चर्चा के केन्द्रबिन्दु में समाया प्रवर्तन निदेशालय! (लेखक-डॉ भरत मिश्र प्राची )

आजादी मिलने के बाद 1मई 1956 को देश में आर्थिक अपराध पर रोक लगाने के उदेश्य को लेकर प्रवर्तन निदेशालय की स्थापना हुई जिसका समय समय पर दशा व दिशा बदलती गई। प्रारम्भ में विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम1947 , फेरा 1947 के अंतर्गत विनिमय नियंत्रण विधियों के उलंघन को रोकने के लिये आर्थिक कार्य विभाग के नियंत्रण में प्रवर्तन इकाई गठित की गई। जिसमें भारतीय रिजर्व बैंक से प्रतिनियुक्ति के आधार पर एक अधिकारी एवं विशेष पुलिस स्थापना से तीन निरीक्षकों की टीम कार्य करती रही। सन् 1960 में इसे आर्थिक कार्यमंत्रालय से हटाकर राजस्व विभाग में हस्तान्तरित कर दिया गया। वर्तमान में यह निदेशालय वित मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन विशेष वित्तीय जांच एजेंसी के रूप में कार्य कर रहा है। जिसे छापामारी कर कालाधन के करोबार में छिपे को पकड़कर केस चलाने,, कालेघन से एकत्रित धन राशि को जब्त करने एवं आर्थिक दंड लगाने का अधिकार मिला हुआ है। जिसका प्रमुख प्रवर्तन निदेशक होता है । जिसे ईडी कहा जा रहा है। आजकल यह निदेशालय आम चर्चा के केन्द्रबिन्दु में समाता चला जा रहा है जब से मनीलिडिग मामले में नेशनल हेराल्ड को लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी को जांच के घेरे में लेकर पूछताछ की प्रक्रिया ईडी कार्यालय में बुलाकर शुरू की गई। मनीलिडिंग मामलें में ही प्रवर्तन निदेशालय द्वारा शिव सेना नेता संजय राउत को घेरे में लेकर जांच प्रक्रिया शुरू की गई। इसी विभाग द्वारा अभी हाल हीं में शिक्षक भर्ती घोटाले में शामिल तृणमूल कांग्रेस नेता पं. बंगााल के मंत्री पार्थ चटर्जी एवं उनके सहयोगी टीम को जांच घेरे में लेकर करोड़ो की अवैध रकम को जब्त कर कानूनी प्रक्रिया शुरू की गई। झारखंड के तीन कांग्रेसी नेताओं को गिरफ््तार किया गया।

आर्थिक अपराध से जुड़े अपराधियों के धड़ पकड़ एवं जांच के घेरे में लेकर कानूनी कार्यवाही करने की प्रवर्तन निदेशालय की प्रक्रिया सराहनीय कदम है पर सरकार के वित मंत्रालय के अधीन इस विभाग के होने से इस निदेशालय की निष्पक्षता पर उंगली उठना स्वाभाविक है। आर्थिक अपराध से जुड़े अपराधी हर राजनीतिक दल में समाये हुये है जिनकी जांच होनी चाहिए पर यह कार्य तभी संभव हो पायेगा जब प्रवर्तन निदेशालय सरकार के अधीन न होकर स्वतंत्र रूप में अपना कार्य कर सके। जब तक यह विभाग सरकार के अधीन रहकर कार्य करेगा, इसकी निष्पक्षता संदेह के दायरे में फंसी रहेगी। आर्थिक अपराध सं जुड़ा अपराधी अपराधी होता है चाहे किसी भी दल का हो, उसकी जांच होनी ही चाहिए। अभी तक की चल रही प्रवर्तन निदेशालय के जांच घेरे की कार्यवाही में विपक्ष के ही लोग नजर आ रहे है जो सत्ता पक्ष पर सवाल बनते जा रहे है। ऐसा नहीं कि सत्ता पक्ष में आर्थिक अपराधी न हो। इस तरह का परिवेश प्रवर्तन निदेशालय की कार्यवाही पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। इसी कारण यह निदेशालय उचित कार्य करने के वावयूद चर्चा के केन्द्र बिन्दु में समाता जा रहा है। देश एवं जनहित में इस तरह के परिवेश से प्रवर्तन निदेशालय को बाहर करना नितान्त जरूरी है।ं आर्थिक अपराध से जुड़े अपराधियों की धड़ पकड़ करने हेतु बने निदेशालय सरकार के अधीन न होकर राष्ट्रपति या न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तहत कार्य करे तो इस विभाग की कार्यशैली पर सवालिया चिन्ह लगने की प्रासंगिकता समाप्त हो जायेगी।

Web sitesi için Hava Tahmini widget