जानिए, क्या है हिजाब का इतिहास और इस्लाम में इसका महत्व ?

चूंकि अभी शिक्षण संस्थान में हिजाब पहनने को लेकर फैसला आया है, पर इसपर गौर किया जाना बेहद जरूरी है कि मुस्लिम बच्चियों से लेकर महिलाओं के बीच हिजाब या बुर्का अथवा पर्दा कैसे अपनी जगह बना लेता है. आप इसके विभिन्न पहलुओं को समझे बगैर इसे मर्दाें द्वारा थोपी गई पुरानपंथी परंपरा कहकर यूं खारिज नहीं कर सकते.
बता दूं कि हिजाब शरीर के कुछ अंगों को ढकने या छुपाने के लिए मुस्लिम महिलाएं और लड़कियां परिधान के तौर पर प्रयोग करती हैं. हैडस्कार्फ और नकाब इसके मिले जुले रूप हैं. मुस्लिम महिलाएं हिजाब को आधुनिक परिधान के तौर पर पहनती हैं. हिजाब का शाब्दिक अर्थ आड़,ओट या परदा है.वैसे, हिजाब, नकाब, स्कॉर्फ के नामों से फर्क समझना थोड़ा मुश्किल है.
अलग देश अलग नियम
 
विभिन्न देशों के मुसलमानों ने इस्लामी परदे के लिए अलग-अलग प्रथाओं को अपना रखा है. हिजाब परिधान की विभिन्न देशों में अलग-अलग कानूनी और सांस्कृतिक स्थिति है. अफगानिस्तान और ईरान में महिलाओं के लिए अनिवार्य है, वहीं फ्रांस में प्रतिबंधित. तुर्की में प्रतिबंध हटा दिए गए हैं. इसके बावजूद इसको लेकर लगातार बहसें जारी हैं.
कुराआन में लिबास
 
मुसलमानों के पवित्र ग्रंथ कुरआन में मुस्लिम पुरुषों और महिलाओं को विनम्र तरीके से कपड़े पहनने का निर्देश है. फिर भी इन निर्देशों का पालन कैसे किया जाए, इस पर असहमति है. पोशाक से संबंधित छंद सिजाब के बजाय खिमार (घूंघट) और जिलबाब (एक पोशाक या लबादा) शब्दों का उपयोग करते हैं. कुरआन की 6,000 से अधिक आयतों में से लगभग आधा दर्जन विशेष रूप से एक महिला के कपड़े पहनने और सार्वजनिक रूप से चलने के तरीके का उल्लेख करती हैं.
मामूली पोशाक पर जोर
 
कुरआन में मामूली पोशाक की आवश्यकता पर सबसे ज्यादा जोर है. इसपर स्पष्ट सूरा 24ः31 है,जो महिलाओं को अपने जननांगों की रक्षा करने और अपनी छाती पर अपना खिमार (घूंघट) खींचने के लिए कहती है. इसमें कहा गया है,
‘‘ और ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वो भी अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें. और अपने शृंगार प्रकट न करें, सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है. और अपने सीनों (वक्षस्थल) पर अपने दुपट्टे डाल रहें और अपना शृंगार किसी पर जाहिर न करें सिवाय अपने पतियों के या अपने बापों के या अपने पतियों के बापों के या अपने बेटों के या अपने पतियों के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भांजों के या मेल-जोल की स्त्रियों के या जो उनकी अपनी मिल्कियत में हो उनके, या उन अधीनस्थ पुरुषों के जो उस अवस्था को पार कर चुके हों जिससें स्त्री की जरूरत होती है, या उन बच्चों के जो स्त्रियों के परदे की बातों से परिचित न हों. और स्त्रियाँ अपने पांव धरती पर मारकर न चलें कि अपना जो शृंगार छिपा रखा हो, वह मालूम हो जाए. ऐ ईमानवालो! तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो(कुरआन
24ः31).’’
 
