-वर्चस्व वाला चुराचांदपुर जिला, चंदेल, जिसमें कुकी और नगा आबादी रहती है। इसके साथ ही यहां पर नगा बहुल तमेंगलोंग और उखरूल के कुछ हिस्से भी शामिल हैं। KSDC और कुकी-जोमी समुदाय के लोगों का कहना है कि आदिवासी क्षेत्र अभी भी भारतीय संघ का हिस्सा नहीं बने हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि 1891 के एंग्लो-मणिपुर युद्ध में मणिपुर के राजा की हार के बाद राज्य एक ब्रिटिश संरक्षित राज्य बन गया, लेकिन कुकी-जोमी की भूमि इस समझौते का हिस्सा नहीं थी।

KSDC ने यह भी कहा कि अलग देश की नगा मांग के विपरीत वह केवल भारतीय संघ के भीतर एक अलग राज्य की मांग कर रहा है।

इस आंदोलन का प्रभाव भी पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह की कांग्रेस सरकार ने यूनाइटेड नगा काउंसिल के कड़े विरोध के बावजूद कुकी-प्रभाव वाले सदर हिल्स, जो नगा-प्रभुत्व वाले सेनापति जिले का हिस्सा है को एक अलग जिले के रूप में घोषित किया।

कुकी को अंग्रेजों ने बसाया या भारत में पहले से मौजूद, इसकी दो थ्योरी

कुकीलैंड की मांग जेलेन-गाम या लैंड ऑफ फ्रीडम से निकली है। कुछ कुकी जोमी विशेष रूप से विद्रोही ग्रुप इस बात का विरोध करते हैं कि उनके पूर्वजों को ब्रिटिश राजनीतिक एजेंट द्वारा बर्मा की कुकी-चिन पहाड़ियों से लाया गया था।

इन्हें मणिपुर साम्राज्य को लुटेरे नगा हमलावरों से बचाने के लिए इंफाल घाटी के आसपास बसाया गया था। ये लोग कुकी-जोमी की खानाबदोश ओरिजिन के विचार का भी विरोध करते हैं।

वहीं कुछ का कहना है कि कुकी जलेन गाम भारत के पूर्वोत्तर के एक बड़े हिस्से और वर्तमान म्यांमार के निकटवर्ती क्षेत्रों में फैला हुआ है। साल 1834 की एक संधि के तहत अंग्रेजों ने बर्मा को खुश करने के लिए इस भूमि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अवा या बर्मी राजा को सौंप दिया था।

KNO के अनुसार, जेलेन-गाम में म्यांमार में चिंडविन नदी तक का क्षेत्र शामिल था और भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों, उत्तरी म्यांमार में नांतलिट नदी के आसपास के क्षेत्रों और दक्षिण में चिन राज्य तक फैला हुआ था।

भारत में कुकी होमलैंड में मणिपुर के पहाड़ी जिले शामिल थे। इनमें नगा क्षेत्र, कंजंग, अखेन, फेक और नगालैंड में दीमापुर के कुछ हिस्से, कार्बी-आंगलोंग, उत्तरी कछार हिल्स और असम में हाफलोंग और त्रिपुरा के साथ-साथ बांग्लादेश में चटगांव पहाड़ी इलाकों के कुछ हिस्से शामिल थे।

हालांकि पिछले कुछ सालों में होमलैंड की यह कल्पना मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों से बने एक राज्य तक सीमित हो गई है, इसमें नगा जनजातियों के प्रभाव वाले क्षेत्र भी शामिल हैं।

2018 में प्रकाशित एक पुस्तक में, केएनओ के अध्यक्ष पीएस हाओकिप ने मैतेई-प्रभुत्व वाली राज्य सरकार द्वारा मणिपुर के पहाड़ी जिलों, विशेष रूप से चुराचांदपुर और चंदेल जैसे कुकी लोगों के प्रभुत्व वाले जिलों की कथित उपेक्षा के बारे में लिखा।

नगा-कुकी जातीय हिंसा के बाद भी अलग कुकीलैंड की मांग ने जोर पकड़ा

2018 में KNO के अध्यक्ष पीएस हाओकिप ने अपनी किताब ‘द वर्ल्ड ऑफ कुकी पीपुल’ में मणिपुर के पहाड़ी जिलों की कथित उपेक्षा के बारे में लिखा था।

इसमें खास तौर पर मैतेई बहुल राज्य सरकार के जरिए चुराचांदपुर और चंदेल जैसे कुकी प्रभाव वाले जिलों का जिक्र किया गया था। हाओकिप ने यह भी आरोप लगाया कि कि नगा विद्रोही समूह दशकों से कुकी की जमीनें हड़पने की कोशिश कर रहे हैं।

1993 के नगा-कुकी जातीय हिंसा के बाद एक अलग कुकीलैंड की मांग तेज हो गई। KNO के मुताबिक इस दौरान एक हजार से अधिक कुकी मारे गए। वहीं इससे कई गुना ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा। KNO ने आरोप लगाया है कि मैतेई उस समय कुकियों की मदद के लिए नहीं आए।

90 के दशक में मणिपुर से लगी भारत-म्यांमार सीमा पर कुकी नेशनल ऑर्गेनाइजेशन की मिलिट्री विंग कुकी नेशनल आर्मी के लड़ाके।

उस वक्त मणिपुर में तैनात भारतीय सेना के 57 माउंटेन डिविजन के मेजर-जनरल ए.के. सेनगुप्ता ने कहा था कि हालात बेहद गंभीर हैं। स्थानीय लोग उग्रवादियों से मिले हुए हैं, यही वजह है कि हिंसा रोक पाना मुश्किल है। इस हिंसा का सिर्फ पॉलिटिकल सॉल्यूशन है।

जब हालात हाथ से निकलने लगे तो खुद उस समय के CM दोरेंद्र सिंह ने केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार से राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की। इसके बाद 31 दिसंबर 1993 को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा, जो अगले साल यानी 13 दिसंबर 1994 तक जारी रहा। तब जाकर मणिपुर में शांति स्थापित हुई।

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