जयपुर-शाहपुरा : जयपुर का एक बेटा बाबूलाल जाट (38) शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर के कुलगाम में आतंकियों से सामना करते हुए शहीद हो गया। घर में शहीद के बड़े भाई को छोड़कर किसी को इस शहादत की खबर नहीं है। जयपुर के शाहपुरा के पास शहीद का हनुतपुरा की डूंगरी वाली ढाणी गांव है। इस गांव के लोग बीती पूरी रात नहीं सोए। पूरा गांव इस बात का विशेष ध्यान रख रहा है कि शहीद के परिवार में खबर ना हो की बेटा शहीद हो गया है। क्योंकि शहीद के बुजुर्ग पिता, वीरांगना और बच्चे यह खबर सहन नहीं कर पाएंगे।
शहीद की पार्थिव देह रविवार शाम तक गांव पहुंचने की संभावना है। तब तक सबकी यह कोशिश है कि परिवार को इसकी भनक तक ना लगे। इसीलिए शनिवार को पूरे दिन और रात को शहीद का बड़ा भाई इस दर्द को दिल में दबाए रहा। शहीद के सभी रिश्तेदार रात को ही गांव आ गए। घर ना जाकर गांव में दूसरों के यहां रुक गए।
गांव के लोग किसी को भी शहीद के घर की ओर नहीं जाने दे रहे। इस बीच गांव में पार्थिव देह आने पर तिरंगा यात्रा और अंतिम संस्कार की तैयारियां भी की जा रही हैं।
शहीद के बड़े भाई के लिए यह बेहद मुश्किल घड़ी थी। मीडिया रिपोर्टर से शहीद के भाई भैरूलाल जाट ने बाताया कि पिछले 24 घंटे से कैसे वो इतनी बड़ी बात अपने परिवार से छुपाकर रख रहा है। आगे पढ़िए उन्हीं की जुबानी…
सुबह के कोई तीन बज रहे थे। मैं घर के बरामदे में सो रहा था। चंद कदम की दूरी पर ही एक कमरे में पिता जी सो रहे थे। अंदर दो कमरों में छोटे भाई की पत्नी और मेरी पत्नी सो रही थी। हमारे बच्चे पढ़ाई के लिए बाहर रहते हैं। अचानक फोन की घंटी बजी। दिल धक्क सा बैठ गया कि इस वक्त किसका फोन हो सकता है। मैंने फोन उठाया।
सामने वाले ने कहा…जयहिंद साहब। मैं बाबूलाल का साथी बोल रहा हूं। आप उनके घर से ही हैं।
मैंने कहा – हां जी, मैं उनका बड़ा भाई बोल रहा हूं।
उन्होंने पूछा – आप कहां है, आपके आसपास कोई और तो नहीं है ना।
मैंने कहा- नहीं, आप बताइए।
फिर हल्के आवाज में बोले – आप धैर्य से सुनें, बाबूलाल देश के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। पार्थिव देह आने में एक-दो दिन लग सकते हैं। आपको हिम्मत रखनी होगी। परिवार को संभालना होगा।
मैं ये सब सुनकर सन्न रह गया। फोन कब कटा पता ही नहीं। आंखों के सामने अंधेरा छा गया। रुलाई फूट पड़ी। कुछ समझ नहीं आया कि क्या करुं। खड़े होने तक कि हिम्मत ना रही। ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे शरीर में से जान निकाल ली हो। आधे घंटे तक चुपचाप बैठा रहा। मन कर रहा था जोर से चीख पड़ूं, लेकिन फिर खुद पर काबू पाया।
अंदर बुजुर्ग पिता सो रहे थे, छोटे भाई की पत्नी और मेरी पत्नी सो रही थी। चीखता तो उन्हें पता चल जाता। इसलिए चुपचाप ही घर से निकला। पास ही में चाचा जी का घर है, वहां जाकर उनके बेटे जगदीश को उठाया और उनसे लिपट कर जोर से चीख पड़ा। बड़ी मुश्किल से उन्होंने मुझे संभाला। फिर सारी बात उन्हें बताई। जगदीश भाई ने समझाया कि घर में किसी को पता ना चले, इसका पूरा ध्यान रखना होगा।
उधर, घर में पिता के उठने का समय हो चुका था। इसलिए मैं चुपचाप घर चला आया। रो-रो कर आंखें लाल हो चुकी थी। पिता को कुछ शक ना हो जाए, इसलिए चुपचाप मुंह छिपाकर सो गया। घर में सब उठ चुके थे, लेकिन मैं नहीं उठा। बस, चादर में मुंह दबाए चुपचाप रोता रहा। पिताजी ने जोर से आवाज लगाई, अरे, कब तक सोता रहेगा। आज उठना नहीं क्या? उनकी आवाज सुनकर मन कांप उठा। सोचा, उठकर इन्हें क्या बताऊंगा। कैसे इनके सामने जाऊंगा।
बड़ी मुश्किल से खुद को वापस संभाला और उठकर बिना किसी से बोले चुपचाप बाहर चला गया। पिता पीछे से आवाज ही लगाते रहे, अरे! कहां जा रहा है तू। आज तुझे क्या हो गया। मेरे कदम लड़खड़ाते लगे, लेकिन रुकने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