सूरह 33ः59 में मुहम्मद को अपने परिवार के सदस्यों और अन्य मुस्लिम महिलाओं को बाहर जाने पर बाहरी वस्त्र पहनने के लिए कहने का आदेश दिया गया है, ताकि उन्हें परेशान न किया जाएः, ‘‘
ऐ नबी! अपनी पत्नियों और अपनी बेटियों और ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वे अपने ऊपर अपनी चादरों का कुछ हिस्सा लटका लिया करें. इससे इस बात की अधिक सम्भावना है कि वे पहचान ली जाएं 
और सताई न जाए. अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है.’’
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सुन्नी
परंपरागत रूप से, विचार के चार प्रमुख सुन्नी स्कूल (हनफी , शफी , मलिकी और हनबली ) सर्वसम्मति से मानते हैं कि यह महिला के पूरे शरीर के लिए अनिवार्य है, उसके हाथों और चेहरे को छोड़कर (और पैर हनाफिस के अनुसार) ) प्रार्थना के दौरान और करीबी परिवार के सदस्यों के अलावा विपरीत लिंग के लोगों की उपस्थिति में कवर किया जाना चाहिए (जिनसे शादी करना मना है ).
हनाफिस और अन्य विद्वानों के अनुसार, ये आवश्यकताएं गैर-मुस्लिम महिलाओं के आसपास भी होती हैं. इस डर से कि वे असंबंधित पुरुषों के लिए उनकी शारीरिक विशेषताओं का वर्णन कर सकते हैं.
पुरुषों को अपने पेट के बटन से अपने घुटनों तक ढंकना चाहिए, हालांकि स्कूलों में इस बात पर मतभेद है कि इसमें नाभि और घुटनों को ढंकना शामिल है या केवल उनके बीच.मुहम्मद इब्न अल उथैमीन जैसे कुछ सलाफी विद्वानों का मानना ​​है कि सभी वयस्क महिलाओं के लिए हाथ और चेहरे को ढंकना अनिवार्य है.
जानें क्या है हिजाब का इतिहास ?
 
मुस्लिम महिलाओं को आपने हिजाब पहने जरूर देखा होगा. धार्मिक महत्व के साथ इसका एक अलग इतिहास रहा है.आजकल हिजाब का विषय चर्चा में है. कर्नाटक समेत भारत के कई राज्यों में महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला हिजाब विवाद का विषय बना हुआ है. पिछले कुछ दिनों में हिजाब का मामला इतना बढ़ गया कि कर्नाटक हाईकोर्ट को इसपर फैसला देना पड़ा. इस मामले में सियासत और राजनीति की एंट्री भी हो चुकी है.
मगर हम विवाद के बारे में बात नहीं करेंगे. आपको हिजाब के इतिहास के बारे में बताएंगे. आइए जानते हैं कि आखिर कब और कैसे हिजाब मुस्लिम महिलाओं के जीवन का हिस्सा बना. वैसे हिजाब केवल मुस्लिम औरतें ही नहीं ईसाई और यूहीदी औरतें भी पहनती हैं.
इस्लाम से पहले भी था हिजाब
 
इस्लाम की शुरुआत करीब 1400 साल पहले हुई थी, मगर हिजाब उससे पहले भी महिलाओं द्वारा पहना जाता था. बता दें कि पुराने जमाने में इजिप्ट की अमीर महिलाओं में चेहरा ढकने का फैशन हुआ करता था, उनके लिए यह किसी फैशन स्टेटमेंट की तरह हुआ करता था.
शाही परिवार की महिलाएं ऐसा इसलिए भी करती थीं, क्योंकि ऐसा करने से चोर- बदमाश भी उनसे डरा करते थे. पर्दा और हिजाब देखकर ही चोर यह समझ जाते थे कि महिला किसी रईस परिवार की है, ऐसे में वो भी बड़े घर की महिलाओं से लूटपाट करने से बचते थे. मिडिल ईस्ट के इस चलन के बाद ही शायद पर्दे को महिलाओं के लिए सुरक्षित मानने की धारणा बन गई.
गरीब और वेश्याओं को नहीं थी सिर ढकने की इजाजत
 
एक रिपोर्ट की माने तो पर्दा या हिजाब रईस और बड़े घर की महिलाओं द्वारा ही पहना जाता था, वहीं निम्न वर्ग की महिलाओं को पर्दा करने या सिर ढकने की सख्त मनाही थी. अगर कोई भी निम्न वर्ग की महिला सिर ढक भी ले, तो उसे इस बात की सजा दी जाती थी और उसे गिरफ्तार कर लिया जाता था.
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 ईसाई धर्म में भी सिर ढकने का चलन
 
