झुंझुनूं : आरटीआई कार्यकर्ता एवं पत्रकार नीरज सैनी द्वारा झुंझुनू जिला कलेक्टर को सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सूचना प्राप्ति हेतु आवेदन किया गया था। उस आवेदन पत्र की मूल प्रति की फोटो खींचकर व्हाट्सएप के ग्रुप में वायरल की गई और इसके साथ ही आरटीआई कार्यकर्ता की सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल करने के साथ-साथ इस पूरे मामले को जातिगत रंग देने का भी कुप्रयास किया गया था। जिसको लेकर आरटीआई कार्यकर्ता नीरज सैनी ने झुंझुनूं जिला कलेक्टर को आरटीआई का गोपनीय दस्तावेज बाहर आने के मामले की जांच करवाने के संबंध ज्ञापन सौंपा था और इसमें लिप्त पाए जाने वाले अधिकारी कर्मचारी के खिलाफ सस्पेंड करने की कार्रवाई की मांग की थी। साथ ही
इस ज्ञापन की प्रति मुख्य न्यायाधीश राजस्थान उच्च न्यायालय खंडपीठ जयपुर, सूचना आयुक्त सूचना आयोग राजस्थान जयपुर, मुख्य सचिव राजस्थान सरकार जयपुर, प्रधानमंत्री भारत सरकार नई दिल्ली, केंद्रीय सूचना आयुक्त सूचना आयोग नई दिल्ली, जिला पुलिस अधीक्षक झुंझुनूं को भी भेजी।
झुंझुनूं जिला पुलिस अधीक्षक ने इस मामले में त्वरित संज्ञान लेते हुए आरटीआई की गोपनीयता भंग होने के संबंध में बगड़ थाना अधिकारी को आदेशित किया था। जिस पर बगड़ थानाधिकारी द्वारा कंप्लेंट दर्ज की गई और इस मामले की जांच एएसआई रघुवीर सिंह के जिम्मे सुपुर्द की गई है।
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि किसी भी जिला मुख्यालय का जिला कलेक्ट्रेट कार्यालय शासन प्रशासन का सर्वोच्च केंद्र होता है और इस कार्यालय से संबंधित दस्तावेजों को रखने का सबसे सुरक्षित स्थान भी यही होता है। लेकिन जब इसी कार्यालय के दस्तावेज जो कि गोपनीय हो और उसको सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाए, तो इस पर बड़ा सवाल उठना लाजमी है। इस दस्तावेज के बाहर आते ही आरटीआई कार्यकर्ता सैनी को विभिन्न तरीकों के साथ मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का दौर भी शुरू हो गया। इसके साथ ही समझाइश के नाम से अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न प्रकार की धमकियां देने का दौर भी चल पड़ा। सैनी ने कलेक्टर को सोपे गए ज्ञापन में साफ साफ लिखा था कि उन पर प्रशासन में बैठे प्रभाशाली लोगो द्वारा हमला कारित करवाया जाता है या आर्थिक, शारीरिक, मानसिक रूप से किसी भी प्रकार का नुकसान पहुँचता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी झुंझुनू जिला कलेक्टर कार्यालय की होगी।
यह था पूरा मामला