मन तो कर रहा था कि पिता से जाकर लिपट जाऊं और उन्हें सब बता दूं, लेकिन जानता था कि इस उम्र में वे जवान बेटे का गम बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। बहुत ध्यान रखता था बाबूलाल उनका। सात दिन पहले ही उनकी आंखें ठीक करवा कर गया था।
मैं रोते-रोते जगदीश भाई के पास पहुंच गया। जाकर उनसे यही पूछा कि कैसे पिता के सामने जाऊं? मेरी तो हिम्मत ही नहीं हो रही। उन्होंने समझाया, जाना तो पड़ेगा। हिम्मत भी रखनी होगी। वरना पूरा दिन कैसे परिवार को संभालोगे? मैं वापस घर आया। पिता इधर-उधर की बातें करने लगे और मैं बस हां-हूं में जवाब देता गया।
मैं कभी पिता की ओर देखता तो कभी छोटे भाई की पत्नी को, सोचता कि जब उसकी पार्थिव देह आएगी तो इन्हें क्या कहूंगा। बाबूलाल के दोनों बच्चे बाहर पढ़ते हैं। उनके पास गांव के परिचित को भेजा ताकि कोई उनको कुछ ना बता दे। शाम हो चुकी थी। सारे रिश्तेदारों को फोन करके बता दिया गया। वे भी गांव में आ तो गए, लेकिन हमारे घर के आसपास भी नहीं आए।
शाम ढलते ही मैं सो गया। सो क्या गया, बस सोने का नाटक करने लगा। आंखों में नींद ही कहां थी। आंखे तो बस उस दहलीज की ओर देख रही थी, जहां से सात दिन पहले ही छोटे भाई को जाते हुए देखा था। वह कहकर गया था, भाईसाहब जल्दी ही वापस लौटूंगा, लेकिन क्या पता था कि वह कभी ना लौटने के लिए जा रहा है।
पूरी रात रोते हुए गुजारी। ऊपर वाले ने सब कुछ छीन लिया था, अब मैं बस उससे यही मांग रहा था कि हे, भगवान घरवालों को कैसे भी पता ना चले। मुझे इतनी हिम्मत दे कि मैं इन सब को संभाल सकूं। सुबह हो चुकी थी। सूरज उगने से पहले ही मैं घर से बाहर निकल आया। मन ही मन रोता रहा और खुद ही खुद को तसल्ली देता रहा कि कैसे भी करके परिवार को संभालना है।
मुठभेड़ में गोली लगी, इलाज के दौरान हुए शहीद
सेना के अधिकारियों के मुताबिक, कश्मीर के कुलगाम के हलान जंगलों में शुक्रवार को आतंकियों ने सेना के टेंट पर फायरिंग की थी। इसके बाद दोनों ओर से गोलीबारी शुरू हो गई, जिसमें 3 जवान घायल हो गए। हमले के बाद आतंकी कुछ हथियार लेकर भाग गए। आतंकियों को पकड़ने के लिए इलाके में तलाशी अभियान चलाया गया है।
घायल तीनों जवानों को श्रीनगर के अस्पताल में भर्ती करवाया गया। जहां शुक्रवार रात तीनों जवान शहीद हो गए। इसमें हनुतपुरा गांव की डूंगरी वाली ढाणी के रहने वाले गुलाराम जाट के बेटे बाबूलाल जाट भी शामिल हैं।
शहीद के परिवार में वीरांगना कमलेश देवी चौधरी और दो बेटे विशाल (18) व विशेष (14) हैं। बड़ा बेटा विशाल सीकर में नीट की तैयारी कर रहा है जबकि छोटा बेटा विशेष बगरू में 11वीं क्लास में साइंस का फाउंडेशन कोर्स कर रहा है। एक बड़ा भाई भैरुलाल और उनका परिवार भी है।
सेना की ओर से भैरुलाल को शहादत की खबर शनिवार तड़के 3 बजे दी गई थी। उस वक्त विशाल सीकर और विशेष बगरु में थे। उन्हें अब तक भी पिता की शहादत की खबर नहीं है।
2005 में ज्वाइन की आर्मी
बाबूलाल जाट सेना की 8 जाट रेजीमेंट में बतौर कांस्टेबल 2005 में भर्ती हुए। वे इन दिनों श्रीनगर में तैनात थे। एक साल पहले ही उनका प्रमोशन हेड कांस्टेबल के रूप में हुआ। बाबूलाल चार भाई बहन हैं। जिनमें वे सबसे छोटे थे। बड़ा भाई भैरुलाल गांव में ही खेती करते हैं। एक बहन हीरा देवी राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल हैं जबकि दूसरी बहन सजना देवी ग्रहणी हैं।
सात दिन पहले ही गए थे ड्यूटी पर
बाबूलाल सात दिन पहले ही ड्यूटी पर वापस गए थे। वे यहां एक महीने की छुट्टी पर आए हुए थे। उनके चचेरे भाई जगदीश ने बताया कि बाबूलाल के पिता की आंखों में मोतियाबंद हो गया था। वे इसका ऑपरेशन करवाने आए थे। इस सिलसिले में एक महीने गांव में ही रुके। लंबे समय बाद वे इतने दिन तक यहां रहे। इस दौरान सभी गांव वालों से मिले। छुटि्टयां पूरी कर वे 29 जुलाई को श्रीनगर के लिए रवाना हुए थे।
गांव में पार्थिव देह का इंतजार
शहीद बाबूलाल की पार्थिव देह रविवार दोपहर बाद सेना के विमान से जयपुर लाई जाएगी। इसके बाद सड़क मार्ग से वह गांव के लिए रवाना होगी। शहीद का अंतिम संस्कार गांव में ही होगा। जिसकी तैयारियां की जा रही हैं।