पश्चिमी देशों में यूं तो हिजाब पर बैन लगाया गया है, मगर धार्मिक रूप से सिर ढकने की परंपरा ईसाई धर्म में भी देखने को मिलती है. बता दें कि ईसाइयत में सेंट पॉल ऐसा लिख चुके हैं कि महिलाओं को सिर ढकना चाहिए और यह उनके लिए अनिवार्य है.
यही वजह है कि आपने चर्च की नन को हेड स्कार्फ पहने जरूर देखा होगा. इतना ही नहीं ब्रिटिश शाही परिवार की महिलाएं सार्वजनिक मौकों पर अक्सर हैट या वेल में नजर आती हैं. माना जाता है कि यह उनके सिर ढकने का नया तरीका है.
समय के साथ हिजाब में  बदलाव
 
समय के साथ हिजाब में कई तरह के बदलाव किए गए. अलग-अलग डिजाइनर्स ने इसे महिलाओं के लिए और भी ज्यादा स्टाइलिश बना दिया. हालांकि, हिजाब को लेकर दुनिया भर में तरह-तरह की धारणाएं हैं. जहां कई देशों में महिलाएं इसके बिना घर से बाहर नहीं निकल सकती हैं, वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं, जहां हिजाब पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा हुआ है.
ये हैं दुनिया भर में पहने जाने वाले इस्लामी कपड़े
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केवल हिजाब ही नहीं मुस्लिम महिलाएं अपने आप को ढकने के लिए कई अन्य तरह के कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं. जिनके बारे में आपको पता होना चाहिए- 
नकाब : बता दें कि नकाब एक तरह का घूंघट होता है, जिसमें केवल आंखें खुली होती हैं और चेहरे के साथ सिर का हिस्सा पूरी तरह से ढका होता है.
खिमार : यह कुछ हद तक हिजाब के जैसा होता है, जिसमें एक लंबे दुपट्टे से सिर और बदन के ऊपरी हिस्से का ढ़का जाता है. इसके अलावा इसमें भी महिला का चेहरा खुला रहता है.
शयला : यह एक आयताकार कपड़े का टुकड़ा होता है जिसे सिर के चारों ओर लपेटकर पिनअप किया जाता है.

बुर्का: नकाब का ही अगला स्तर बुर्का है। जहां नकाब में आंखों के अलावा पूरा चेहरा ढका होता है, वहीं बुर्के में आंखें भी ढकी होती है। बुर्के में आंखों के स्थान पर या तो एक खिड़कीनुमा जाली बनी होती है या कपड़ा हल्ला होता है, जिससे आर-पार दिखता है। इसके साथ ही बुर्के में पूरे शरीर पर एक बिना फिटिंग वाला लबादा होता है। यह अक्सर एक ही रंग का होता है, ताकि गैर-मर्द आकर्षित ना हों।

अल-अमीरा: यह दो कपड़ो का सेट होता है। एक कपड़े को टोपी की तरह सिर पर पहना जाता है। जबकि दूसरा कपड़ा थोड़ा बड़ा होता है जिसे सिर पर लपेटकर सीने पर ओढ़ा जाता है।

अबाया: यह वो पोशाक होती है जिसे भारत में बुर्का कहते हैं। जबकि मिडिल ईस्ट में इसे अबाया कहा जाता है। यह एक लंबी ढकी हुई पोशाक होती है जिसे औरतें भीतर पहने किसी भी कपड़े के ऊपर डाल लेती हैं। इसमें सिर के लिए एक स्कार्फ होता है जिसमें सिर्फ बाल ढके होते हैं और चेहरा खुला रहता है।

दुपट्टा: पाकिस्तान और भारत में सलवार-कमीज के साथ महिलाएं सिर ढकने के लिए दुपट्टे का इस्तेमाल करती हैं। दुपट्टा सलवार-कमीज का ही हिस्सा होता है। इसका मुख्य उद्देश्य सिर ढकना होता है। दुपट्टे का इस्तेमाल भारत में मुस्लिम महिलाओं के अलावा हिंदू और सिख महिलाएं भी करती हैं।

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