पत्रकार नीरज सैनी ने अपनी पहली आरटीआई जिला सूचना केंद्र झुंझुनू में लगाई थी जिसमें उन्होंने जिला मुख्यालय पर कार्यरत सभी पत्रकारों की सूची और यदि उनके पी आर ओ लेटर या आई कार्ड भी जमा है तो उनकी फोटो कॉपी भी मांगी थी। लेकिन सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी झुंझुनू ने अपनी राजनीतिक ऊंची पहुंच के अभिमान के चलते समय व्यतीत होने तक भी आरटीआई कार्यकर्ता को सूचना उपलब्ध नहीं करवाई। जिसके उपरांत प्रथम अपील निदेशक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग जयपुर को की गई। जिसकी सुनवाई 16 जून को होनी तय हुई थी लेकिन इस दिन झुंझुनूं पीआरओ सुनवाई में नहीं पहुंचे जबकि अपील करने वाले पत्रकार नीरज सैनी निदेशक के समक्ष उपस्थित हुए। वहां पर भी इनको काफी जद्दोजहद और टालमटोल के उपरांत अपील करवाई करने तथा यह जानकारी दी गई कि झुंझुनूं पीआरओ ने हमें पत्र लिखकर सूचित किया है कि झुंझुनूं जिला कलेक्टर ने आज उनकी ड्यूटी किसी आवश्यक कार्य में लगा रखी है इसलिए वह सुनवाई में उपस्थित नहीं हो सकते। सुबह से शाम तक आरटीआई कार्यकर्ता को अपनी बात पर अडिग रहने और नियमों का हवाला देने के चलते निदेशक कार्यालय को सुनवाई पर फैसला देते हुए झुंझुनूं जिला सूचना जनसंपर्क अधिकारी को निर्देशित किया गया कि आरटीआई कार्यकर्ता को इनकी मांगी गई जानकारी बिंदुवार दी जाए। वही निर्देश और कानूनों के चलते जो सूचना परिवादी को सौंपी गई वह भी आधी अधूरी अपूर्ण थी जिसके चलते उन्होंने सूचना आयुक्त राजस्थान सूचना आयोग जयपुर को अपनी दूसरी अपील प्रस्तुत कर दी। बस इन अधिकारी साहब को यह बात नागवार गुजरी, इस दौरान भी येन केन प्रकरेण आरटीआई कार्यकर्ता को दबाने का प्रयास किया गया। लेकिन प्रयास नाकाम।
इसी बीच झुंझुनूं जिला कलेक्टर के समक्ष आरटीआई कार्यकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर भी निवेदन किया कि 16 जून को जिस दिन प्रथम अपील की सुनवाई थी आपने झुंझुनूं पीआरओ कि कहीं पर ड्यूटी लगाई थी इसकी जानकारी दी जाए लेकिन जानकारी नहीं मिलने पर इस कार्यालय में भी झुंझुनूं जिला कलेक्टर के समक्ष कार्यकर्ता द्वारा एक और आरटीआई लगाई गई जो कि वर्तमान में सोशल मीडिया ग्रुप में वायरल की जा रही है। इसमें आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा यह जानकारी भी मांगी कि झुंझुनूं जिला कलेक्ट्रेट में कितने ऐसे सरकारी अधिकारी या कर्मचारी हैं जो कि डेपुटेशन पर कार्यरत हैं। क्योकि गहलोत सरकार ने हाल ही में डेपुटेशन को लेकर नए आदेश निकाले थे। जिसके सन्दर्भ में पत्रकार द्वारा एक स्टोरी तैयार की जा रही है उसमे इन तथ्यों की आवश्यकता थी। कलेक्टर के समक्ष आरटीआई के मूल आवेदन की प्रति की फोटो जिला कलेक्ट्रेट कार्यालय से खींचकर ही व्हाट्सएप ग्रुप में वायरल किए जा कर आरटीआई कार्यकर्ता को हतोत्साहित करने के लिए कमैंट्स करवाए गए। वही यह भी लिखा जा रहा है कि किसी दूसरे समाज विशेष के बहकावे में आकर यह कार्य करवाया जा रहा है। इन कम जानकारी रखने वाले कूप मंडूक प्रवृत्ति के जो लोग ग्रुप में कमेंट कर रहे हैं या किये है इनको पूरे मामले की जानकारी है ही नहीं या फिर है तो जानबूझकर इन कर्मचारी अधिकारियों के प्रति अपनी स्वामी भक्ति दर्शाने के लिए ही ऐसे कमेंट किए जा रहे हैं या करवाए गए है ।